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Taliban Ka Matlab: खौफ का दूसरा नाम तालिबान, क्या है इस शब्द का मायने, देवबंद से है खास नाता

Taliban Ka Matlab: अरबी का एक शब्द है तलबा जिसका अर्थ होता है विद्यार्थीगण। पश्तो भाषा में ये शब्द तालिबान (Taliban Meaning) हो जाता है जिसका अर्थ है ज्ञानार्थी।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shreya
Published on: 20 Aug 2021 12:46 PM IST (Updated on: 21 Aug 2021 4:06 PM IST)
Taliban Ka Matlab: खौफ का दूसरा नाम तालिबान, क्या है इस शब्द का मायने, देवबंद से है खास नाता
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(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Taliban Ka Matlab: पिछले कुछ समय से तालिबान खौफ का दूसरा नाम बन गया है। वैसे देखा जाए तो तालिबान का उदय अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं की वापसी के बाद हुआ। और शुरुआत में तालिबान ने जिस तरह से भ्रष्टाचार पर नकेल कसनी शुरू की थी उससे प्रभावित होकर अफगानिस्तान की जनता ने तालिबान का स्वागत किसी विजयी योद्धा की तरह किया था। लेकिन बाद में तालिबान पर जिस तेजी से कट्टरता रंग चढ़ा उसे देखकर अफगानिस्तान की जनता में घबड़ाहट और दहशत बढ़ती चली गई। इसी के साथ तालिबान के अत्याचार भी बढ़ते गए।

यही वजह है कि आज तालिबान को लेकर न सिर्फ अफगानिस्तान में विद्रोह है बल्कि अफगानिस्तान से करीबी रूप से जुड़े भारत के लिए भी चिंता का सबब बन गया है। आखिर ये तालिबानी कौन हैं। ये शब्द कहां से आया क्या हैं इसके मायने। भारत से इसका क्या है रिश्ता आज इन्हीं मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

पाकिस्तान का झंडा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पाकिस्तान है तालिबान की जन्म भूमि

गौर करने की सबसे अहम बात ये हैं कि तालिबान की जन्म भूमि अफगानिस्तान नहीं पाकिस्तान है। यह बात 80 के दशक की है जब सोवियत संघ की फौजों के अफगानिस्तान से जाने के बाद वहां कई गुटों में संघर्ष शुरू हो गया था और मुजाहिदीनों से लोग परेशान थे।

अरबी का एक शब्द है तलबा जिसका अर्थ होता है विद्यार्थीगण। पश्तो भाषा में ये शब्द तालिबान (Taliban Meaning) हो जाता है जिसका अर्थ है ज्ञानार्थी। यानी दोनों मिलते जुलते शब्द हैं। अफगानिस्तान के संदर्भ में इसका अर्थ इस्लामिक कट्टरपंथियों के आंदोलन से है। जिसके सदस्य मदरसों में पढ़ने वाले छात्र होते हैं। अब असली सवाल ये मदरसे किस विचार धारा के होते हैं।

जब इस सवाल पर गौर करेंगे तो तालिबान (Taliban) का रिश्ता भारत से जुड़ जाता है। कैसे हम आपको बताते हैं। देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम (Bharat Ka Pehla Swatantrata Sangram) 1857 में हुआ था। यह वह समय था जिसके बाद मुगलिया सल्तनत का पतन शुरू हो गया था और देश पर ईस्ट इंडिया कंपनी की जगह ब्रिटिश हुकूमत की शुरुआत हुई थी।

कहा जाता है कि इसी दौरान में भारत में इस्लामी सत्ता की पुनः स्थापना करने के उद्देश्य से 1866 में मोहम्मद कासिम और राशिद अहमद गानगोही ने सच्चा इस्लाम और सच्चा मुसलमान बनाने के नाम पर देवबंद के दारुल उलूम (Darul Uloom Deoband) में मदरसे की शुरुआत की।

देवबंद का दारुल उलूम मदरसा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

क्या है मदरसे का उद्देश्य?

यह सब जानते हैं कि देवबंद के इस मदरसे (Islamic Seminary) का उद्देश्य इस्लाम धर्म की अच्छाइयों को दूसरे धर्म के लोगों को बताना है और इस्लाम धर्म से उन्हें प्रभावित करना है। लेकिन ये भी जानकारी में आ रहा है कि अफगानिस्तान में जितने भी मदरसे हैं उनमें ज्यादातर मदरसे देवबंदी विचारधारा को मानने वाले हैं। और तालिबानी आंदोलन से जुड़ा एक बड़ा तबका इन्हीं मदरसों से निकले छात्रों का है। यह माना भी जाता है कि तालिबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के ज़रिए उभरा जिसके लिए ज़्यादातर पैसा सऊदी अरब और मुस्लिम देशों से आया।

इसके बाद तालिबान का एक ताकतवर संगठन के रूप में सबसे पहले उदय उत्तरी पाकिस्तान में उस समय हुआ जब सोवियत संघ की सेनाएं अफगानिस्तान से वापसी कर रही थीं। ऐसे में उचित मौका देखकर तालिबान अफगानिस्तान में कूद पड़ा और अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दीं।

बुर्का पहने हुए महिलाएं (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

देवबंद की औरतों की तरह बुर्का न पहनने पर होता है जुल्म

एक खास बात और है वह यह है कि देवबंद की औरतें जिस तरह का बुर्का पहनती हैं वैसा ही बुर्का तालिबानी औरतों को पहनने के लिए दबाव बनाते हैं। और उनका आदेश न मानने वाली महिलाओं पर वह जुल्म करते हैं। यह बुर्का आम बुर्के से बेहद अलग होता है और इसमें औरतें सर से लेकर पैर तक पूरी तरह से ढकी होती हैं और आंखों के सामने एक जाली नुमा पट्टी लगी होती है। इस बुर्के का रंग हल्के नीले रंग का होता है, जबकि बरेलवी और सूफी मुसलमान औरतें इस तरह के बुर्के का इस्तेमाल नहीं करती हैं।

बेहतर बात ये है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भविष्य में बड़े खतरे की आशंका को भांप कर देवबंद में एटीएस कमांडो सेंटर (ATS Commando Center) बनाने का फैसला किया है। देवबंद में इसके मुख्यालय के लिए दो हजार वर्ग मीटर जमीन भी आवंटित हो चुकी है।

गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित देवबंद इस्लाकमी शिक्षा का एशिया का एक बड़ा केंद्र माना जाता है। लेकिन दूसरा खतरनाक पहलू ये हैं कि पिछले कुछ सालों में सुरक्षा एजेंसियों ने कई ऐसे आतंकवादी पकड़े हैं जिनका संबंध देवबंद से रहा है। 2019 में एटीएस ने जैश ए मोहम्म द के दो आतंकवादियों को देवबंद से ही गिरफ्तार किया था। यहां से बांग्लाहदेशी और आईएसआई एजेंट भी पकड़े जा चुके हैं।

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Shreya

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