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तुर्की में बढ़ रही नास्तिकों की संख्या, दस साल में तीन गुना हुआ इजाफा

seema
Published on: 18 Jan 2019 1:02 PM IST
तुर्की में बढ़ रही नास्तिकों की संख्या, दस साल में तीन गुना हुआ इजाफा
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तुर्की में बढ़ रही नास्तिकों की संख्या, दस साल में तीन गुना हुआ इजाफा

अंकारा। बड़ी संख्या में तुर्क लोग अपने आपको नास्तिक मानने लगे हैं। सर्वेक्षण कराने वाली कंपनी 'कोंडा ' ने बताया है कि पिछले दस साल में तुर्की में नास्तिकों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है। यह भी पाया गया कि ऐसे लोग जो इस्लाम को मानते थे उनकी संख्या 55 प्रतिशत से गिर कर 51 प्रतिशत हो गई है।

10 वर्षों से नास्तिक 36 साल के कंप्यूटर वैज्ञानिक अहमत बाल्मेज बताते हैं कि 'तुर्की में धार्मिक जबरदस्ती होती है। लोग खुद से पूछते हैं कि क्या ये असली इस्लाम है? जब हम अपने निर्णयकर्ताओं की राजनीति को देखते हैं, तो हमें इस्लाम का पहला युग दिखता है। इसलिए अभी जो हम देख रहे हैं वह पुराना इस्लाम है। ' बाल्मेज ने बताया कि वो एक बहुत ही धार्मिक परिवार में पैदा हुए थे। 'मेरे लिए उपवास और प्रार्थना करना सामान्य चीजें थीं। ' मगर एक वक्त ऐसा आया कि उन्होंने नास्तिक बनने का फैसला लिया।

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तुर्की के धार्मिक मामलों के आधिकारिक निदेशक डायनेट ने 2014 में अपनी घोषणा में देश की 99 प्रतिशत से अधिक आबादी को मुसलमान बताया था। जब कोंडा का हालिया सर्वेक्षण इसके उलट साबित हुआ तो इस पर सार्वजनिक बहस छिड़ गई।

धर्मशास्त्री केमिल किलिक का मानना है कि दोनों आंकड़े सही हैं। उनका कहना है कि हालांकि 99 प्रतिशत तुर्क मुसलमान हैं मगर लोग इस्लाम को सिर्फ सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर लेते हैं। लोग आध्यात्मिक मुस्लिम होने के बजाए सांस्कृतिक मुस्लिम हैं।

ऐसे मुस्लिम जो नमाज पढ़ते हैं या हज पर जाते हैं या नकाब पहनते हैं, उनको धार्मिक माना जाता है। मगर धर्म सिर्फ ये सब करने से या कुछ खास पहनने से नहीं होता। उन्होंने कहा कि कोई इंसान धार्मिक है या नहीं यह इस बात से साबित होता है कि क्या उसके कुछ नैतिक और मानवीय मूल्य हैं या नहीं। अगर हम सिर्फ उन लोगों की बात करें जो इस्लाम को मानते हैं, तो तुर्की में केवल 60 प्रतिशत ही ऐसे लोग हैं। नास्तिक होने का यह मतलब नहीं है कि आप नैतिक नहीं हैं। कुछ नास्तिक कई मुसलमानों की तुलना में अधिक नैतिक और ईमानदार हैं।

एटिजम डर्नेगी नास्तिकों के लिए तुर्की का मुख्य संगठन है। उसकी प्रमुख सेलिन ओजकोहेन का कहना है, 'राष्ट्रपति एर्दोवान ने सोचा होगा कि वह धर्मनिष्ठ मुसलमानों की एक पूरी पीढ़ी पैदा कर सकते हैं लेकिन उनकी यह योजना बुरी तरह से पिट गई है। धार्मिक संप्रदायों और समुदायों ने खुद को बदनाम कर लिया है। हमने हमेशा कहा है कि राज्य को धार्मिक समुदायों द्वारा शासित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे लोग अपनी आस्था पर सवाल उठाते हैं और मानवतावादी नास्तिक बन जाते हैं। लोगों ने यह सब होते हुए देखा और खुद को इन सब चीजों से दूर कर लिया। जो लोग तर्क से सोचते हैं वो नास्तिक बन जाते हैं।'

ओजकोहेन का कहना है कि आज लोगों को यह बोलने में डर नहीं लगता की वह नास्तिक हैं। मगर सरकार अब भी लोगों को धर्म का पालन करने के लिए मजबूर कर रही है। वे बताती हैं, लोगों पर अब भी उनके पड़ोस और मस्जिदों में दबाव बनाया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा संकेत यह है कि 2019 में भी स्कूलों में बच्चों को धर्म की पढ़ाई करनी पड़ती है।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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