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काले सोने यानी तेल से मालामाल वेनेजुएला में आखिर हो क्या रहा है?

seema
Published on: 2 Feb 2019 1:10 PM IST
काले सोने यानी तेल से मालामाल वेनेजुएला में आखिर हो क्या रहा है?
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काले सोने यानी तेल से मालामाल वेनेजुएला में आखिर हो क्या रहा है?

कराकास। वेनेजुएला काले सोने यानी तेल का राजा है। उसके पास इस अत्यंत महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन की भरमार है, फिर भी यह देश भीषण गरीबी और उथलपुथल से बेहाल है। एक समय में लातिनी अमेरिका के सबसे अमीर देश वेनेजुएला की आर्थिक हालत खराब है, महंगाई आसमान छू रही है और लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि यह सब भ्रष्टाचार और सरकार के कुप्रबंध की वजह से हो रहा है। जबकि सरकार का कहना है कि यह सब तेल की गिरती कीमतों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से हो रहा है। राष्ट्रपति निकोला मादुरो को नेशनल असेंबली के अध्यक्ष खुआन गुआइदो ने फिर से चुनाव कराने के लिए चुनौती दे दी है और खुद को वेनेजुएला का राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। खुआन गुआइदो को दुनिया के बड़े देशों का समर्थन मिला है जिसमें सबसे बड़ा नाम है अमेरिका।

अमेरिका के इस रुख के विरोध में राष्ट्रपति निकोला मादुरो ने अमेरिका के साथ सभी राजनीतिक और राजनयिक संबंध तोड़ दिए हैं और अमेरिकी कंसुलर स्टाफ को 72 घंटे में वेनेजुएला से निकलने को कहा है। इसके विपरीत खुआन गुआइदो ने सभी देशों के राजनयिकों को रुकने को कहा है। अमेरिका ने भी निकोला मादुरो की बात को नकारते हुए कहा कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं, वे देश की नई सरकार के साथ संपर्क में रहेंगे। विपक्ष ने खुआन गुआइदो को समर्थन देकर देश को आशा दी है और जिस तरह से उन्हें दुनिया के प्रमुख देशों का समर्थन मिला है उससे लगता है कि वेनेजुएला बड़े बदलाव की तरफ बढ़ रहा है। वेनेजुएला में आगे क्या होता है, इस पर पूरी दुनिया की नजर है।

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वेनेजुएला में शांति केवल वेनेजुएला के लोगों के लिए नहीं, बल्कि तेल बाजार के लिए भी बहुत जरूरी है। अमेरिका और वेनेजुएला एक दूसरे के ऊपर तेल के कारोबार के लिए निर्भर हैं और वेनेजुएला के पास दुनिया का बड़ा तेल भंडार है। हर साल पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन 'ओपेक' में रोटेशन के हिसाब से नए अध्यक्ष का चुनाव होता है। इस साल यह पद वेनेजुएला के तेल मंत्री को मिलने वाला है इसलिए वेनेजुएला पर यूएनओ की भी नजर है। जब 2013 में मादुरो राष्ट्रपति बने तो वेनेजुएला पहले से ही परेशानी झेल रहा था और 2014 में तेल के दामों में भारी गिरावट से परेशानी और बढ़ गई। इस गिरावट की वजह से कारोबार को भारी नुकसान पहुंचा और तभी से महंगाई की शुरुआत हुई।

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का अनुमान है कि देश में महंगाई की दर 2019 में 1 करोड़ प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। सबसे बड़ी गलती वेनेजुएला से यह हुई कि उसने तेल के कारोबार पर निर्भरता खत्म नहीं की। देश की 95 प्रतिशत आमदनी तेल के निर्यात से होती है। तेल के दाम गिरने की वजह से देश में विदेशी मुद्रा की कमी हो गई जिसकी वजह से आयात करना भी बहुत मुशकिल हो गया। इन सबकी वजह से महंगाई आसमान छूने लगी और लोगों का रोजमर्रा का समान या खाना खरीदना भी मुश्किल हो गया।

नोट छापने से और बिगड़ी हालत

सरकार ने हालात सुधारने के लिए नोट छापना शुरू कर दिया और मुद्रा का अवमूल्यन करके उसे क्रिप्टोकरेंसी 'पेट्रो' से जोड़ दिया। इसे दुनिया के बहुत से अर्थशास्त्रियों ने बहुत ही मूर्खतापूर्ण कदम माना था। इसके साथ सरकार ने न्यूनतम मजदूरी को 34 गुना बढ़ा दिया। इन कदमों के बाद निवेशकों ने वेनेजुएला से दूरी बनाना ही अच्छा समझा। अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ी, तो लोगों ने परेशान होकर देश छोडऩा शुरू कर दिया। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, 2014 के बाद से तीस लाख से अधिक लोग देश से जा चुके हैं और 2019 के अंत तक इस आकड़े के 53 लाख तक पहुंचने की संभावना है।

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कौन हैं गुआइदो

35 साल के खुआन गुआइदो रातों रात देश के स्वघोषित अंतरिम राष्ट्रपति बन गए हैं। सत्ता के गलियारे में मजबूती से उभरे इस ताजा चेहरे को हाल फिलहाल तक वेनेजुएला के लोग भी ज्यादा नहीं जानते थे। जनवरी की शुरुआत में ही उन्हें विपक्षी दलों के नियंत्रण वाली नेशनल असेंबली का अध्यक्ष चुना गया। यह कदम राष्ट्रपति निकोला मादुरो के खिलाफ अभियान तेज करने के लिए उठाया गया जिन्हें देश के भीतर और बाहर 'तानाशाह' के रूप में देखा जाने लगा है। पेशे से इंजीनियर गुआइदो के राजनीति में दूध के दांत तब टूटे जब करीब दशक भर पहले वे छात्रों के विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए। गाइदो के मजबूत उभार के पीछे सबसे बड़ा हाथ है वेनेजुएला के सबसे मशहूर विपक्षी नेता लियोपोल्डो लोपेज का जो इन दिनों नजरबंद हैं। गुआइदो कई सालों से लोपेज के सहायक रहे हैं। गाइदो जब 15 साल के थे तब देश में समाजवादी परिवर्तन की लहर थी। गाइदो और उनका परिवार उस वक्त घनघोर कीचड़ धंसने की आपदा के चपेट में आया था। मुश्किलों से लडऩे का अनुभव शायद गुआइदो को तभी मिला।

वेनेजुएला के जिन लोगों के पास तेल के भंडार हैं, वे बेहाल हैं। 2014 में तेल की कीमतों में आयी 50 फीसदी तक की कमी से तेल पर निर्भर देश की हालत चरमरा गयी। 2013 में तेल से 80 अरब डॉलर आय हुई थी वहीं 2016 में केवल 20 अरब डॉलर। 2013 में गुजरे हूगो चावेज ने एक ऐसा देश छोड़ा था जहां गरीबी दर कम थी। शिक्षा और स्वास्थ्य का हाल बेहतर था और आर्थिक वृद्धि हो रही थी। उन्हीं की सोशलिस्ट परंपरा का एक असर कुप्रबंधन भी था। 2006 से ही तेल उत्पादन घटने के बावजूद इस पर काफी खर्च होता रहा। चावेज के चुने हुए उत्तराधिकारी मादुरो को भी सत्ता में चार साल हो गए और दो और साल बाकी हैं।

विपक्ष उनसे कुर्सी खाली करने की मांग करता रहता है और उन्हें आर्थिक बर्बादी का जिम्मेदार बताता है। मादुरो पर विपक्ष अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने का भी आरोप है। इसी साल अप्रैल में मादुरो ने विपक्ष के नेता हेनरिक कैपरिलेस को चुप कराने के लिए उन्हें 15 साल के लिए किसी सरकारी पद को संभालने के लिए अयोग्य घोषित करवा दिया। उन पर 'प्रशासनिक गड़बडिय़ों' का आरोप लगाया गया। कैपरिलेस के नेतृत्व में मादुरो के नाम पर जनमत संग्रह कराने का आंदोलन चल रहा था जिससे प्रदर्शनकारी और भड़क उठे।

द्व मार्च २०१८ के अंत में आए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से परेशानी शुरू हुई। इस आदेश में विधायिका से सभी शक्तियां छीन ली गई थीं। इसके जवाब में देश भर में विरोध प्रदर्शन होने लगे। दुनिया भर में आलोचना के बाद राष्ट्रपति निकोलास मादुरो ने फैसला पलट दिया लेकिन तब तक जनता सड़कों पर थी।

द्व मार्च २०१८ से वेनेजुएला में मुद्रास्फीति दर 220 प्रतिशत को भी पार कर गयी है। देश का सबसे बड़े नोट,100 बोलिवार, का मोल साल के अंत तक आते आते 0.04 डॉलर से भी कम हो गया था। रोजमर्रा की चीजें खरीदने के लिए भी बोरियों में भर कर पैसे ले जाने पड़े।

द्व बीते साल करीब 80 फीसदी खान पान की चीजें और दूसरी जरूरी चीजों की भारी कमी रही। वेनेजुएला के लोग हर हफ्ते 30 घंटे से ज्यादा समय दुकानों से सामान खरीदने के लिए खड़े होने में बिताते हैं। राष्ट्रपति मादुरो इस कमी का दोष अमेरिका के सट्टेबाजी कारोबार पर डालते हैं। विपक्ष कहता है कि सरकार ठीक से प्रबंधन नहीं कर पायी।

द्व कोलंबिया में वेनेजुएलावासी मेडिकल सप्लाई कर रहे हैं, ताकि उन्हें घर भेज सकें। पूरे देश के अस्पतालों में ऐसे हालात हैं जैसे युद्ध काल में होते हैं।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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