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Twitter Fake Accounts: ट्विटर के फर्जी खातों के जरिये भड़काए गए ब्रिटेन में दंगे

Twitter Fake Accounts: भारत - पाकिस्तान के बीच 27 अगस्त को खेले गए एक क्रिकेट मैच के बाद सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए थे।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 17 Nov 2022 5:00 AM GMT
Riots in UK
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ट्विटर के फर्जी खातों के जरिये दंगे (photo: social media )

Twitter Fake Accounts: ब्रिटेन के लीसेस्टर में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच दंगे भड़काने में ट्विटर के फर्जी खातों की बड़ी भूमिका थी। ये खाते यूनाइटेड किंगडम के बाहर से संचालित किए गए थे। रटगर्स विश्वविद्यालय के नेटवर्क कॉन्टैगियन रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार ट्विटर पर करीब 500 अप्रामाणिक खातों से इस साल अगस्त - सितंबर में लीसेस्टर में हिंसा को भड़काया गया, इन खातों से मीम्स के साथ-साथ आग लगाने वाले वीडियो पोस्ट प्रोमोट किये गए।शोधकर्ताओं ने कहा है कि अशांति को बढ़ाने वाले कई ट्विटर अकाउंट भारत से ऑपरेट हो रहे थे।

भारत - पाकिस्तान के बीच 27 अगस्त को खेले गए एक क्रिकेट मैच के बाद सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए थे। लाठी और डंडे लिए दंगाइयों ने कांच की बोतलें फेंकी जिसके बाद पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी थी। लीसेस्टरशायर पुलिस के अनुसार, इस संघर्ष के दौरान घरों, कारों और धार्मिक प्रतीकों को नुकसान पहुंचाया गया। ये बवाल हफ्तों तक चला और इसके परिणामस्वरूप 47 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

इस दौरान सोशल मीडिया पर मस्जिदों में आग और अपहरण के दावों के वीडियो की भरमार हो गई थी। जिससे पुलिस को चेतावनी जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि लोगों को ऑनलाइन गलत सूचना पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

लीसेस्टर के मेयर पीटर सोल्सबी के अनुसार, अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने टकराव को हवा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट और बवाल में शामिल लोगों जिनमें 21 वर्षीय एडम यूसुफ भी था, ने एक न्यायाधीश को बताया कि वह सोशल मीडिया से प्रभावित होकर एक प्रदर्शन के लिए चाकू लेकर लाया था।

एनसीआरआई के संस्थापक जोएल फिंकेलस्टीन ने कहा, "हमारे शोध में पाया गया है कि देशी हमलावर और विदेशी तत्वों के नेटवर्क अब सोशल मीडिया को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

विदेशी इन्फ्लुएंसरों ने स्थानीय स्तर पर गलत सूचना फैलाई

यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर और टिकटॉक से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग करते हुए 16 नवम्बर को प्रकाशित एनसीआरआई की रिपोर्ट विस्तृत रूप से बताती है कि कैसे विदेशी इन्फ्लुएंसरों ने स्थानीय स्तर पर गलत सूचना फैलाई जिसके चलते यूके के एक शहर में संघर्ष फैल गया। एनसीआरआई के भाषाई विश्लेषण में पाया गया कि "हिंदू" का उल्लेख "मुस्लिम" के उल्लेख से लगभग 40 फीसदी अधिक किया गया और अंतरराष्ट्रीय प्रभुत्व के लिए एक वैश्विक परियोजना में हिंदुओं को बड़े पैमाने पर हमलावरों और षड्यंत्रकारियों के रूप में चित्रित किया गया था। उन्होंने पाया कि गूगल की ज़िगसॉ सर्विस से सेंटिमेंट विश्लेषण का उपयोग करते हुए 70 फीसदी हिंसक ट्वीट्स, लीसेस्टर दंगे के दौरान हिंदुओं के खिलाफ किए गए थे।

शोधकर्ताओं को बॉट जैसे खातों के सबूत भी मिले, जो हिंदू-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी दोनों संदेशों का प्रसार करते थे, और प्रत्येक हिंसा के लिए दूसरे समुदाय को दोषी ठहराते थे। निष्कर्षों के अनुसार, बॉट्स की पहचान खाता निर्माण के समय और बार-बार किए गए ट्वीट्स की संख्या के आधार पर की गई थी, जिनमें से कुछ ने प्रति मिनट 500 बार ट्वीट किया था।

लीसेस्टर ईस्ट की सांसद क्लाउडिया वेबे ने ब्लूमबर्ग न्यूज को बताया कि दंगे बेशक सोशल मीडिया के कारण हुए थे। उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के भीतर उनके अधिकांश घटक "फोन के माध्यम से" बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा कि यहां तक कि जो लोग सड़कों पर नहीं उतरे थे, वे व्हाट्सएप और ट्विटर के माध्यम से जो मैसेज प्राप्त कर रहे थे, उससे डरे हुए थे - वे हफ्तों तक बाहर जाने से डरते थे।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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