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चीन को करारा झटका: दोबारा ताइवान की राष्ट्रपति चुनी गईं साई इंग वेन

ताइवान 1950 से ही स्वतंत्र रहा है, लेकिन चीन इसे अपना विद्रोही राज्य मानता है। चीन का मानना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए और इसके लिए चाहे बल प्रयोग ही क्यों न करना पड़े। चीन दुनिया के किसी भी उस देश के साथ राजनयिक संबंध नहीं रखता जो ताइवान को एक स्वतंत्र देश की मान्यता देता है।

Shivakant Shukla
Published on: 12 Jan 2020 6:37 PM IST
चीन को करारा झटका: दोबारा ताइवान की राष्ट्रपति चुनी गईं साई इंग वेन
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नई दिल्ली: ताइवान में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव के नतीजों से चीन को भारी झटका लगा है। ताइवान के लोगों ने साई इंग वेन को दोबारा राष्ट्रपति चुनकर चीन को बड़ा झटका दे दिया है। साई इंग वेन हमेशा चीनी दबाव को मानने से इनकार करती रही हैं। 57 फीसदी यानी 80 लाख से अधिक मत हासिल करने के बाद अपनी जीत की घोषणा करते हुए साई ने चीन को चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा कि ताइवान के लोगों ने अपनी मंशा साफ कर दी है।

ताइवान के लिए खतरा न बने बीजिंग

राष्ट्रपति चुने जाने के बाद साई ने कहा कि मतदाताओं ने मुझे एक बार फिर राष्ट्रपति चुनकर चीन को साफ कर दिया है कि बीजिंग ताइवान के लिए खतरा बनना बंद कर दे। उन्होंने चीन को चेतावनी दी कि चीन को अब ताइवान पर बल प्रयोग की धमकियां देना छोड़ देनी चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि चीनी अधिकारी इस बात को समझेंगे कि लोकतांत्रिक ताइवान और हमारी लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार खतरों व धमकियों को स्वीकार नहीं करेगी।

चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर आक्रामक रुख

ताइवान में राष्ट्रपति पद के चुनाव में साई की मुख्य प्रतिद्वंद्वी खान ग्वो यी थीं मगर वे 38 फीसदी मत ही पा सकीं। कुओमिनटांग पार्टी की खान ग्वो ने चुनाव प्रचार के दौरान चीन के साथ तनाव कम करने का वादा किया था। दूसरी ओर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की साई ने चुनाव प्रचार के दौरान आक्रामक रुख अपनाया और मतदाताओं के बीच साफ किया कि वे चीन से करीबी रिश्ते नहीं चाहतीं। मतदाताओं ने चीनी दबाव में न आने के उनके रुख को भरपूर समर्थन दिया है। ताइवान के चुनावी अभियान में चीन का डर सबसे बड़ा मुद्दा था। चुनाव प्रचार के दौरान साई ने कहा था कि हांगकांग के लोगों ने हमें बता दिया है कि एक देश, दो व्यवस्था एक नाकाम फॉर्मूला है और हम भी उसका विरोध करते हैं।

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साई ने अपनी जीत की घोषणा करते हुए कहा कि ताइवान दुनिया को दिखा रहा है कि हम जीवन के अपने लोकतांत्रिक तरीके का कितना आनंद उठाते हैं और हम अपने देश को कितना पसंद करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मतदाताओं ने फिर से मुझे चुनकर बता दिया है कि बीजिंग ताइवान के लिए खतरा बनना बंद कर दे। शांति का अर्थ यह है कि चीन ताइवान पर बल प्रयोग की धमकियां देने की आदत बदल ले।

अब हांगकांग में तेज होंगे प्रदर्शन

जानकारों का कहना है कि साई की जीत ने साबित किया कि उनके चुनाव अभियान ने लोगों को चीन के इरादों से तेजी से सावधान किया। माना जा रहा है कि मतदाताओं ने स्वशासित द्वीप ताइवान को अलग-थलग करने के चीन के अभियान को सिरे से खारिज कर दिया है। वहीं इससे चीन के अर्धस्वायत्त क्षेत्रों की स्वतंत्रता के लिए आवाज बुलंद होगी और हांगकांग में भी प्रदर्शनों के गति पकडऩे की उम्मीद जताई जा रही है।

आखिर क्या है चीन-ताइवान विवाद

चीन 1949 में गृह युद्ध की समाप्ति के बाद से ही ताइवान पर अपना दावा करता आया है। दूसरी ओर ताइवान चीन के दावे को स्वीकार नहीं करता। चीन का मानना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए और फिर इसके लिए चाहे बल प्रयोग ही क्यों न करना पड़े। ताइवान का अपना आधिकारिक नाम ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ और चीन का आधिकारिक नाम ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ है।

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दोनों के नाम में चाइना जुड़ा हुआ है। ताइवान 1950 से ही स्वतंत्र रहा है, लेकिन चीन इसे अपना विद्रोही राज्य मानता है। चीन का मानना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए और इसके लिए चाहे बल प्रयोग ही क्यों न करना पड़े। चीन दुनिया के किसी भी उस देश के साथ राजनयिक संबंध नहीं रखता जो ताइवान को एक स्वतंत्र देश की मान्यता देता है।

Shivakant Shukla

Shivakant Shukla

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