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मार्शा पी जॉनसन को गूगल ऐसे कर रहा याद, जानिए इनके बारे में
गूगल ने मार्शा पी. जॉनसन का गूगल डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया है मार्शा पी अमेरिका के महान क्रांतिकारी है। वो समलैंगिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली क्रांतिकारी है। मार्शा पी. जॉनसन कौन थीं और उन्होंने ऐसा क्या किया था कि गूगल ने भी उन्हें सम्मान दिया है । समलैंगिकों (LGBTQ) के अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी। औ
नई दिल्ली: गूगल ने मार्शा पी. जॉनसन का गूगल डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया है मार्शा पी अमेरिका के महान क्रांतिकारी है। वो समलैंगिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली क्रांतिकारी है। मार्शा पी. जॉनसन कौन थीं और उन्होंने ऐसा क्या किया था कि गूगल ने भी उन्हें सम्मान दिया है । समलैंगिकों (LGBTQ) के अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी। और उनके कारण ही आगे चलकर समलैंगिक आम नागरिकों की तरह जीने का अधिकार पा सके।
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'समलैंगिक मुक्ति'
24 अगस्त 1945 को अमेरिका के एलिजाबेथ शहर में जन्मी मार्शा पी. जॉनसन ने 1960 के अंत से लेकर 1980 के मध्य तक समलैंगिकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। उन्होंने इसके लिए अमेरिका में एक आंदोलन खड़ा किया और फ्रंट पर रहकर इस लड़ाई को लीड किया है। उनके इस आंदोलन को 'समलैंगिक मुक्ति' नाम दिया गया था।
पुरुष प्रधान समाज के खिलाफ
पेशे से वकील रहीं मार्शा पी. जॉनसन पुरुष प्रधान समाज के खिलाफ थे। वो समलैंगिकों को आम जनता की तरह अधिकार दिलाना चाहती थीं। वो चाहती थीं कि समलैंगिक लोगों को समाज द्वारा अलग नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। साथ ही उनकी मांग थी कि समलैंगिकों के साथ भेदभाव करने वाले लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो।वो चाहती थीं कि समलैंगिक अपनी इच्छा से जीवन यापन करें।
बचपन में यौन शोषण
एक बार उन्होंने बताया था कि बाल अवस्था में वो यौन उत्पीड़न का शिकार हुई थीं। इस हादसे ने उन्हें अंदर तक हिला दिया था। 1966 में वो एक एक गांव में पहुंची जहां उनकी मुलाकात कुछ समलैंगिकों से हुई। उन्होंने उनके रहन-सहन और उनके साथ होने वाले भेदभाव को देखा। इसके बाद उन्होंने यहीं से आंदोलन शुरू किया। उनके आंदोलन का ही परिणाम है कि आज समलैंगिक आजाद होकर जीवन जी सकते हैं।वो शादी कर सकते हैं. 46 वर्ष की उम्र में मार्शा पी. जॉनसन का निधन 6 जुलाई 1992 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में हो गया।
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एड्स कार्यकर्त्ता भी थी
उनका यह आन्दोलन काफी लम्बे समय तक चला और आज इसी आन्दोलन व मार्शा प जॉनसन के सही नेतृत्व के कारण ही समलैंगिकों को विशेष अधिकार मिल सके। जानकारी के मुताबिक वो एक एड्स कार्यकर्त्ता भी थीं. दरअसल, उस समय एड्स के मरीज को हीन भावना से देखा जाता था इसलिए इन्होंने इसके खिलाफ भी लड़ाई लड़ी और लोगों में जागरूकता फैलाई। आज इनकी बदौलत ही समलैंगिक खुलकर अपने रिश्ते स्वीकार रहे हैं।
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