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अब अफगानिस्तान बनेगा चीन का गढ़, तालिबान ने दिल खोल कर स्वागत किया
तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान में चीन निवेश करे, देश का पुनर्निर्माण करे और यहां खुशहाली लाये। तालिबान ने चीन को अफगानिस्तान में पूर्ण सुरक्षा की गारंटी दी है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Taliban Invites China To Afghanistan: अफगानिस्तान से अमेरिका और यूरोपीय देशों की सेनाएं वापस जा चुकी हैं और इस देश पर तालिबान (Taliban) का कब्जा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। अब तालिबान को सबसे बड़ा दोस्त और हितैषी चीन (China) में नजर आ रहा है। और उसने चीन को अफगानिस्तान आने का बुलावा दिया है।
जिस तरह चीन ने भारत के चारों ओर के देशों में पैर जमा लिए हैं, उससे ये नए खतरे की घंटी है। तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान में चीन निवेश करे, देश का पुनर्निर्माण करे और यहां खुशहाली लाये। तालिबान ने चीन को अफगानिस्तान में पूर्ण सुरक्षा की गारंटी दी है।
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन (Suhail Shaheen) ने कहा है कि चीन हमारा दोस्त है और हम चाहते हैं कि वह जल्दी से जल्दी अफगानिस्तान में काम शुरू करे। शाहीन ने कहा कि तालिबान नेता जल्द ही चीन सरकार से बात करेंगे। उन्होंने कहा कि अब अफगानिस्तान के 85 फीसदी हिस्से पर तालिबान के नियंत्रण है और वह चीनी निवेशकों और कर्मचारियों को पूरी सुरक्षा की गारंटी देता है। उन्होंने कहा कि उनकी सुरक्षा हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
सुहैल शाहीन-शी जिनपिंग (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
शाहीन ने साफ कहा कि अब तालिबान चीन के उइघुर अलगाववादी लड़ाकों को अफगानिस्तान में शरण नहीं देगा। इसके अलावा अल कायदा या अन्य संगठनों को अफगानिस्तान से ऑपरेट करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
इस समय वैसे भी चीन अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा निवेश करने वाला देश है। चीन ने पाकिस्तान के पेशावर से काबुल तक मोटर वे योजना पर भी काम शुरू कर दिया है। यानी पाकिस्तान को अपने साथ लाने के बाद अब चीन अफगानिस्तान की तरफ से भी भारत की घेराबंदी कर रहा है और इसे रोकना भारत के लिए बड़ी चुनौती है।
अफगानिस्तान में स्थितियां गंभीर
अफगानिस्तान में अब स्थितियां काफी गम्भीर हैं और कहा जा रहा है कि आज से 20 साल पहले तालिबान इतना मजबूत नहीं था, जितना अब होता जा रहा है और ये भारत के लिए अच्छी खबर बिल्कुल नहीं है।
1999 के कंधार हाईजैक कांड में तालिबान ने आतंकवादी मसूद अजहर को छुड़ाने में मदद की थी और तब से लेकर अब तक भारत, अफगानिस्तान में तालिबान की चुनौती को कम करने के लिए काफी निवेश कर चुका है। अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी से भारत के लिए बड़ा सिरदर्द हो सकता है। भारत पिछले कुछ वर्षों में अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर यानी 2200 करोड़ रुपये निवेश कर चुका है और 600 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स भारत सरकार ने पिछले साल ही अनाउंस किए थे।
अफगानिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी लगभग 20 वर्षों से थी और इस दौरान अमेरिका ने वहां दो ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग 150 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। इनमें से ज़्यादातर पैसा तालिबान के खिलाफ युद्ध पर खर्च हुआ और काफी पैसा अफगानिस्तान की सरकार को भी मिला।
अमेरिका की तरफ से दोहा, कतर में तालिबान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए और इस समझौते में उसकी सिर्फ एक बड़ी शर्त थी अमेरिकी सेना के हटने के बाद कि तालिबान, अल कायदा या किसी दूसरे आंतकवादी संगठन को अपने नियंत्रण वाले इलाकों में ऑपरेट करने की अनुमति नहीं देगा।
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