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Russia-Ukraine Crisis: विश्व में उभरती महाशक्तियां एवं अमेरिका का घटता वर्चस्व

अंतरराष्ट्रीय समुदायों में महाशक्ति बनने की होड़ लगी है उसमें कहीं ना कहीं अमेरिका का वर्चस्व घटता हुआ सा लग रहा है। पिछले कई वर्षों में हमने देखा है की अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद भी रूस ने अपने सोवियत संघ के पुनः निर्माण के सपने की ओर हर मुमकिन कदम उठाया है।

Saril Raj
Written By Saril RajPublished By Deepak Kumar
Published on: 28 Feb 2022 5:25 PM IST (Updated on: 1 March 2022 12:00 PM IST)
America president joe biden
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन (Social Media)

Russia-Ukraine Crisis: जिस प्रकार से अंतरराष्ट्रीय समुदायों में महाशक्ति बनने की होड़ लगी है उसमें कहीं ना कहीं अमेरिका का वर्चस्व घटता हुआ सा लग रहा है। हाल ही में अमेरिका (America) द्वारा अफगानिस्तान (afghanistan) से बाहर निकलते ही तालिबान (taliban) का अफगानिस्तान पर कब्जा हो या फिर यूक्रेन (Ukraine) और रूस (Russia) के बीच का युद्ध पहले तो अमेरिका (America) ने यूक्रेन (Ukraine) को NATO Forces की ओर से हर प्रकार का समर्थन देने की बात की और जब रूस ने यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की तो अमेरिका खुद को रूस के सामने सीधे खड़ा होने से बचाता नजर आया, जुबानी तौर पर तो जो बिडेन सरकार (Joe Biden Government) ने इस युद्ध को रोकने की कोशिश तो बहुत की मगर रूस ने महाशक्ति अमेरिका के हस्तक्षेप को दरकिनार करते हुए युद्ध छेड़ दिया।

UN एवं NATO भी वर्तमान परिवेश में कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं जिस प्रकार से रूस (Russia) ने वीटो लगा कर UNSC में खुद को सुरक्षित कि वहीं दूसरी तरफ NATO के सदस्य देशों द्वारा यूक्रेन (Ukraine) पर हमला ना करने की चेतावनी को भी रूस ने अनसुना कर दिया रूस का यह आक्रामक बर्ताव मन में कई प्रकार के प्रश्न उत्पन्न करता है, क्या रूस का यहां बर्ताव सोवियत संघ के पुनर्गठन की ओर उठाए गए कदम में से एक है? क्या यूक्रेन पर हमला (Attack in Ukraine) नाटो देशों की शक्ति को परखने के लिए था अगला हमला किसी नाटो सदस्य देश पर होने वाला है? इसी श्रंखला में बाल्टिक देशों के समूह में से एक लिथोनिया जो NATO का सदस्य है उसने रूस के हमले का अगला शिकार होने के डर से अपने देश में इमरजेंसी लगा दी है। रूस (Russia) ने अपने "कैलिनिनग्राद ओबलासट" में परमाणु मिसाइलें भी स्थापित कर दि हैं यह छेत्र लिथोनिया के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है।

रूस ने अपने सोवियत संघ के पुनः निर्माण के सपने की ओर उठाया हर मुमकिन कदम

पिछले कई वर्षों में हमने देखा है की अमेरिका (America) के हस्तक्षेप के बाद भी रूस ने अपने सोवियत संघ के पुनः निर्माण के सपने की ओर हर मुमकिन कदम उठाया है फिर चाहे 2008 का जॉर्जिया पर हमला हो या अमेरिका के विरुद्ध जाकर ईरान के साथ मिलकर सीरिया के गृहयुद्ध में हस्तक्षेप‌ करना और अपना मिलिट्री बेस स्थापित करना हो या फिर अब यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई, रूस ने समय-समय पर अपने सभी पड़ोसी देशों को और सोवियत संघ के पुराने साथियों को नाटो से दूर रहने की हिदायत दी है यह हम सभी जानते हैं की यूक्रेन (Ukraine) कई वर्षों से नाटो का सदस्य होना चाह रहा था परिणाम स्वरूप आज यूक्रेन रूस का हमला झेल रहा है। अमेरिका (america) के लिए संकट केवल रूस ही नहीं है फ्रांस, चीन, जर्मनी, ब्रिटेन आदि भी है।

फ्रांस और चाइना संयुक्त रूप में अफ्रीका में कर रहे साझा निवेश

फ्रांस और चाइना संयुक्त रूप में अफ्रीका महादेश में साझा निवेश कर रहे यह वैश्विक स्तर पर हमने पहली बार देखा है कि दो देश एक साथ मिलकर किसी तीसरे देश में एक साथ निवेश कर रहे हो यह वैश्विक परिवेश में एक नया मील का पत्थर साबित हो सकता है, यह तो हम सभी जानते हैं कि चाइना की कर्ज देकर जमीन कब्जा करने की नीति से चाइना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि कितनी खराब है उसको सुधारने के लिए फ्रांस ने कदम उठाया है, जिसमें पूंजी फ्रांस की होगी और टेक्नोलॉजी और लेबर चाइना की। फ्रांस ना केवल चाइना के साथ निवेश कर रहा है वह अमेरिका के मुंह से सैन्य सौदे भी छीन रहा है। इंडोनेशिया अमेरिका से F-15 की डील करना चाहता था उस दिन के हरी झंडी मिलने से 1 दिन पहले फ्रांस ने इंडोनेशिया को अपने राफेल हवाई जहाज बेचकर अमेरिका को तगड़ा झटका दिया है।

फ्रांस की नितियां अमेरिका के लिए बनी हुई सिर का दर्द

फ्रांस की यह नितियां भी अमेरिका के लिए सिर का दर्द बनी हुई हैं। जो चाइना अमेरिका के लिए कई वर्षों से सिर का दर्द बना हुआ है उसे काउंटर करने के लिए अमेरिका (America) यूनाइटेड किंगडम (UK) और ऑस्ट्रेलिया तीनों ने साथ मिलकर AUKUS समझौता किया है जिससे इंडो-पेसिफिक समुद्र क्षेत्र में अमेरिका और यूके ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी विकसित करने में सहायता करेंगे यह चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए पश्चिम का प्रयास है। जर्मनी भी पीछे नहीं है जिस प्रकार से अमेरिका ने यूक्रेन में सैन्य समर्थन देने में हिचकिचाहट दिखाई और उसका फायदा उठाते हुए जर्मनी ने यूरोपियन यूनियन के नियमों को दरकिनार करते हुए अपने सहयोगी देश नीदरलैंड एवं एस्टोनिया की मदद से 400 जर्मन मेड टैंक 9 D-30 howitzer तोप 400 वार हेलमेट एवं गोला बारुद यूक्रेन भेज कर अमेरिका को यह दिखा दिया है कि कई देश बेसब्री से उसका स्थान लेने के लिए तैयार हैं।

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