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Climate Convention: सौ अरब डॉलर देने का वादा भूल गए अमीर देश

Climate Convention: जलवायु संरक्षण के लिए ये सम्मलेन बेहद महत्वपूर्ण है लेकिन चिंता की बात ये है कि 23 साल पहले धनी देशों द्वारा जलवायु संरक्षण के लिए सौ अरब डॉलर सालाना देने का वादा अभी तक अधूरा है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 1 Nov 2022 4:46 PM IST
Rich countries forgot the promise of giving 100 billion dollars
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 जलवायु संरक्षण के लिए मिस्र में संयुक्त राष्ट्र का “कॉप 27” जलवायु सम्मेलन: Photo- Social Media

Climate Convention: संयुक्त राष्ट्र का "कॉप 27" जलवायु सम्मेलन (UN Cop 27 Climate Conference) अगले हफ्ते से मिस्र में शुरू होने वाला है। जलवायु संरक्षण (climate protection) के लिए ये सम्मलेन बेहद महत्वपूर्ण है लेकिन चिंता की बात ये है कि 23 साल पहले धनी देशों द्वारा जलवायु संरक्षण के लिए सौ अरब डॉलर सालाना देने का वादा अभी तक अधूरा है। संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन इस बार मिस्र के शर्म अल शेख में हो रहा है। यह 27वां वार्षिक सम्मेलन है जिसमें जलवायु परिवर्तन से जूझने के लिए धन उपलब्ध कराना मुख्य मुद्दा रहने की संभावना है।

भारत सरकार (Indian government) के सूत्रों का कहना है कि इस सम्मेलन का इस्तेमाल भारत धनी देशों को विकासशील देशों के साथ किए गए उनके वादे पूरे करने के लिए करेगा। धनी देशों ने विकासशील और गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जरूरी तकनीकी विकास के वास्ते यह धन देने का वादा किया था लेकिन वादा सिर्फ वादा ही बना हुआ है।

फंडिंग की तुरंत उपलब्धता के लिए एक स्पष्ट और पूर्ण योजना बने- भारत

भारत का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और कार्बन उत्सर्जन घटाने की कीमत अत्यधिक होगी, इसलिए जिन्होंने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में ज्यादा योगदान दिया है, उन्हें धन उपलब्ध कराने में देर नहीं करनी चाहिए। इसीलिए भारत अपने और दूसरे विकसित देशों की तरफ से बोलेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फंडिंग की तुरंत उपलब्धता के लिए एक स्पष्ट और पूर्ण योजना बने।

ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार अमेरिका जैसे देशों ने 2009 में वादा किया था कि 2020 तक वे विकासशील देशों को सौ अरब डॉलर सालाना देने लगेंगे ताकि वे जलवायु परिवर्तन के परिणामों से निपट सकें। यह वादा अभी तक पूरा नहीं किया गया है, जिस वजह से कुछ विकासशील देश अपने यहां कार्बन उत्सर्जन कम करने की रफ्तार बढ़ाने को लेकर भी सुस्त पड़ते जा रहे हैं।

ग्रीन हाउस गैस

अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक है। हालांकि अवर वर्ल्ड डेटा नामक संस्था के आंकड़े कहते हैं कि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को देखा जाए तो भारत का नंबर तीन नहीं बल्कि सूची में बहुत नीचे है। भारत ने हाल के सालों में अक्षय ऊर्जा का उत्पादन और इस्तेमाल बढ़ाया है लेकिन कोयला आज भी उसके लिए बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत बना हुआ है। भारत में ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है और उसे पूरा करने के लिए फिलहाल कोयले का प्रयोग बंद नहीं होने वाला है।

वैसे, सरकार का कहना है कि भारत ने पहले ही अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने के कदम उठा लिए हैं और इन कदमों की रफ्तार तेजी से बढ़ाई जा रही है। भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा हासिल करन का लक्ष्य तय किया है। लेकिन इन लक्ष्यों के लिए काफी धन की जरूरत है और इसलिए विकसित देशों पर दबाव बनाना आवश्यक है। विकसित देशों को यह समझने की भी जरूरत है कि है कुल लागत बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है।

अगले हफ्ते शुरू होने वाले सम्मेलन से पहले जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम होना शुरू हुआ है लेकिन ग्लोबल तापमान को इस सदी के आखिर तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकने के लिए और ज्यादा कोशिश करने की जरूरत होगी।

क्या कहती है रिपोर्ट

रिपोर्ट कहती है कि पेरिस समझौते के तहत 193 पक्षकारों ने जितने वादे किए थे, वे तापमान को सदी के आखिर तक 2.5 डिग्री सेल्सियस तक ही ले जा पाएंगे। पिछले हफ्ते जारी हुई यह रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि मौजूदा प्रतिबद्धताओं के चलते 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 2010 के मुकाबले 10.6 प्रतिशत बढ़ा देगा।

पिछले साल का विश्लेषण दिखाता है कि 2030 तक उत्सर्जन का बढ़ना जारी रहेगा। हालांकि इस साल के विश्लेषण से बात सामने आई है कि 2030 के बाद उत्सर्जन बढ़ना बंद हो जाएगा लेकिन उनमें कमी आनी शुरू नहीं होगी।



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Shashi kant gautam

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