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जनता का आक्रोश भड़का, जलने लगा दक्षिण अफ्रीका
South Africa Violence: दक्षिण अफ्रीका में जो उपद्रव शुरू हुआ है उसकी वजह सिर्फ जैकब जुमा की गिरफ्तारी नहीं है बल्कि इसके सामाजिक कारण हैं।
South Africa Violence: दक्षिण अफ्रिका में इन दिनों आग लगी हुई है, जगह जगह हिंसक प्रदर्शनों से दर्जनों लोगों की जान जा चुकी है और बड़े पैमाने पर सार्वजानिक और निजी संपत्तियों का नुकसान हुआ है। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व प्रेसिडेंट जैकब जुमा को अदालत की अवमानना के मामले में जेल भेजे जाने के बाद से देश में बवाल शुरू हो गया था। जैकब जुमा की गिरफ्तारी भ्रष्टाचार के एक मामले में जांच के लिए हाजिर न होने के बाद हुई थी। उनको 13 महीने की सजा सुनाई गयी है।
दक्षिण अफ्रीका पहले भी कई बार हिंसा की चपेट में आ चुका है लेकिन अब जो हालात हैं वो कई साल से नहीं देखे गए थे। पिछले हफ्ते जैकब जुमा की गिरफ्तारी के बाद सबसे पहले क्वाज़ुलु – नाटाल में विरोध प्रदर्शनों का एक सिलसिला शुरू हुआ था जो बहुत जल्द हिंसक हो कर अन्य जगहों में फ़ैल गया। अब ये हिंसा देश के सबसे बड़े शहर जोहानसबर्ग से होती हुई तटीय शहर डरबन तक पहुंच चुकी है। विरोध प्रदर्शनों के तौर पर शुरू हुई यह हिंसा अब लूटपाट और आगजनी में बदल चुकी है। मॉल लुटे जा रहे हैं, दुकानें जलाई जा रही हैं। लोगों को बीच सड़क गोली मारी जा रही है।
गुस्से की असली वजह कुछ और है (Riots Reason)
ऐसा माना जा रहा है कि दक्षिण अफ्रीका में जो उपद्रव शुरू हुआ है उसकी वजह सिर्फ जैकब जुमा की गिरफ्तारी नहीं है बल्कि इसके सामाजिक कारण हैं। दरअसल, इस देश की आज़ादी के बाद से जनता ने जो ख्वाब देखे थे, जो अपेक्षाएं थीं वो सब मिट्टी में मिल चुके हैं। रंगभेद की नीति खत्म होने के 27 साल बाद भी देश में जारी असमानता और गरीबी के कारण लोगों के अंदर जबर्दस्त गुस्सा है। यही गुस्सा, आक्रोश और निराशा अब फूट रहा है। देश के हालातों में कोरोना महामारी ने और भी पलीता लगाया हुआ है और आर्थिक और सामाजिक मुश्किलें और बढ़ी हैं और गरीबी भी फैली है।
72 लोगों की मौत
दक्षिण अफ्रीकी पुलिस ने कहा है कि अब तक कम से कम 72 लोगों की जान जा चुकी है और 1,234 लोग गिरफ्तर किये गए हैं। दो और प्रांतों में हिंसा फैलने की खबरों के बीच पुलिस का कहना है कि पुलिसकर्मी खतरे के तौर पर चिन्हित इलाकों में गश्त कर रहे हैं ताकि मौके का फायदा उठाकर हो रहीं आपराधिक गतिविधियों को रोका जा सके। हालात बिगड़ते देख कर सेना को भी सड़कों पर उतार दिया गया है ताकि हिंसा को रोका जा सके।
देश में हो रही हिंसा का चौतरफा असर हो रहा है। बैंकों, प्रॉपर्टी और रीटेल कंपनियों के शेयरों की कीमतों में बड़ी गिरावट देखी गई। दुकानें और पेट्रोल पंप बंद पड़े हैं। डरबन के पास इसीतेबे कस्बे में एक कपड़ा फैक्ट्री है, यहाँ की टेक्सटाइल यूनियन का कहना है कि मशीनें और सामान लूट लिया गया है इसलिए फैक्ट्री को बंद करना पड़ेगा। उपद्रव में गन्ने के खेतों को जला दिया गया है। अनुमान है कि करीब 3 लाख टन गन्ना फूंक दिया गया। हिंसा की वजह से फलों का निर्यात रोक दिया गया है। स्पेन के बाद दक्षिण अफ्रीका साइट्रस यानी संतरे की प्रजाति वाले फलों का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। हिंसा की वजह से दक्षिण अफ्रिका की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है जिसकी झलक अभी से मिलनी शुरू हो गयी है।
जुमा और भ्रष्टाचार
79 वर्षीय जैकब जुमा को पिछले महीने संवैधानिक आदेश का पालन न करने के लिए सजा सुनाई गई थी। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे जिनकी जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाई गई है। इस समिति ने जुमा को पेश होने के लिए कहा था लेकिन वह नहीं आए, जिसके बाद उन्हें संवैधानिक आदेश की अवहेलना का दोषी पाया गया।
उन्होंने आत्मसमर्पण किया जिसके बाद से वह जेल में हैं। जुमा पर भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, हवाला और रैकिटीयरिंग के आरोपों में भी मुकदमा चल रहा है। मई में उन्होंने खुद को निर्दोष बताया था। जुमा की संस्था ने कहा है कि जब तक पूर्व राष्ट्रपति जेल में हैं, दक्षिण अफ्रीका में शांति नहीं होगी। जुमा ने रंगभेद व्यवस्था के खिलाफ लम्बी लड़ाई लड़ी थी। लेकिन उनके शासनकाल काल के अंतिम दौर में उनपर बहुत आरोप लगे।
भारतीय मूल के गुप्ता बंधुओं से उनकी मित्रता और गुप्ता बंधुओं की दक्षिण अफ्रीका में राजनीतिक हैसियत के चर्चे कुछ वर्ष पूर्व बहुत हुए थे। भ्रष्टाचार के मामलों की वजह से ही जुमा की सरकार का पतन हुआ था।
रंगभेद हटा पर हालात नहीं बदले
वर्तमान स्थिति को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के बाद देश में कानून के राज की स्थिति को संभालने के मानक के तौर पर देखा जा रहा है। हिंसा को 1994 में आई आजादी के बाद लोगों की उम्मीदों के ना पूरे होने से जोड़कर देखा जा सकता है। देश में गरीब और अमीर की खाई बढ़ती गयी है। लोग अब भी मजदूरी और ऐसे ही काम करने को मजबूर हैं। बड़ी संख्या में लोग खेतिहर मजदूर हैं।
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