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Study- क्या बुढ़ापा रोक सकते हैं या उम्र बढ़ाई जा सकती है? सबसे बड़ी स्टडी में निष्कर्ष
Study: क्या बुढ़ापा रोका जा सकता है, इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए 14 देशों के वैज्ञानिकों और एक्सपर्ट्स ने अब तक की सबसे बड़ी स्टडी की जिसमें पता चला है कि हम बुढ़ापे की रफ्तार को धीमा नहीं कर सकते हैं।
Study: अमर हो जाना या हमेशा जवान बने रहना - ये सब मिथक हैं। न तो बुढ़ापा रोका जा सकता (Budhapa Rok sakte Hai) है और न मौत टाली जा सकती है।
अब की एक सबसे बड़ी स्टडी ने इस तथ्य पर मुहर लगा दी है। इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया है कि चाहे कोई कितना भी जतन कर ले, उम्र बढ़ने के साथ शरीर पर पड़ने वाले असर को रोक नहीं सकता। कोई प्रोडक्ट या कोई भी उपाय इंसान की जैविक प्रक्रिया को बदल नहीं सकता है।
बुढ़ापे को रोकने, हमेशा जवान बने रहने या असीमित उम्र तक जीने के उपाय खोजने में सरकारों, कॉरपोरेट्स, निवेशकों ने अरबों डॉलर खर्च किये हैं, वैज्ञानिकों ने दशकों तक सिर खपाया है। जेनेटिक्स से ले कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक का इस्तेमाल किया गया है लेकिन अभी तक कोई फार्मूला नहीं निकल पाया। बुढ़ापा और उम्र रोकने के लिए लोग तरह तरह के जतन करते हैं और ऐसे उत्पादों का बहुत बड़ा बिजनेस है। ये इंडस्ट्री 110 बिलियन डॉलर की है जो 2025 तक 610 बिलियन की हो जाने का अनुमान है।
अब की सबसे बड़ी स्टडी
क्या बुढ़ापा रोका जा सकता है, इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए 14 देशों के वैज्ञानिकों और एक्सपर्ट्स ने अब तक की सबसे बड़ी स्टडी की जिसमें पता चला है कि हम बुढ़ापे की रफ्तार को धीमा नहीं कर सकते हैं। एक मुकाम पर पहुंच कर हमेशा से जिंदगियां खत्म होती रहीं हैं।
इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने इस अवधारणा की पड़ताल की जिसमें माना गया है कि किसी भी प्रजाति में उम्र बढ़ने की फिक्स्ड दर होती है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जोस मैनुएल अबर्तो के अनुसार, हमारी स्टडी से ये पता चलता है कि आज लोग लम्बी उम्र तक इसलिए जी रहे हैं क्योंकि कम उम्र की मृत्यु दर काफी घट चुकी है। आज की लंबी उम्र का ये मतलब नहीं है कि हमने उम्र पर जीत हासिल कर ली है।
सैकड़ों वर्षों के डेटा का अध्ययन
इस स्टडी में विभिन्न महाद्वीपों के सैकड़ों साल के जन्म व मृत्यु डेटा का अध्ययन किया गया है। इसमें मानवों और बंदरों की प्रजातियों के जन्म मृत्यु डेटा के तुलनात्मक अध्ययन से पता चला है कि उनमें मृत्यु का पैटर्न एक समान है। ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लंबी उम्र को जैविक यानी बियोलॉजिकल फैक्टर ही कन्ट्रोल करते हैं। इसमें पर्यावरण की भूमिका नहीं है। आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि स्वास्थ्य तथा रहने जीने की स्थितियां बेहतर होने से इंसान की उम्र ज्यादा होती है। ये सभी जगहों पर समान होता है। लेकिन जैसे जैसे उम्र बुढ़ापे में आगे बढ़ती जाती है वैसे ही मृत्यु दर में तेजी से वृद्धि दिखाई देने लगती है और ऐसा सभी प्रजातियों में होता है।
यूनाइटेड किंगडम ही में कम से कम 260 कंपनियों, 250 निवेशकों, 10 गैर सरकारी संस्थानों और 10 रिसर्च प्रयोगशालाओं ने दुनिया की सबसे उन्नत तकनीकों का प्रयोग करके इस बात का पता लगाने की कोशिश की है कि आखिर इंसान कितनी उम्र तक जी सकता है। यूके की सरकार ने भी इस दिशा में काम करने वाले सेक्टरों को प्राथमिकता दी है ताकि कोई अभूतपूर्व खोज होने पर ब्रिटेन सबसे आगे रहे।
स्टडी के निष्कर्ष
शोधकर्ताओं को मिले डेटा से ये निष्कर्ष निकलता है कि शिशुओं में मृत्यु का जोखिम ज्यादा होता है। ये जोखिम बच्चों के बड़े होते जाने से किशोरावस्था तक तेजी से घटता जाता है। मृत्यु दर युवास्था के शुरुआती दौर तक कम रहती है फिर बढ़ती उम्र के साथ लगातार बढ़ती जाती है।
स्टडी के अनुसार बुढ़ापे में मृत्यु दर कभी भी नहीं बदली है। ये हमेशा से वैसे ही है। मेडिकल साइंस तमाम विकास के बावजूद जैविक कारणों को पछाड़ने में नाकामयाब रहा है।
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