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सैलानियों के आकर्षण का केंद्र पाकिस्तान का 'कालाश समुदाय' पर अस्तित्व का संकट

समुदाय को डर है कि वहां आने वाले घरेलू सैलानियों की तादाद में इजाफा से उनकी खास परंपरा खतरे में पड़ सकती है। हाल में वसंत उत्सव के दौरान नृत्य कर रही महिलाओं की तस्वीरें उतारने को लेकर इस समुदाय के पुरूषों के साथ सैलानियों की हाथापाई हुई थी।

PTI
By PTI
Published on: 10 Jun 2019 5:05 PM GMT
सैलानियों के आकर्षण का केंद्र पाकिस्तान का कालाश समुदाय पर अस्तित्व का संकट
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बुंबुरेत (पाकिस्तान): पाकिस्तान के सुदूरवर्ती घाटी में बसा कालाश समुदाय बरबस सैलानियों का ध्यान अपनी ओर खींचता रहता है। इस समुदाय की महिलाएं जश्न मनाकर वसंत के आगमन का उत्सव मनाती हैं जिन्हें कई सैलानी अपने कैमरे में कैद करते हैं।

समुदाय को डर है कि वहां आने वाले घरेलू सैलानियों की तादाद में इजाफा से उनकी खास परंपरा खतरे में पड़ सकती है। हाल में वसंत उत्सव के दौरान नृत्य कर रही महिलाओं की तस्वीरें उतारने को लेकर इस समुदाय के पुरूषों के साथ सैलानियों की हाथापाई हुई थी। उत्सव की शुरुआत होते ही वहां पहुंचे सैलानी एक दूसरे को धक्का देकर कालाश महिलाओं के करीब जाने लगे थे।

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पाकिस्तान के उत्तर में करीब 4,000 लोगों की आबादी वाला कालाश समुदाय हर साल नये मौसम का स्वागत कुर्बानी, दीक्षा और वैवाहिक आयोजन से करता है, जिसे ‘जोशी’ कहा जाता है।

चटख, रंग-बिरंगे कपड़े पहने और सिर पर खास तरह की टोपी पहने कालाश समुदाय की महिलाओं का पहनावा आज के रूढ़ीवादी इस्लामी गणराज्य की महिलाओं के सादे लिबास से बिल्कुल जुदा दिखता है।

एक स्थानीय पर्यटक गाइड इकबाल शाह ने कहा, ‘‘कुछ लोग तो अपने कैमरे का ऐसे इस्तेमाल कर रहे थे मानो वे चिड़ियाघर में हों।’’

गौर वर्णीय हल्के रंग की आंखों वाले कालाश का दावा है कि वे सिकंदर महान के सैनिकों के वंशज हैं, जिसने ईसा पूर्व चौथी सदी में यह क्षेत्र जीता था।

कालाश लोग कई ईश्वर की पूजा करते हैं, शराब का सेवन उनकी परंपरा है और पसंद की शादी को वरीयता देते हैं। इसके विपरीत शेष पाकिस्तान में शादियां परिवार की रजामंदी से तय होती है।

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यह समुदाय आधुनिकता से कोसों दूर है। समुदाय के सदस्यों की अक्सर किशोर उम्र में शादी हो जाती है। महिलाएं कम शिक्षित हैं तथा उनसे अपने घरों में पारंपरिक भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है।

कालाश को लेकर अक्सर मनगढंत कहानियां गढ़ी जाती रही हैं। स्मार्टफोन तथा सोशल मीडिया के दौर में ऐसी कहानियों को बढ़ावा मिला है।

इस समुदाय के इस तरह के एक वीडियो को 13 लाख बार देखा गया है जिसमें यह दावा किया गया है कि कालाश महिलाएं ‘‘अपने पति की मौजूदगी में’’ अपने पार्टनर के साथ खुले में सेक्स करती हैं।

दूसरे वीडियो में उन्हें ‘‘हसीन काफिर’’ कहा गया और दावा किया गया कि ‘‘कोई भी शख्स वहां जाकर किसी भी लड़की से शादी कर सकता है’’।

कालाश पत्रकार ल्यूक रहमत कहते, ‘‘यह कैसे सच हो सकता है?’’

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लाहौर के सैलानी सिकंदर नवाज खान नियाजी कहते हैं, ‘‘हम उनके त्योहार का हिस्सा बनना चाहते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उनकी लड़कियों के साथ मेल जोल बढ़ाना चाहते हैं।’’

बुंबरेत से पुरातविद सैयद गुल ने कहा, ‘‘मुट्ठी भर लोगों के बाहरी दखल की वजह से उनकी संस्कृति का क्षरण दुखद है। वे बस कैमरों और असंवेदनशीलता की वजह से हिस्सा नहीं लेना चाहते। अगर ऐसी चीजें यूं ही होती रहीं तो हो सकता है आगामी कुछ साल में वहां सिर्फ सैलानी ही रह जायेंगे। वहां के उत्सवों में कोई कालाश हिस्सा नहीं लेंगे और न ही नृत्य करेंगे।’’

(एएफपी)

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