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तालिबान की वापसी... आशंका से अफगानिस्तान में इनकी हालत पतली

उधर तालिबान ने हाल ही में कहा है कि वे अब भी अफगानिस्तान के 'वैध शासक' हैं और यह उनका कर्तव्य है कि वे साल 2001 में अमेरिकी फौज द्वारा बेदखल किए जाने से पहले की 'इस्लामी सरकार' को फिर से बहाल करें। तालिबान ने कहा था कि अमेरिका से दोहा में हुए शांति समझौते से इस स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।

राम केवी
Published on: 11 March 2020 9:20 PM IST
तालिबान की वापसी... आशंका से अफगानिस्तान में इनकी हालत पतली
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काबुल/न्‍यूयॉर्क। पांच हजार तालिबान कैदियों की रिहाई का फरमान आते ही अफगानिस्तान की महिलाएं जबर्दस्त दहशत में घिर गई हैं। अमरिका तालिबान समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद से उनकी रातों की नींद उड़ी हुई है। उनकी आँखों में बुरे ख्वाब की तरह बार बार तालिबानी शासन का मंजर तैर रहा है। क्या है खतरा जिसके पीछे आधी आबादी बेचैन है।

हालांकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने अफगानिस्तान में शांति लाने और अमेरिकी सेना की वापसी के लिए अमेरिका-तालिबान के बीच हाल ही में हुए समझौते का स्वागत करने वाले एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया है।

उधर तालिबान ने हाल ही में कहा है कि वे अब भी अफगानिस्तान के 'वैध शासक' हैं और यह उनका कर्तव्य है कि वे साल 2001 में अमेरिकी फौज द्वारा बेदखल किए जाने से पहले की 'इस्लामी सरकार' को फिर से बहाल करें। तालिबान ने कहा था कि अमेरिका से दोहा में हुए शांति समझौते से इस स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।

तालिबानी शासन महिलाओं के लिए काल

तालिबानी शासन में महिलाओं पर तमाम तरह की पाबंदियां होती हैं। उन्हें पढ़ने-लिखने या घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं होती है। इसके अलावा पर्दे यानी बुर्के में रहना होता है। जरा जरा सी बात पर मार दिया जाता है। सेक्सुअल अपराधों का निशाना बनाई जाती हैं। तालिबानी शासन के अंत के बाद आज के दौर में अफगानिस्तान की महिलाएं को सभी काम करने की आजादी है।

अब जबकि अफगानिस्‍तान के राष्‍ट्रपति अशरफ गनी ने सभी तालिबानी कैदियों की रिहाई पर दस्‍तखत कर दिए हैं महिलाओं का के चेहरे पर दहशत बढ़ गई है। हालांकि राष्ट्रपति गनी के इस आदेश को तालिबान के साथ अफगानिस्‍तान सरकार की सद्भावना पहल की कार्यवाही माना जा रहा है।

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एक खबर के मुताबिक आदेश के तहत अफगानिस्‍तान की सरकार बायोमैट्रिक प्रोसेस के बाद सभी 5000 तालिबानी लड़ाकों को क्रमिक रूप से रिहा कर देगी। इसके तहत पहले चरण में करीब 14 सौ तालिबानी लड़ाकों की रिहाई की जाएगी। हालांकि इनसे यह लिखवाया जा रहा है कि वह सरकार के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ेंगे।

हिलेरी बोलीं खतरनाक समझौता

लेकिन तालिबानी लड़ाकों की वापसी और उनके सरकार की तरफ बढ़ते कदमों को देखते हुए अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन इसे खतरनाक समझौता मान रही हैं।

रॉयटर एजेंसी की एक खबर के मुताबिक संयुक्‍त राष्‍ट्र में अफगान महिलाओं के हकों पर बोलते हुए उन्‍होंने साफतौर पर अमेरिका-तालिबान समझौते को वहां की महिलाओं के लिए नुकसानदेह माना है। उनका कहना है कि इस समझौते के बाद वहां की महिलाओं को अपनी आजादी छिन जाने का खौफ है।

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ईरान भी इस पर आपत्ति जता रहा है हालांकि अमेरिका उसके विरोध को नजरअंदाज कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि अफगानिस्तान की अंदरूनी राजनीति में ईरान का कुछ ज्यादा ही दखल रहता है। ईरान का समझौते का विरोध करते हुए कहना है कि अमेरिका को अफगानिस्तान का भाग्य विधाता बनने का कोई हक नहीं है।

इनको लिखे हुए पर विश्वास

हालांकि तालिबानी लड़ाकों को रिहाई के लिए लिखित तौर पर ये देना होगा कि वह दोबारा लड़ाई की तरफ अपना रुख नहीं करेंगे। 14 मार्च से हर रोज करीब 100 तालिबानी कैदियों की रिहाई की जाएगी। ये रिहाई उनकी उम्र, हैल्‍थ और सजा का बचा समय देखते हुए तय की जाएगी। धीरे-धीरे सभी कैदियों को रिहा कर दिया जाएगा।

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अफगानिस्‍तान के मानवाधिकार आयोग ने सरकार के इस कदम को आपसी विश्‍वास बहाल करने की दिशा में उठाया गया कदम बताया है।जबकि आयोग के उप प्रमुख नईम नाजरी के अनुसार देश और अंतरराष्‍ट्रीय कानून इस बात की इजाजत नहीं देता है कि राष्‍ट्रपति किसी भी ऐसे व्‍यक्ति को रिहा करे जो युद्ध अपराध में पकड़ा गया हो।

अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन का कहना है कि अफगान महिलाओं को जो आजादी अमेरिका की पूर्व की सरकारों की बदौलत मिली थी इस समझौते से वो खो जाएगी और इतने वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। गौरतलब है कि तालिबान ने अपने सभी 5 हजार कैदियों की लिस्‍ट अमेरिका के माध्यम से अफगान सरकार को सौंपी थी।



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