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सलमान रुश्दी ही नहीं इन लेखकों की किताब भी रही है विवादित, जान बचाने के लिए छोड़ना पड़ा अपना मुल्क

Contoversial Books: भारतीय मूल के ब्रितानी लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमले के बाद से दुनियाभर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक नया बहस छिड़ गया है।

Krishna Chaudhary
Published on: 13 Aug 2022 6:54 PM IST
Not only Salman Rushdie, the book of these authors has also been controversial
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सलमान रूश्दी (द सैटेनिक वर्सेज): Photo- Social Media

Controversial Books: भारतीय मूल के ब्रितानी लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमले (Deadly attack on Salman Rushdie) के बाद से दुनियाभर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of expression) पर एक नया बहस छिड़ गया है। रूश्दी के ऊपर अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में तब हमला किया गया था, जब वह एक कार्यक्रम में व्याख्यान देने पहुंचे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हमलावर ने रूश्दी पर ताबड़तोड़ चाकू से कई वार (stabbing) किए। हमले के वक्त हॉल में चार हजार से अधिक लोग मौजूद थे। सलमान रूश्दी की हालत चिंताजनक बताई जा रही है। डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखा है।

लेखकों के सामने चुनौतियां

इस घटना की दुनियाभर में तीखी आलोचना हो रही है। खासकर पश्चिम के देशों से अधिक प्रतिक्रियाएं देखऩे को मिल रही हैं। इस हमले ने दुनिया में लेखकों के सामने मौजूद चुनौतियों को एक बार फिर सबके सामने खोल दिया है। रूश्दी की तरह कुछ और लेखक हैं, जिनकी किताबों से खासा हंगामा बरपा है। कुछ को तो इसकी कीमत अपनी मातृभूमि छोड़कर चुकानी पड़ी है। तो आइए एक नजर ऐसे किताबों और उसके लेखकों पर डालते हैं –

1.सलमान रूश्दी (द सैटेनिक वर्सेज) – भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रूश्दी दुनियाभर में अपनी लेखनी के लिए मशहूर हैं। उन्हें बुकर प्राइज से सम्मानित किया जा चुका है। साल 1988 में उनकी किताब द सैटेनिक वर्सेज ने खूब हंगामा बरपाया था। दुनिया के कई देशों में इसके खिलाफ हिंसक विरोध – प्रदर्शन तक शुरू हो गए थे। रूश्दी के खिलाफ ईरान के सर्वोच्च नेता खोमैनी ने फतवा जारी कर रूश्दी को मौत की सजा सुना दी थी। उनकी हत्या करने वालों को 30 लाख डॉलर इनाम देने की घोषणा की गई थी। रूश्दी तभी से इस्लामिक चरमपंथियों और आतंकवादी गुटों के निशाने पर हैं। रूश्दी के जन्मस्थान भारत में भी उनके लिए दरवाजे बंद हो गए थे। उनकी किताब को यहां भी बैन कर दिया गया था। रूश्दी को करीब 10 सालों तक पुलिस सुरक्षा में रहना पड़ा था। शुक्रवार को उनपर हुए हमले को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

2.तसलीमा नसरीन (लज्जा) – बांग्लादेश की मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन साहित्य जगत में जाना – माना चेहरा बन चुकी हैं। पेशे से डॉक्टर रहीं तसलीमा ने कई किताबें लिखी हैं। उनके द्वारा लिखी गई नॉवेल 'लज्जा' पर भारत में फिल्म भी बन चुका है। लेकिन ये किताब मुस्लिम अतिवादियों और कट्टरपंथियों को रास नहीं आया और उनके खिलाफ फतवे जारी होने शुरू हो गए। बांग्लादेश में खतरे को देखते हुए वह 2004 में भारत आ गईं, तब से वो यहीं रह रही हैं।

हालांकि, उन्हें स्वीडन की नागरिकता मिली है। फिर भी वो भारत में ही रहना पसंद करती हैं। तसलीमा अक्सर इस्लाम धर्म में व्यापत बुराईयों और रूढ़िवादी परंपराओं के खिलाफ बोलती रहती हैं। यहां तक कि वह ट्वीटर पर बायकॉट इस्लाम तक लिख चुकी हैं। इसलिए वह हमेशा से कट्टरपंथियों के निशाने पर रहती हैं। तसलीमा नसरीन ने सलमान रूश्दी पर हुए जानलेवा अटैक पर भी चिंता प्रकट की है।

3.कैथरीन मेयो (मदर इंडिया) – अमेरिकी इतिहासकार कैथरीन मेयो की 1927 में प्रकाशित किताब 'द फेस ऑफ मदर इंडिया' प्रकाशित होने के बाद जब बाजार में आई तब भारी बवाल हुआ था। किताब में भारतीय को शासन चलाने में अनुपयुक्त बताया गया था। साथ ही हिंदुओं के खिलाफ भी काफी बातें लिखी गई थी। इस किताब की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी तीखी आलोचना की थी। साल 1936 में इस किताब को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया था।

4.स्टैनले वोलपर्ट ( नाइन आवर्स टू रामा) – अमेरिकी लेखक स्टैनले वोलपर्ट द्वारा लिखित नाइन आवर्स टू रामा में महात्मा गांधी के हत्या से पहले के कुछ घंटे नाथूराम गोडसे ने किस तरह बिताए होंगे, इसकी कल्पना की गई थी। किताब में तथ्यात्मक गलती पाए जाने के बाद साल 1962 में इसे देश में बैन कर दिया गया था।

5.वी.एस. नॉयपॉल (एन एरिया ऑफ डॉर्कनेस) - वीएस नॉयपॉल ने अपनी किताब एन एरिया ऑफ डॉर्कनेस में भारत के सामाजिक और आर्थिक स्तिथि पर अपना नजरिया पेश किया था। उन्होंने देश के भारत के सामाजिक और आर्थिक प्रगति पर सवाल उठाए थे। भारत सरकार ने साल 1964 में उनकी किताब बैन कर दी थी।

6.इसी तरह साल 1975 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू पर लिखी गई किताब 'नेहरू: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी' को बैन कर दिया गया था। इसे माइकल ब्रीचर ने लिखा था। किताब में तथ्यात्मक त्रुटियों की बात कही गई थी।

Shashi kant gautam

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