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Russia Taliban News: तालिबान से दोस्ती रूस की मजबूरी, जानें क्या है निकटता के पीछे की वजह

Russia Taliban News in Hindi: अफगानिस्तान में सोवियत हमले के चलते ही तालिबान का जन्म हुआ था और एक समय में दोनों एक-दूसरे के दुश्मन थे।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shivani
Published on: 19 Aug 2021 3:08 PM IST (Updated on: 20 Aug 2021 9:01 PM IST)
Russia Taliban News in Hindi
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रूस और अफगानिस्तान का नक्शा (Google Image)

Russia Taliban News in Hindi: अफगानिस्तान पर तालिबान के कंट्रोल के बाद जहाँ तमाम देशों में अपने दूतावास खाली करने और अपने राजनयिकों को स्वदेश लाने की मारामारी मची वहीं रूस शंति से बैठा रहा। क्योंकि रूस को पहले से पता था कि काबुल में तालिबान का आगमन होने वाला है और अमेरिका को वहां से खाली हाथ लौटना पड़ेगा। सो उसने इस दिन की तैयारी बहुत पहले से कर रखी थी। रूस को 90 के दशक में अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी का अनुभव था, जो आज उसके काम आया है।

तालिबान का जन्म कब हुआ (Taliban Kab Bana)

इतिहास पर नजर डालें तो तालिबान की जड़ें अस्सी के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ संघर्ष से जुड़ी हुई हैं। यूं कह सकते हैं कि अफगानिस्तान में सोवियत हमले के चलते ही तालिबान का जन्म हुआ था और एक समय में दोनों एक-दूसरे के दुश्मन थे। लेकिन तबसे तालिबान के प्रति रूस का रुख बदल चुका है और वह एक व्यवहारिक दृष्टिकोण अपना कर चल रहा है। इसके पीछे रूस के अपने हित और मध्य एशिया में रूस के सहयोगी राष्ट्रों के हित शामिल हैं।

तालिबान ने कब शुरू किया अफगानिस्तान पर कब्जा करना

Afghanistan Par Kabja- मध्य एशिया में रूस के कई सैन्य ठिकाने हैं, वह नहीं चाहता कि इस क्षेत्र में अस्थायित्व हो। रूस ये भी नहीं चाहता कि उसके दरवाजे तक आतंकवाद का साया आए। इस क्षेत्र के कई देश पूर्व सोवियत संघ के हिस्से रह चुके हैं, इन देशों में भी हालात बहुत स्थिर नहीं हुए हैं, सो रूस कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है। 90 के दशक में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कंट्रोल जमाया था तब उसके पड़ोसी देशों में भी उसका असर पड़ा था। ऐसे में रूस नहीं चाहता है कि ऐसा कोई दुष्प्रभाव इस बार सामने आये। रूस ये भी जनता है कि अफगानिस्तान से अमेरिका के पलायन के बाद मध्य एशिया के इस क्षेत्र में उसके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी है।


ऐसे में तालिबान से बना कर रखने और अपनी ताकत दिखाने की नीति ही सबसे कारगर है। इसके अलावा अमेरिका की शिकस्त को भी रूस अपने हित में भुनाना चाहता है। तालिबान का मसला दो महाशक्तियों के बीच का भी मसला है जिसे रूस अपने हक़ में बनाये रखने की पूरी कोशिश में लम्बे समय से लगा हुआ था।

रूस-तालिबान धीरे धीरे आये करीब

Russia Taliban- भले ही रूस ने तालिबान को एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन करार दे कर उसे अपने देश में बैन कर रखा है लेकिन ये भी सच्चाई है कि रूस ने तालिबान से सम्बन्ध स्थापित करने में कई साल लगाए हैं। रूस का मानना है कि तालिबान अब बहुत बदल चुका है। ये वो संगठन नहीं रहा जिसने 90 के दशक में अल कायदा को पनाह दी थी। यही वजह है कि बीते सात साल में रूस ने तालिबान के साथ उच्च्स्तरीय मीटिंगें करके उसे अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पोलिटिकल साख प्रदान की है।


सितम्बर 2015 में तो रूसी प्रेसिडेंट पुतिन ने तजाकिस्तान स्थित एक रूसी सैन्य ठिकाने में तालिबानी नेता मुल्ला अख्तर मंसूर से मुलाकात की थी। तालिबान के साथ मास्को में की गयी मीटिंगों का उद्देश्य सिर्फ यही रहा है कि अफगानिस्तान की लड़ाई अगल-बगल के देशों में न फैलने पाए और मध्य एशिया के उसके पड़ोसी देशों में आतंकवाद न पनपे। रूस जनता है कि अगर मध्य एशिया में शांति चाहिए तो तालिबान के साथ उसे बातचीत करनी पड़ेगी और उसने यही किया है।

तालिबान के उत्तरी पड़ोसियों – उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान ने अफगानिस्तान में लड़ाई के दौरान अमेरिका की मदद की थी सो इन देशों को लगता है कि तालिबान बदला लेने के लिए उनके यहाँ गड़बड़ी फैला सकता है लेकिन तालिबान ने इन पड़ोसियों को आश्वस्त किया है कि उनको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है और तालिबान की इन देशों के बारे में कोई योजना नहीं है। तालिबान को ये देश नाराज नहीं करना चाहते हैं इसीलिए जब अफगान प्रेसिडेंट अशरफ गनी काबुल से भागे तो उज्बेकिस्तान ने उनको अपने यहाँ शरण देने से इनकार कर दिया था और अंततः उनको सऊदी अरब जाना पड़ा।

फूंक फूंक कर कदम

ऐसा भी नहीं है कि रूस आँख बंद करके तालिबान पर भरोसा किये हुए है। उसे पता है कि तालिबान के भीतर कई गुट हैं और कौन सा गुट क्या सोच रहा है और किस दिशा में जाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसीलिए रूस ने उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान के साथ मिल कर उनकी पूरी अफगान सीमा के किनारे-किनारे महीने भर का युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है जिसमें रूसी सेनाओं की तगड़ी मौजूदगी है। अफगानिस्तान में जो हालात बने हैं उनसे लगता है कि रूस अब इस क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी को और भी मजबूत करेगा। उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान पहले भी तालिबान के साथ हाई लेवल की बातचीत कर चुके हैं और ऐसा माना जा रहा है कि ये दोनों देश तालिबान शासन को मान्यता दे देंगे। सिर्फ तजाकिस्तान ने अभी तक तालिबान से सीधे कोई बात नहीं की है।


रूस की चिंताएं (Russia Tensions With Taliban

- अफगानिस्तान से इस्लामिक अतिवाद अब छिटक कर आस पास के देशों में फैलेगा और रूस को भी प्रभावित करेगा।

- तालिबान के भीतर में कई गुट हैं सो उनके बीच संघर्ष होगा और अफगानिस्तान गृह युद्ध की चपेट आ जाएगा।

- तालिबान के अंतर्विरोधों का फायदा अन्य क्षेत्रीय व ग्लोबल ताकतें उठाएंगी जिसने चलते अफगानिस्तान को स्थायित्व नहीं मिल पायेगा।

- अफगानिस्तान में मौजूद अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के लोग उठ खड़े होंगे और इन आतंकी संगठनों को तेजी से विस्तार मिलेगा। ये रूस में भी गड़बड़ी फैला सकते हैं क्योंकि रूस तथा उसके पड़ोसी देशों में में मुस्लिम जनसंख्या काफी बड़ी है।

- तालिबान के नरमपंथी और चरमपंथी धड़ों में दो-फाड़ होने की पूरी आशंका है। चरमपंथी गुटों को रूस के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है।



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Shivani

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