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युद्ध क्षेत्र से भागना अमेरिका की आदत, क्यूबा से सोमालिया अब अफगानिस्तान से उल्टे पैर भाग रहा
तालिबान ने फिर से 20 साल पहले जैसी हुकूमत चलाना शुरू कर दी है। तालिबानी घर घर जाकर विदेशी लोगो की पहचान कर रहे हैं।
इन दिनों अफगानिस्तान (Afghanistan) की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है। तालिबान (Taliban) ने पूरे देश को अपने कब्जे में कर लिया है । तालिबान ने फिर से 20 साल पहले जैसी हुकूमत चलाना शुरू कर दी है। तालिबानी घर घर जाकर विदेशी लोगो की पहचान कर रहे हैं। बचने के लिए मासूम लोग अफगानिस्तान देश छोड़कर भाग रहे हैं। कल की अफगानिस्तान के एयरपोर्ट की फोटो में कई लोग अपनी जान बचाने के लिए हवाई जहाज के चक्के, पंख पर भी बैठ गए । हालांकि उनकी जान चली गयी । ऐसी स्थिति में महिलायें बुर्का पहनने को मजबूर है। बुर्के की मांग बढ़ गयी है। महिलाएं घर से बाहर अपने दफ्तर नही जा रही हैं। सभी ने अपना व्यापार तक बंद कर दिया है। अफगानिस्तान में अब तालिबान युग आ गया है।
वहीं अमेरिका के राट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान की सेना पर आरोप लगाया है की अफगानी सेना ने बिना लड़े हार मान ली। तो वही तालिबान भी अमेरिका पर आरोप लगा रहा है कि अफगानिस्तान में जो कुछ भी हो है उसका जिम्मेदार अमेरिका है। खैर हम ये जानते हैं कि अमेरिका सदियों से युद्ध क्षेत्र में भागने में निपुण रहा है और इस बार भी अमेरिका ने भागने में कामयाबी पा ली है। आइये समझते है ऐसा कब - कब हुआ जब अमेरिका बीच युद्व से भागा
कितनी बार युद्ध से पीछे हटा अमेरिका (kitni baar yudh se peche hata America)
1975 में वियतनाम से- वियतनाम का किस्सा सबसे ज्यादा चर्चित है। अफगानिस्तान से पांच गुना सैनिक और 19 साल की भीषण बमबारी के बावजूद अमेरिका कम्युनिस्ट उत्तरी वियतनाम को झुका नहीं सका।घरेलू दबाव के आगे 1969 में राष्ट्रपति बने रिचर्ड निक्सन ने वियतनाम से बाहर निकलने का मन बना लिया। जनवरी 1973 में पेरिस में अमेरिका, उत्तरी वियतनाम और दक्षिण वियतनाम और वियतकॉन्ग के बीच शांति समझौत हुआ।।
दरअसल, इस समझौते की आड़ में अमेरिका वियतनाम से अपनी सेना हटाना चाहता था। इसके बाद वियतनाम में भी वही हुआ जो आज अफगानिस्तान में हो रहा है। अमेरिकी फौज के पूरी तरह निकलने से पहले ही 29 मार्च 1973 को उत्तरी वियतनाम ने दक्षिणी वियतनाम पर हमला बोल दिया।
दो साल बाद 30 अप्रैल 1975 को कम्युनिस्ट वियतनाम की फौज साइगॉन में घुस गई और वहां बचे हुए अमेरिकियों को आनन-फानन में भागना पड़ा।
क्यूबा में बुरी तरह मात खायी
17 अप्रैल 1961 में फिदेल कास्त्रो का तख्ता पलटने के लिए अमेरिका ने CIA के जरिए पिग्स की खाड़ी (Bay of Piggs) के रास्ते हमला किया। इसके लिए CIA ने फिदेल के विरोधियों को ट्रेनिंग और हथियार दिए। जमीनी हमले से पहले पांच अमेरिकी B-26B विमानों से बमबारी की गई। इनमें तीन विमानों को क्यूबा ने मार गिराया। योजना के मुताबिक हमलावरों की मदद के लिए अमेरिका को दूसरे चरण की बमबारी करनी थी, मगर हमला फेल होता देख अमेरिका मुकर गया और उसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा
29 दिसंबर 1962 , क्यूबा में पीछे हटने का फैसला लेने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी और उनकी पत्नी जैकलीन कैनेडी ने बे ऑफ पिग्स के हमले में शामिल 2506 ब्रिगेड से मियामी के एक स्टेडियम में मुलाकात की। क्यूबा में रूस की परमाणु मिसाइल तैनात करने से और रूस को कामयाबी से रोकने के बाद कैनेडी क्यूबा से भागे लोगों के बीच अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रहे थे। अमेरिका ने इसके बाद भी कास्त्रो को मारने और उन्हें सत्ता से हटाने के कम से कम पांच और प्रयास किए, मगर वे कामयाब नहीं हो सके।
सोमालिया से भागा
जनवरी 1991 में अफ्रीकी देश सोमालिया में कई विरोधी कबीलों की मिलिशिया, यानी सशस्र विद्रोही गुटों ने राष्ट्रपति मोहम्मद सियाद बरे का तख्ता पलट दिया। सोमालिया की राष्ट्रीय सेना के सैनिक अपने-अपने कबीलों के सशस्त्र गुटों में शामिल हो गए। पूरे सोमालिया में सत्ता हथियाने के लिए गृह युद्ध छिड़ गया।राजधानी मोगादीशू में मुख्य विद्रोही गुट यूनाइटेड सोमालिया कांग्रेस भी दो गुटों बंट गया था। इनमें एक गुट का नेता अली मेहदी मुहम्मद राष्ट्रपति बन गया। दूसरे गुट को मोहम्मद फराह अदीदी चला रहा था।
मानवीय संकट बढ़ने पर यूनाइटेड नेशन्स ऑपरेशन इन सोमालिया-2 (UNOSOM-2) के तहत आम लोगों को खाने-पीने और डॉक्टरी मदद शुरू की गई, मगर अदीदी का गुट इसमें आड़े आ रहा था।
यह हमला अमेरिका के लिए बड़ा मुसीबत बन गया। मिशन के दौरान विद्रोहियों ने अमेरिकी सेना के दो ब्लैक हॉक हेलिकाप्टर मार गिराए।
अभियान के दौरान 19 अमेरिकी सैनिक भी मारे गए। करीब 73 घायल हो गए। एक को विद्रोहियों ने पकड़ लिया। उसे 11 दिनों बाद बहुत मुश्किल से छुड़ाया गया।मारे गए अमेरिकी सैनिकों और पायलटों के शवों को विद्रोहियों की भीड़ ने सड़कों पर घसीटा। इन सभी क्रूर नजारों की रिकॉर्डिंग अमेरिकी TV पर प्रसारित हुई।पूरी रात चली लड़ाई के बाद सुबह संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत वहां तैनात पाकिस्तानी सेना ने अमेरिकी सैनिकों को वहां से निकाला।
अमेरिका सोमालिया में मानवीय मदद के पूरे मिशन से पीछे हट गया। उसने अपने सभी सैनिक वापस बुला लिए।इसके बाद 1994 में रवांडा में हुए नरसंहार में अमेरिका चुप रहा।
अब अफगानिस्तान से
16 अगस्त 2021 का दिन अफगानिस्तान के इतिहास में दर्ज हो गया है। जब तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर भी कब्जा कर लिया। पिछले 20 सालों से अफगानिस्तान में सैन्य अभियान चला रहा अमेरिका, अफगानिस्तान से उल्टे पैर भाग रहा है। काबुल एयरपोर्ट पर हजारों असहाय लोगों की भीड़ है। सोमवार को हवा में उड़ते प्लेन से गिरकर 3 लोगों की मौत हो गई। यह अमेरिकी सेना का मालवाहक विमान था और कुछ लोग इसके लैंडिंग गियर पर लटककर भागने की कोशिश कर रहे थे।तालिबान के राजधानी काबुल में दाखिल होते ही अमेरिका ने अपने लोगों को वहां से निकालना शुरू कर दिया।