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Sri Lanka Economic Crisis: आर्थिक संकट के दलदल में फंसा श्रीलंका, बेहाल नागरिक भाग कर भारत पहुंच रहे
Sri Lanka Economic Crisis: श्रीलंका के आर्थिक संकट के बाद अब हजारों लोग देश छोड़ कर समुद्र के रास्ते भारत आ रहे हैं। तमिलनाडु तट पर पहुंचे शरणार्थियों को अभी समुद्री पुलिस की निगरानी में रखा गया है।
Srilanka Economic Crisis: श्रीलंका के आर्थिक संकट अब वहां के लोगों के लिए इतना असहनीय हो गया है कि हजारों लोग देश छोड़ कर समुद्र के रास्ते भारत आ रहे हैं। तमिलनाडु तट पर पहुंचे शरणार्थियों को अभी समुद्री पुलिस की निगरानी में रखा गया है, क्योंकि इस समय उन्हें अवैध प्रवासी माना जा रहा है। उनके पास उनके पासपोर्ट नहीं हैं। लेकिन मानवीय आधार पर जिला प्रशासन उनके लिए प्रबंध करने के लिए तैयार है।
भारी संकट
गृह युद्ध, सुनामी और उसके बाद कोरोना महामारी - इन सबका श्रीलंका पर बहुत गहरा और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है। चाय, कपड़ा उद्योग और पर्यटन पर निर्भर श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर पहले ही कोरोना (Corona) के दौरान मार पड़ी थी। अब देश में विदेशी मुद्रा की भारी कमी हो गई, जिसकी वजह से सरकार आम जरूरत के सामान के आयात की कीमत नहीं चुका पा रही है।
खाद्य वस्तुओं में भारी कमी
इस वजह से दवाओं, ईंधन, दूध का पाउडर, रसोई गैस आदि जैसी चीजों की भारी कमी हो गई है। जितना भंडार उपलब्ध है उसके दाम छप्पर फाड़ कर निकल गए हैं। श्रीलंका में चावल और चीनी के दाम लगभग 300 रुपये किलो तक पहुंच गए हैं और आने वाले दिनों में 500 रुपए किलो तक पहुंच सकते हैं। दूध का पाउडर करीब 1600 रुपये किलो बिक रहा है। ईंधन की कमी की वजह से बिजली संयंत्र भी ठीक से नहीं चल पा रहे हैं और रोज बिजली कट रही है।
पेट्रोल पंपों और किरासन तेल की दुकानों के बार लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं। इसी सप्ताह इन्हीं कतारों में खड़े खड़े कम से कम तीन बुजुर्गों की मौत हो गई, जिसके बाद सरकार ने पेट्रोल पंपों और किरासन की दुकानों पर सेना के सिपाहियों को तैनात कर दिया है। इन्हीं हालत से परेशान हो कर जो लोग कुछ रकम जुटा कर तस्करों को देने में सफल हो पा रहे हैं, तस्कर उन्हें भारत भेज दे रहे हैं। श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे हाल में भारत आए थे और उनकी यात्रा के दौरान भारत ने उनके देश को एक अरब डॉलर का कर्ज देने की घोषणा की। श्रीलंका सरकार (Government of Sri Lanka) ने आईएमएफ से भी मदद की गुहार लगाई है।
कर्ज में डूबा श्रीलंका
श्रीलंका कर्ज में गहराई से डूबा हुआ है। इसका सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 119 प्रतिशत होने का अनुमान है। इसका मतलब है कि उसने जितना उत्पादन किया है, उससे अधिक उधार लिया है। श्रीलंका ने विदेशी बाजारों से भारी उधार लिया है। उधार का सबसे बड़ा हिस्सा अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड में किया गया है, जो कुल विदेशी कर्ज का 36.4 फीसदी है। इसका दूसरा सबसे बड़ा ऋणदाता एशियाई विकास बैंक (एडीबी) है, जिसने कुल का 14.6 प्रतिशत दिया। फिर जापान और चीन ने क्रमश: 10.9 और 10.8 फीसदी दिया है। भारत ने 1.4 अरब डॉलर का कर्ज दिया है, जो जापान या चीन की तुलना में लगभग एक तिहाई है। श्रीलंका ने एक अरब डॉलर और मांगे हैं।
2004 की सुनामी के बाद, सरकार ने बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण शुरू किया। एडीबी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2006 से सार्वजनिक व्यय निवेश वृद्धि का मुख्य चालक बन गया। सरकार ने विदेशी उधारी के माध्यम से अपने निवेश का वित्तपोषण शुरू किया। 2007 में, श्रीलंका ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय संप्रभु बांड 500 मिलियन के लिए जारी किया था।
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