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आफत की चेतावनी: सागर में टूटकर बिखरी विशाल बर्फ की चट्टान, अब वैज्ञानिकों ने दिए ये संकेत

बर्फ की बड़ी चट्टान के टूटने से सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है कि ये बर्फ की चट्टान 14 मार्च 2022 से 16 मार्च 2022 के बीच टूटकर बिखर गई। ऐसे में अब सैटेलाइट तस्वीरों से इसका खुलासा हुआ है।

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Newstrack NetworkPublished By Vidushi Mishra
Published on: 27 March 2022 4:47 AM GMT
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अंटार्कटिका में पिघली बर्फ की चट्टान (फोटो-सोशल मीडिया)

New Delhi: अंटार्कटिका से बड़े संकट की चेतावनी सामने आई है। यहां के सबसे सुरक्षित और स्थिर माने जाने वाले पूर्वी इलाके में करीब 783.8 वर्ग किलोमीटर बड़ी बर्फ की चट्टान (Ice Shelf) टूटकर सागर में बिखर गई है। बताया जा रहा कि यह विशाल चट्टान भारत के दूसरे बड़े शहर बेंगलुरु से आकार में लगभग 42 वर्ग किलोमीटर बड़ी है। ऐसे में अब सबसे बड़ी परेशानी ये है कि इस तरह के किसी भी प्राकृतिक हादसे की उम्मीद अभी तक वैज्ञानिकों को नहीं थी। पर अब चट्टान के टूटने से उन्हें डर लग रहा है कि कहीं इससे भविष्य में कोई बड़ी मुसीबत न खड़ी हो जाए।

बर्फ की बड़ी चट्टान के टूटने से सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है कि ये बर्फ की चट्टान 14 मार्च 2022 से 16 मार्च 2022 के बीच टूटकर बिखर गई। ऐसे में अब सैटेलाइट तस्वीरों से इसका खुलासा हुआ है।

अचानक से टूटकर बिखरी विशाल बर्फ की चट्टान

इस बारे में बताया जा रहा कि इस बर्फ की चट्टान का नाम द ग्लेंजर कोंगर आइस सेल्फ (The Glenzer Conger Ice Shelf) है। जोकि पूर्वी अंटार्कटिका (East Antarctica) में स्थित है। अध्ययन करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा के ग्लेसियोलॉजिस्ट पीटर नेफ ने कहा कि द ग्लेंजर कोंगर आइस सेल्फ हजारों सालों से वहां मौजूद था। अब वहां पर ऐसी कोई आकृति दोबारा नहीं बन पाएगी।

आग रिसर्च को आधार बनाते हुए पीटर ने बताया कि यह बात सही है कि द ग्लेंजर कोंगर आइस सेल्फ (The Glenzer Conger Ice Shelf) 1970 के दशक से थोड़ी पतली होने लगी थी। लेकिन यह आशंका नहीं थी कि यह अचानक से टूटकर बिखर जाएगी। इस बिखराव से करीब एक महीने पहले ही यहां पर तेजी से बर्फ पिघलने लगी और यह बड़ी भारी चट्टान अचानक से टूट गई।

गौरतलब है कि अंटार्कटिका दो हिस्सों में बंटा हुआ है। जोकि पूर्वी अंटार्कटिका और पश्चिमी अंटार्कटिका है। वहीं इन दोनों को ट्रांसअंटार्कटिक पहाड़ों की रेंज (Transantarctic Mountain Range) आधे से बांटती है। ऐसे में यह बात प्रमाणित है कि पश्चिमी अंटार्कटिका में बर्फ कमजोर है। जोकि तेजी से पिघल रही है। इस वजह से वहां अक्सर बर्फ की चट्टानें और आइसबर्ग टूटते रहते हैं। पर ये बात पूर्वी अंटार्कटिका पर लागू नहीं होती है।

इस बारे में यूएस नेशनल आइस सेंटर के अनुसार, काल्विंग इवेंट 7 मार्च से शुरु हो गए थे। इस वजह से कई आइसबर्ग का निर्माण हो रहा था। अब इसमें से एक काफी बड़ा आइसबर्ग निकला। इस आइसबर्ग का नाम सी-37 (C-37) दिया गया है।

ये लगभग 14.8 किलोमीटर लंबा और 5.6 किलोमीटर चौड़ा है। ऐसे में अब वैज्ञानिक इस घटना से किसी और बड़े हादसे की उम्मीद नहीं कर रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिक इस बात से जरूर डरे हुए हैं कि पूर्वी अंटार्कटिका में भी नई आपदाओं का ट्रेंड शुरु होने वाला है।

Vidushi Mishra

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