Noor Inayat Khan: जानिए उस नूर को जो थी टीपू सुल्तान की वंशज, एक शानदार जासूस जिसने झुकना नहीं सिखा

Noor Inayat Khan: 27 नवंबर 1943 को पकड़े जाने के बाद से 11 सिंतबर 1944 तक नूर को अमानवीय यातनाये दी गई फिर उन्हें गोली मार दी गई।

Rakesh Mishra
Report Rakesh MishraPublished By Ragini Sinha
Published on: 17 April 2022 8:56 AM GMT
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नूर इनायत खान (Social media)

Noor Inayat Khan: 11 सिंतबर 1944, तीन साथियों के साथ एक 30 साल की महिला को जर्मनी के डकाऊ कैंप लाया जाता है। यहां इन सभी को अमानवीय यातनाएं दी जाती है। मंशा ये है कि ये सभी वो जानकारी दे दें जो उन्होंने ब्रिटेन के लिए जुटाई हैं। लेकिन इन 4 ने यातनाओं के सामने घुटने नहीं टेके और 13 सितम्बर 1944 की भोर इन चारों को सिर पर बेहद करीब से गोली मार दी जाती है। मारी गई महिला का नाम है नूर इनायत ख़ान। जो एक जासूस है, और मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के पड़पोते हज़रत इनायत ख़ान की बेटी। हम आपको बता रहे हैं ऐसी जासूस की कहानी जिसने मरना कुबूल किया लेकिन झुकना नहीं।

नूर 1 जनवरी, 1914 को मॉस्को में जन्मी। पिता इनायत भारतीय थे और मां एक अमेरिकी। पिता इनायत सूफीवाद के प्रचारक थे और यूरोप में सूफीवाद का प्रसार करने मे उन्होंने काफी काम किया था। परिवार रूस, ब्रिटेन होते हुए फ्रांस में बस गया था।

1940 में फ्रांस पर जर्मनी के कब्जे के बाद नूर ब्रिटेन चली गई

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद परिवार एकबार फिर लंदन आता है। जहां से 1920 में एकबार फिर फ्रांस वापसी होती है। 1927 में पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी नूर पर आ गई। फ्रेंच रेडियो में काम करने के बदले जो पैसे मिलते उससे घर चलता और बाकी के समय नूर सूफीवाद का प्रचार करती। जब 1940 में फ्रांस पर जर्मनी ने कब्ज़ा कर लिया तो नूर ब्रिटेन चली गई।

1940 में नूर ने नोराह बेकर छद्म नाम से विमिन्स ऑग्जिलरी एयरफोर्स जॉइन की और वायरलेस ऑपरेटर के ट्रेनिंग ली। 1943 में स्पेशल ऑपरेशन्स के लिए नूर को जर्मन कब्जे वाले फ्रांस भेजा जाता है। यहां जीन मैरी रेनियर के नाम से वो बच्चों की नर्स के बन गई।

1943 को माइकल पेल्लिस ने नूर की पहचान उजागर कर दी

नूर का काम था ब्रिटेन के जो भी सैनिक पकड़े जाएं उन्हें सुरक्षित देश कैसे भेजे इसका इंतजाम करना। इसके साथ ही वो जरुरी जानकारी ब्रिटेन सेना को भेजती थी। इस काम में काफी जोखिम था। कई बार उनकी जान खतरे में भी पड़ी। नूर ने अपना काम नहीं छोड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब सारे साथी जर्मन सैनिकों की गिरफ्त में थे। नूर के पास भागने का मौका था लेकिन वो डटी रहीं।

13 अक्टूबर, 1943 को माइकल पेल्लिस ने नूर की पहचान उजागर कर दी और उन्हें गिरफ्तार किया गया। इस दौरान जेल से भागने के नूर ने दो विफल प्रयास किए। 25 नवम्बर 1943 को नूर भागने में सफल हुई लेकिन कुछ देर में ही पकड गई। 27 नवम्बर 1943 को नूर को पेरिस से जर्मनी के फ़ॉर्जेम जेल भेजा गया।

11 सिंतबर 1944 तक नूर को अमानवीय यातनाये दी जाती रही और फिर उन्हें गोली मार दी जाती है। नूर को ब्रिटेन ने जॉर्ज क्रॉस और मेंसंड इन डिस्पैचिज से सम्मानित किया। वहीँ फ्रांस ने नूर को क्रोक्स डी गेयर से सम्मानित किया।

वहीँ एक सवाल आज भी अपना उत्तर तलाश रहा है कि सूफीवाद का प्रचार प्रसार करने वाली एक नाजुक लड़की के साथ ऐसा क्या हुआ कि वो एक जासूस बन गई? सिर्फ इतना ही नहीं कैसे विंस्टन चर्चिल की कोर टीम में भी शामिल हो गई?

Ragini Sinha

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