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UN में प्रस्तावित सुधार वैश्विक चुनौतियों से लड़ने को पर्याप्त नहीं
संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि तेज गति से होते बदलावों के बीच चरमराते और ढहते विश्व की चुनौतियों से लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तावित सुधार पर्याप्त नहीं हैं।
उन्होंने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र के कामकाज की वार्षिक रपट पर चर्चा में कहा, "अगर हम आने वाले समय में अपनी ऐतिहासिक नियति के गुलाम नहीं बने रहना चाहते, अगर हम तेज रफ्तार से आते खतरों से मुकाबला करना चाहते हैं तो हमें मामूली बदलावों से बढ़कर काम करना होगा।"
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अकबरुद्दीन ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर संयुक्त राष्ट्र चुनौतियों का सामना करने के लिए 'आकस्मिक संकटों' द्वारा बाध्य किए जाने का इंतजार करता रहेगा तो हम ऐसा संयुक्त राष्ट्र के औचित्य और कामकाज को लेकर गहराते संकट की कीमत पर करेंगे।
उन्होंने सवाल उठाया, "क्या हम पूरी ईमानदारी से कह सकते हैं कि जिन सुधारों पर हम विचार कर रहे हैं, वे हमें कृत्रिम बौद्धिकता, सिंथेटिक बायोलॉजी, जियो-इंजीनियरिंग, निर्देशित ऊर्जा प्रणालियों में तीव्र गति से हो रहे तकनीकी विकास से जुड़ी चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाएंगे।"
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उन्होंने कहा कि दुनिया को जहां पर्यावरण, परमाणु प्रसार के खतरों, सशस्त्र संघर्ष, भीषण शरणार्थी संकट, आतंकवाद और स्थानीय संकट जैसे वर्तमान संकटों के अलावा भविष्य की चुनौतियों से निपटना है, बहुपक्षीयता कम होती दिखाई दे रही है और वैश्विक साझेदारी की भावना मंद पड़ती नजर आ रही है।
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उन्होंने कहा कि शांति, न्याय और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सक्रिय प्रयासों के लिए सामूहिक कदम उठाने की जरूरत है और भारत सभी के लिए स्थायी शांति और संपन्नता की राह निकालने के लिए संयुक्त राष्ट्र सदस्यों और महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है।