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UniversalChildrensDay: इसलिए मनाया जाता है बाल दिवस, जानिए उनके अधिकार

ये बात शायद ही किसी को पता हो कि विश्वभर में बाल अधिकार दिवस मनाए जाने का विचार वी के कृष्ण मेनन का था, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1954 में अपनाया था।

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Published on: 20 Nov 2020 12:33 PM IST
UniversalChildrensDay: इसलिए मनाया जाता है बाल दिवस, जानिए उनके अधिकार
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UniversalChildrensDay: इसलिए मनाया जाता है बाल दिवस, जानिए उनके अधिकार (Photo by social media)

नई दिल्ली: आज पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस मनाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने 20 नवम्बर 1954 को ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस’ मनाए जाने की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य था कि अलग-अलग देशों के बच्चे अपने अधिकारों को जान सकें। एक-दूसरे के साथ जुड़ सकें। अपनी परेशानियां साझा कर सकें। उनके बीच आपसी समझ तथा एकता की भावना मजबूत हो।

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ये बात शायद ही किसी को पता हो कि विश्वभर में बाल अधिकार दिवस मनाए जाने का विचार वी के कृष्ण मेनन का था, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1954 में अपनाया था।

संयुक्त राष्ट्र ने दुनियाभर के तमाम देशों से अपील की थी कि वे अपनी परम्पराओं, संस्कृति तथा धर्म के अनुसार अपने लिए कोई एक ऐसा दिन सुनिश्चित करें, जो सिर्फ बच्चों को ही समर्पित हो।

लेकिन अफसोस की बात ये है कि बच्चों के अधिकारों पर वयस्कों ने कब्जा कर लिया। आज 100 में से 99 बच्चों को ये पता ही नहीं है कि उनके कुछ अधिकार भी हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चों के अधिकारों पर बड़ों का कब्जा है। जो बच्चों का मार्गदर्शन करने के बजाय अपने

निर्णय उन पर थोपते हैं। 0 से लेकर 18 वर्ष से कम उम्र का लड़का या लड़की बच्चा है। 18 साल का होते ही उसे तमाम अधिकार मिल जाते हैं लेकिन उससे पहले बच्चा है कहकर टाल दिया जाता है।

वास्तव में समाज और स्वयं बच्चों के मातापिता बच्चों को उनके अधिकार देना ही नहीं चाहते या फिर उनके अधिकारों को अपने ढंग से परिभाषित करके बच्चों को समझाते रहते हैं।

children children (Photo by social media)

बाल-सुरक्षा

सबसे पहली जरूरत इस बात की है कि बच्चा अपनी सुरक्षा क्या है इस बात को समझे। फिर उसे क्या सुरक्षा दी जा रही है कैसे दी जा रही है इस बात की जानकारी उसे होनी चाहिए। साथ ही बच्चे को इस बात का भी पता होना चाहिए कि इस सुरक्षा को देकर उस पर अहसान नहीं किया जा रहा ये उसका हक है।

समाज में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा और उनका शोषण हम लगातार देखते हैं। आस-पड़ोस में दिख जाएगी लोग छोटे बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय मजदूरी में लगा देते हैं।

माता-पिता अपने बच्चों की पिटाई अपना अधिकार मानकर करते हैं। कक्षा में शिक्षक भी उनकी पिटाई अपना अधिकार मानकर करते हैं। कई बार जाति व धर्म के आधार पर उनके साथ भेदभाव भी किया जाता है।

महिला को शिशु को जन्म देने से रोका जाता है। गर्भ में या फिर जन्म के बाद हत्या कर दी जाती है। जन्म के बाद बच्चियों को बाल-विवाह, बलत्कार या फिर तिरस्कार की मार अलग से झेलनी पड़ती है। कई बच्चों के जीवन की यही सच्चाई है। इनमें से कुछ बच्चें आपकी क्लास या स्कूल में भी हो सकते हैं।

बच्चे को उसके अधिकारों की जानकारी नहीं दी जाती

मोटे तौर पर देखा जाए तो घर से लेकर स्कूल तक कहीं भी बच्चे को उसके अधिकारों की जानकारी नहीं दी जाती। अलबत्ता उसके अधिकारों के नाम पर माता पिता, स्कूल और सरकार तक जुटी रहती है। एनजीओ भी बच्चों के अधिकारों के नाम पर सिर्फ कमाई करते किसी बच्चे को उसके अधिकार नहीं बताते।

बच्चों को अपने अधिकारों को समझना होगा। उसे ये तो पता हो कि उसके क्या अधिकार हैं जिनकी हिफाजत में सब लोग जुटे हैं।

यहां जानने योग्य बात ये है कि बच्चों के अधिकारों को लेकर बनने वाले कानूनों में बच्चों की भागीदारी कितनी है। हम मान लेते हैं कि 0-13 साल तक के बच्चे अबोध हैं हालांकि आजकल अबोध बच्चे 0-5 साल तक ही होते हैं। इसके बाद उन्हें क्रमशः उनके अधिकारों के बारे में बताया जाना चाहिए।

ऐसे में कोई एक व्यक्ति अपने अनुभवों से बच्चों के अधिकार परिभाषित नहीं कर सकता है

बाल्यावस्था एक प्रक्रिया है जिससे होकर प्रत्येक मानव को गुजरना पड़ता है। लेकिन कितने लोगों को अपनी बाल्यावस्था याद रहती है। हर बच्चे के अनुभव अलग होते हैं। ऐसे में कोई एक व्यक्ति अपने अनुभवों से बच्चों के अधिकार परिभाषित नहीं कर सकता है। लक्ष्य सभी बच्चों को अपमानित और शोषित होने से बचाने का होना चाहिए। इसमें बच्चों की भागीदारी होनी जरूरी है।

बच्चे जिस वातावरण में रहते, उसके प्रति वयस्क की अपेक्षा वे अधिक संवेदनशील होते। इसलिए वे किसी निर्णय व अनिर्णय से अन्य उम्र आयु समूह की अपेक्षा अधिक प्रभावित होते हैं। इसे समझने की जरूरत है।

क्या बच्चे माता-पिता की संपत्ति हैं। ये सच है कि बच्चे वयस्क लोगों की तरह नहीं दिखते जिनके पास अपना दिमाग, व्यक्त करने को विचार, अपनी पसंद को चुनने का विकल्प तथा निर्णय-निर्माण की क्षमता होती है। लेकिन दिमाग बच्चों के पास भी होता है। लेकिन प्रौढ़ व्यक्ति बच्चे का मार्गदर्शन करने के बजाए, उनके जीवन का निर्णय ही करने लगते हैं जो कि सही हो कोई जरूरी नहीं।

बच्चों के पास मतदान, राजनीतिक प्रभाव या थोड़ी-बहुत भी आर्थिक शक्ति नहीं होती। इसलिए उनकी आवाज न तो सुनी जाती है न कोई इसके लिए तैयार होता है।

भारतीय संविधान में प्रदत्त बच्चों के अधिकार

6-14 वर्ष की आयु समूह वाले सभी बच्चों को अनिवार्य और ऩिःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद - 21 ए)

14 वर्ष की उम्र तक के बच्चे को किसी भी जोखिम वाले कार्य से सुरक्षा का अधिकार (अनुच्छेद - 24)

आर्थिक जरूरतों के कारण जबरन ऐसे कामों में भेजना जो उनकी आयु या क्षमता के उपयुक्त नहीं है, उससे सुरक्षा का अधिकार (अनुच्छेद - 39 ई)

समान अवसर व सुविधा का अधिकार जो उन्हें स्वतंत्रत एवं प्रतिष्ठापूर्ण माहौल प्रदान करे और उनका स्वस्थ रूप से विकास हो सके। साथ ही,

नैतिक एवं भौतिक कारणों से होने वाले शोषण से सुरक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 39 एफ)

साथ ही, उन्हें भारत के वयस्क पुरुष एवं महिला के बराबर समान नागरिक का भी अधिकार प्राप्त है जैसे -

समानता का अधिकार ( अनुच्छेद 14)

भेदभाव के विरुद्ध अधिकार ( अनुच्छेद 15)

व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून की सम्यक् प्रक्रिया का अधिकार ( अनुच्छेद 21)

जबरन बँधुआ मजदूरी में रखने के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार ( अनुच्छेद 23)

सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से, समाज के कमजोर तबकों के सुरक्षा का अधिकार ( अनुच्छेद 46)

children children (Photo by social media)

राज्य को चाहिए कि -

वह महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाएँ ( अनुच्छेद 15 (3))

अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करे ( अनुच्छेद 29)

समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षणिक हितों को बढ़ावा दें (अनुच्छेद 46)

आम लोगों के जीवन-स्तर और पोषाहार स्थिति में सुधार लाने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार हेतु व्यवस्था करे (अनुच्छेद 47)

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कुछ बच्चों की स्थिति ज्यादा ही संवेदनशील होती है जिसपर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत । ये बच्चे हैं -

बेघर बच्चे (सड़क किनारे रहने वाले, विस्थापित/ घर से निकाले गए, शरणार्थी आदि), दूसरी जगह से आए बच्चे, गली या घर से भागे हुए बच्चे, अनाथ या परित्यक्त बच्चे, काम करने वाले बच्चे, भीख माँगने वाले बच्चे, वेश्याओं के बच्चे, बाल वेश्या, भगाकर लाए गए बच्चे, जेल में बंद बच्चे, कैदियों के बच्चे, संघर्ष से प्रभावित बच्चे, प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित बच्चे, एचआईवी/एड्स से प्रभावित बच्चे, असाध्य रोगों से ग्रसित बच्चे, दिव्यांग बच्चे।

रिपोर्ट- रामकृष्ण वाजपेयी, एडवोकेट

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