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OMG : आज भी मॉस्को के रेड स्क्वायर में रखा है लेनिन का शव

raghvendra
Published on: 9 March 2018 7:32 AM GMT
OMG : आज भी मॉस्को के रेड स्क्वायर में रखा है लेनिन का शव
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त्रिपुरा में भाजपा ने विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व जीत दर्ज की है और वाम दलों का बरसों पुराना किला ध्वस्त हो गया है। राजधानी अगरतला से लेकर दिल्ली तक इस जीत की धमक सुनाई दी। लेकिन जीत का ये उत्साह और ख़बरें अभी ठंडी भी नहीं हुई थीं कि त्रिपुरा से आए वीडियो और तस्वीरों ने सभी का ध्यान खींच लिया। यह फोटो और वीडियो है त्रिपुरा में लेनिन की एक मूर्ति ध्वस्त किये जाने का। हो सकता है बहुत से लोग लेनिन के बारे में न जानते हों। या सिर्फ इतना जानते हों कि लेनिन का ताल्लुक कम्यूनिज्म से है।

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व्लादिमीर इलिच उल्यानोव का जन्म साल 1870 में 22 अप्रैल को रूस में वोल्गा नदी के किनारे बसे सिम्ब्रिस्क शहर में हुआ था। एक पढ़े-लिखे और रईस परिवार में जन्मे व्लादिमीर बाद में दुनिया में लेनिन के नाम से विख्यात हुए। वो पढ़ाई में अच्छे थे और आगे जाकर उन्होंने कानून की पढ़ाई की।

यूनिवर्सिटी में वो क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित हुए। उस समय रूस में जारशाही थी। जारशाही के खिलाफ उनके बड़े भाई एक क्रांतिकारी ग्रुप के सदस्य थे और उनकी हत्या कर दी गई थी। बड़े भाई की हत्या का उनकी सोच पर काफी असर पड़ा। चरमपंथी नीतियों की वजह से उन्हें यूनिवर्सिटी से बाहर निकाल दिया गया लेकिन उन्होंने साल 1891 में बाहरी छात्र के रूप में लॉ डिग्री हासिल की। इसके बाद वो सेंट पीटर्सबर्ग रवाना हो गए और वहां ‘प्रोफेशनल रिवोल्यूशनरी’ बन गए। अपने कई समकालीन लोगों की तरह उन्हें गिरफ़्तार कर निर्वासित जीवन बिताने के लिए साइबेरिया भेज दिया गया।

साइबेरिया में उनकी शादी नदेज्दा क्रुपस्काया से हुई। साल 1901 में व्लादिमीर इलिच उल्यानोव ने लेनिन नाम अपनाया। इस निर्वासन के बाद उन्होंने करीब 15 साल पश्चिमी यूरोप में गुजारे जहां वो रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी के बॉल्शेविक धड़े के नेता बन गए। लेनिन ने उसी प्रॉविजनल सरकार को उखाड़ फेंकने की दिशा में काम करना शुरू किया जो जार साम्राज्य को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश कर रही थी। लेनिन ने जिसकी शुरुआत की, उसी को बाद में अक्टूबर क्रांति के नाम से जाना गया।

इसके बाद तीन साल रूस ने गृह युद्ध का सामना किया। बॉल्शेविक जीते और सारे देश का नियंत्रण हासिल कर लिया। कहा जाता है कि क्रांति, जंग और भुखमरी के इस दौर में लेनिन ने अपने देशवासियों की दिक्कतों को नजरअंदाज किया और किसी भी तरह के विपक्ष को कुचल दिया।

लेनिन कड़ा रुख अपनाने के लिए जाने जाते थे, लेकिन वो व्यवहारिक भी थे। जब रूसी अर्थव्यवस्था को सोशलिस्ट मॉडल के हिसाब से बदलने की उनकी कोशिशें थम गईं तो उन्होंने नई आर्थिक नीति का ऐलान किया। इसमें निजी व्यवसाय को एक बार फिर इजाजत दी गई और ये नीति उनकी मौत के कई साल बाद भी जारी रही। साल 1924 में 24 जनवरी को लेनिन का निधन हुआ लेकिन उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया। उनके शव को एम्बाम किया गया और वो आज भी मॉस्को के रेड स्क्वायर में रखा है।

उन्हें काफी विवादित और भेदभाव फैलाने वाला नेता भी माना जाता है। लेनिन को उनके समर्थक समाजवाद और कामकाजी तबके का चैम्पियन मानते हैं, जबकि आलोचक उन्हें ऐसी तानाशाही सत्ता के अगुवा के रूप में याद करते हैं, जो राजनीतिक अत्याचार और बड़े पैमाने पर हत्याओं के लिए जिम्मेदार रही।

कहा जाता है कि लेनिन के राज्य में विरोधियों को सरकारी आतंक का सामना करना पड़ा। ये वो हिंसक अभियान था, जो सरकारी सुरक्षा एजेंसियों की तरफ़ से चलाया गया। हजारों लोगों को प्रताडऩा दी गई। साल 1917 से 1922 के बीच उनकी सरकार ने रूसी गृह युद्ध में दक्षिणपंथी और वामपंथी बॉल्शेविक-विरोधी सेनाओं को परास्त किया।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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