TRENDING TAGS :
Murder case on dog: जब एक कुत्ते पर चला था ह्त्या का मुक़दमा
Murder case on dog: 1921 में सैन फ़्रांसिस्को अमेरिकी इतिहास में सबसे अजीब मुकदमों में से एक का गवाह बना। यहाँ डॉर्मी नाम के एक कुत्ते पर 14 बिल्लियों की शातिराना हत्या का आरोप लगाया गया था।
Murder case on dog: 1921 में सैन फ़्रांसिस्को अमेरिकी इतिहास में सबसे अजीब मुकदमों का में से एक का गवाह बना। यहाँ डॉर्मी नाम के एक कुत्ते पर 14 बिल्लियों की शातिराना हत्या का आरोप लगाया गया था। डॉर्मी को कैलिफ़ोर्निया के कोर्ट में पेश किया गया जहाँ पूरी मौजूद थी। डॉर्मी पर आरोप था कि उसने पीड़ितों को दिन के उजाले में मार डाला और बाद में उनकी हड्डियों को कुतर डाला। कहा गया कि एरेडेल टेरियर नस्ल का डोरमी इस राज्य का सबसे कुख्यात बिल्ली हत्यारा था। जब डॉर्मी को अंततः ट्रैक किया गया तब उसे किसी पशु गृह में भेजने की बजाय इंसानी अदालत में पेश किया गया ।
डॉर्मी का मालिक ईटन मैकमिलन नाम का एक कार डीलर था। जब डॉर्मी को मोहल्ले की किसी महिला ने बिल्ली का शिकार करते देख लिया तो पड़ोस की एक बैठक बुलाई गई और मैकमिलन को अल्टीमेटम दिया गया कि वह अपने पालतू कुत्ते को स्वयं मौत के घाट उतार दे। जब मैकमिलन ने अपने पालतू जानवर को मारने से इनकार कर दिया तो उस पर दुष्कर्म का आरोप लगाया गया।
1920 के दशक में अगर किसी के पास "खतरनाक या शातिर" कुत्ते होते थे तो उसके दंड के रूप में भरी जुर्माना लगाया जाता था या कुत्ते को सीधे मार ही दिया जाता था। इस केस में मैकमिलन ने जुर्माना देने से इस आधार पर इनकार कर दिया कि उन्होंने डॉर्मी के लिए एक लाइसेंस खरीदा है, और इसका मतलब है कि यह कुत्ता कानूनी रूप से सैन फ्रांसिस्को के आसपास घूम सकता है। मैकमिलन ने तर्क दिया कि वह डॉर्मी के व्यवहार के लिए जिम्मेदार नहीं था। उसने यह भी कहा कि उसने कभी भी डॉर्मी को किसी भी बिल्ली को मारने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया था।
मैकमिलन ने अपने कुत्ते के बचाव के लिए जेम्स एफ ब्रेनन नामक एक वकील की मदद ली। ये केस पुलिस न्यायाधीश लील टी. जैक के न्यायालय कक्ष में 21 दिसंबर, 1921 को शुरू हुआ। मजे की बात ये रही कि बच्चों ने डॉर्मी के बचाव के लिए चन्दा करके रकम जमा की ताकि कानूनी खर्च पूरा किया जा सके। बचाव पक्ष के वकील ने बाकायदा डॉर्मी की पहचाना के लिए दर्जन भर अलग अलग नस्लों के कुत्तों की शिनाख्त परेड कोर्ट में करवाई, डॉर्मी की गिरफ्तारी को चुनौती दी गयी, उसके अधिकारों का उल्लेख किया गया आदि।
मामले पर विचार-विमर्श करने के बाद, ग्यारह जूरी सदस्यों ने डॉर्मी को मुक्त करने के पक्ष में वोट दिया। सिर्फ एक जूरी सदस्य ने डॉर्मी को सजा-ए-मौत की देने की बात कही। चूँकि जूरी एकमत नहीं थे सो अवसर का लाभ उठाते हुए, जेम्स ब्रेनन ने अदालत से मामले को खारिज करने के लिए कहा, और न्यायाधीश जैक इससे सहमत भी हो गए। इतना ही नहीं, उन्होंने "शातिर और खतरनाक" कुत्तों के लिए मौत की सजा की मांग करने वाले कानून को भी रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि लाइसेंस प्राप्त कुत्ते जहां चाहें वहां जा सकते थे। अफसोस की बात है कि इसका कोई उल्लेख नहीं है कि मुक़दमे के बाद डॉर्मी के साथ क्या हुआ।
साइकोलॉजी टुडे के लिए एक लेख में, ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टेनली कॉर्नन बताते हैं कि डॉर्मी के मुकदमे ने कई अद्वितीय कानूनी मिसाल कायम की हो सकती हैं। सबसे उल्लेखनीय, ज़ाहिर है, कुत्तों को अब जूरी द्वारा परीक्षण का अधिकार है। मामला यह भी बताता है कि कुत्ते गवाह बन सकते हैं, कुत्ते की मौत की सजा को चुनौती दी जा सकती है। ज़रूर, यह एक मज़ाक की तरह लगता है, लेकिन कानूनी मामलों को अक्सर पहले के फैसलों का हवाला देकर तय किया जाता है। शायद किसी दिन कोई वकील 1921 के फैसले की ओर इशारा कर सकता है।
कठघरे में जानवर
दरअसल, कुत्ते या किसी अन्य जानवर पर मुकदमा आज एक अजीब और हास्यास्पद बात लग सकती है लेकिन इतिहास के पन्ने पलटें तो पाएंगे कि पहले के जमाने में ये कोई असामान्य बात नहीं थी। मध्य युग के दौरान, कानूनों को तोड़ने के लिए जानवरों को अक्सर जवाबदेह ठहराया जाता था। अगर उसने "अपराध" किया, तो मामला अदालत में जाता ही था।सन 824 और 1700 के दशक के बीच, यूरोप में पशु मुकदमों की भरमार रही थी।
कुत्ते, घोड़े, मछली, सूअर आदि अनेक तरह के जानवरों को नियमित रूप से अदालतों में घसीटा जाता था। अनेक मामलों में उन्हें मौत की सजा दी गई थी। 1314 में एक बैल को हत्या के लिए फांसी पर लटका दिया गया था। 1474 में कथित तौर पर एक अंडा देने के लिए एक मुर्गे को जला दिया गया था क्योंकि किसी मुर्गे के लिए ये काफी घृणित कार्य था। 1595 में फ़्रांस के मार्सिले में तीन डॉल्फ़िन को मौत की सजा दी गई थी।
वैसे तो भेड़ और घुन अक्सर खुद को परेशानी में पाते थे लेकिन नंबर एक अपराधी सुअर था। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि मध्य युग में हर जगह सूअर पाए जाते थे। 1379 में तीन घातक सूअरों ने एक फ्रांसीसी किसान की हत्या कर दी। जब मामला अदालत में गया, तो सभी सूअरों पर मुकदमा चलाया गया, लेकिन उनके मालिक ने ड्यूक ऑफ बरगंडी को सूअरों को क्षमा करने के लिए मना लिया।
1386 में फ़्रांसीसी शहर फलाइज़ में तो एक सूअर पर एक बच्चे को खा जाने का मुकदमा चला। अदालत में जब सूअर को पेश किया गया तो उसके इंसानों जैसी पोशाक पहनाई गयी थी। दस्ताने, पैंट और एक फेस मास्क भी लगाया गया था। अदालत में झटपट मुकदमा चला और उसे फांसी की सजा सुनाई गयी।
1547 में एक एक मादा सूअर और उसके बच्चों पर एक लड़के की "हत्या" का आरोप लगाया गया। सजा के तौर पर मादा सूअर को उसके पिछले पैरों से एक पेड़ से लटका दिया गया जबकि उसके बच्चों को "उनकी कम उम्र और अपनी माँ के भ्रष्ट प्रभाव" के कारण छोड़ दिया गया।