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Russia Ukraine Conflict : सोवियत संघ के सदस्य रहे रूस और यूक्रेन आज युद्ध के मुहाने पर हैं
यूक्रेन-रूस के बड़े विवाद को लेकर हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच एक अहम बातचीत हुई है।
नई दिल्ली। तुम अगर मेरी नहीं हो तो पराई भी नहीं...। ये गाना रूस और यूक्रेन के बीच तनाव पर सटीक बैठता है। किसी जमाने में यूक्रेन-रूस (Ukraine-Russia) का ही हिस्सा हुआ करता था, बाद में रूस और यूक्रेन, सोवियत संघ (Soviet Union) का हिस्सा बन गए। यानी दोनों की मोहब्बत बरकरार रही। जब घर टूट गया, यानी सोवियत संघ बिखर गया तो यूक्रेन एक स्वतंत्र मुल्क बन गया। यहाँ तक भी ठीक था लेकिन जब यूक्रेन ने अपनी संप्रभुता दिखानी शुरू की तो रूस को ये अखरने लगा। हद तो तब हो गयी जब यूक्रेन ने रूस की बजाये अमेरिका और पश्चिमी देशों से नजदीकियां बढ़ाना शुरू कर दिया। यहीं से बात बिगड़ना शुरू हुई और आज दोनों देश लड़ाई के मुहाने तक पहुँच चुके हैं। रूस ने यूक्रेन की सीमा पर अपनी फौजों का जबर्दस्त जमावड़ा कर दिया है तो अमेरिका (America) और उसके नाटो सहयोगियों ने यूरोप (Europe) में युद्ध की चेतावनी दे दी है। उक्रेन अपने बच्चों, लड़कियों, बूढों और जवानों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने का प्रचार कर रहा है। रूस का कहना है कि यूक्रेन के पास अमेरिका और नाटो को फटकना भी नहीं चाहिए। फिलहाल, अभी सिर्फ बातों की लड़ाई चल रही है।
क्या है इतिहास
यूक्रेन, सोवियत गणराज्य बनने से पहले सदियों से रूसी साम्राज्य का हिस्सा था। यूक्रेन को 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद स्वतंत्रता मिली और वह अपनी रूसी शाही विरासत को छोड़ने और पश्चिम के साथ तेजी से घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए आगे बढ़ा।
स्वतंत्रता के बाद से यूक्रेन आन्तरिक संघर्ष से ग्रस्त है। देश के पश्चिमी हिस्से में मांग है कि यूक्रेन को पश्चिमी देशों से मिल जाना चाहिए जबकि पूर्वी अंचल चाहता है कि रूस के साथ बने रहा जाये।
बवाल तब शुरू हुआ जब 2014 में तत्कालीन यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच (Viktor Yanukovich) ने मास्को के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बनाये रखने के लिए यूरोपीय संघ के साथ जाने के समझौते को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए और अंततः उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इन प्रदर्शनों के पीछे अमेरिका का समर्थन था जिससे रूस बेहद नाराज हो गया। इसके बाद रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया और यूक्रेन के पूर्व में फैले अलगाववादी विद्रोह को अपना खुला समर्थन दे दिया। उक्रेन के पूर्व में 7 फीसदी हिस्सा अब भी रूस के कब्जे में है। इसके बाद रूस समर्थित अलगाववादियों ने उक्रेन के औद्योगिक क्षेत्र दोनबास पर हमला कर दिया जिसमें कम से कम 14 हजार लोग मारे गए।
उरेन और पश्चिमी देशों का आरोप है कि रूस अलगाववादियों को हथियार बेचता है और और अपनी सैन्य मदद भी करता है।
रूस चाहता है यूक्रेन नाटो में ना हो शामिल
रूस का कहना है कि अमेरिका और नाटो देश यूक्रेन को हथियार देते हैं और उसके साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं। रूस चाहता है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल न किया जाए, नाटो यूक्रेन-रूस सीमा पर सभी संयुक्त सैन्य अभ्यास बंद करे तथा मध्य व पूर्वी यूरोप से नाटो सेनाएं हटा ली जाएँ। अमेरिका, नाटो देश यूक्रेन के साथ पूरी एकजुटता दिखा रहे हैं और यही मामले की असली जड़ है।
रूस और यूक्रेन। के बीच तनाव की मूल जड़ यूक्रेन। द्वारा अपनी संप्रभुता पर जोर देना और पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका की तरफ झुकना है। पूर्व सोवियत संघ में रूस भी था और उक्रेन भी। संघ के विघटन के बाद भले ही उक्रेन का एक अलग अस्तित्व बन गया लेकिन रूस आज भी उसके बारे में सीमित संप्रभुता का नजरिया रखता है। 1991 से एक स्वतंत्र देश होने के बावजूद एक पूर्व सोवियत गणराज्य के रूप में, यूक्रेन को रूस अपने प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। हालाँकि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन और रूस ने दशकों तक बहुत करीबी संबंध बनाए रखे। लेकिन दोनों के बीच कई विवादित मुद्दे बने रहे।
सोवियत संघ के पतन के साथ खोए हुए साम्राज्य के कुछ अंशों को पुनः प्राप्त करने में प्रेसिडेंट पुतिन लगे हुए हैं और उनके फोकस में यूक्रेन है। पुतिन ने कहा है कि यूक्रेनियन और रूसी 'एक लोग थे' और दोनों के बीच बाहरी ताकतों ने दीवार बनाई है। पुतिन की निगाह में यह रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अक्षम्य है।