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World Bicycle Day 2022: विश्व साइकिल दिवस आज, जानें साइकिल से जुड़ी कुछ जरूरी बातें
World Bicycle Day 2022: आज तीन जून को विश्व साइकिल दिवस है। अगर यातायात के इस्तेमाल होने वाले साधनों के विकास के क्रम में साइकिल सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार है। जिसके जरिये कोई भी व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर बहुत आसानी से खुद के श्रम से पहुंच जाता है।
World Bicycle Day 2022 : आज तीन जून को विश्व साइकिल दिवस (World Bicycle Day) है। अगर यातायात (Traffic) के इस्तेमाल होने वाले साधनों के विकास के क्रम में साइकिल (Bicycle) सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार (Invention) है। जिसके जरिए कोई भी व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर बहुत आसानी से खुद के श्रम से पहुंच जाता है। साइकिल का आविष्कार हुए आज दो सौ साल से अधिक हो गए रथ, तांगे, इक्के, टमटम, बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी संग्रहालय में पहुंच गए लेकिन साइकिल आज भी यातायात का सबसे महत्वपूर्ण साधन है।
ये बात अलग है कि गरीबों की साइकिल सस्ती होती है तो अमीरों के लिए आकर्षक साइकिल कई कई लाख की आ रही है जिसमें कई बाइकें और कई कारें खरीदी जा सकती हैं लेकिन साइकिल आज भी शान की सवारी है। डॉक्टर भी शारीरिक फिटनेस के लिए आज भी साइकिलिंग को सर्वश्रेष्ठ एक्सरसाइज मानते हैं।
आपको शायद पता होगा कि साइकिल का आविष्कार भारत में नहीं हुआ साइकिल जर्मनी से भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में पहुंची है। दो पहियों की सवारी साइकिल सबसे पहले जर्मनी में बनी थी। और इसके आविष्कारक थे बेरोन कार्ल वॉन ड्रेस डी साउबूरन। उन्होंने पहली दो पहियों की बिना पैडल की साइकिल 1817 में बनायी थी और इस पर चढ़कर वह 14 किलीमीटर तक गए थे। इसमें बैठने के लिए एक सीट थी। यह साइकिल लकड़ी से बनी थी। जिसे रनिंग मशीन नाम दिया गया था।
जर्मनी में हुए इस साइकिल आविष्कार को लोगों ने हाथों हाथ लिया और इसकी लोकप्रियता का ग्राफ बहुत तेजी से बढ़ा। लेकिन जर्मनी से ब्रिटेन तक पहुंचने में साइकिल को लंबा वक्त लगा 1895 तक ब्रिटेन में आठ लाख से अधिक साइकिलों का निर्माण शुरू हुआ। इसी साल अमेरिका में भी 11 लाख से अधिक साइकिलों का निर्माण हुआ। हालांकि साइकिल भारत तक पहुंचने में फिर 50 साल लगे और 1942 में हिंद साइकिल कंपनी में मुंबई में साइकिल का निर्माण शुरू किया।
1817 में आविष्कार के बाद साइकिल की लोकप्रियता तो बढ़ गई थी लेकिन शुरू में लोग इसे पैर से ठेलकर आगे बढ़ाते थे। लेकिन 1839 में स्कॉटलैंड के एक लुहार किर्कपैट्रिक मैकमिलन ने आधुनिक साइकिल की तरफ कदम बढ़ाते हुए इसमें पैडल लगा कर चलने योग्य बनाया। यहां आपको बता दें कि पहली साइकिल का नाम ड्रेसियन रखा गया था। लोग इसे काठ का घोड़ा भी कहते थे। लेकिन मैकमिलन के इसमें पैडल जोड़ने के बाद इसका नाम वेलोसिपीड दिया गया। चूंकि शुरू में लकड़ी की साइकिल थी लोगों को मेहनत भी बहुत करनी पड़ती थी इसलिए इसे बोन शेकर भी कहा जाता था।
लेकिन इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई और ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका के निर्माताओं ने इसमें सुधार के प्रयोग करते हुए 1872 में इसे सुंदर रूप दे दिया। इसमें लोहे के पहिये लगाए गए। फिर इसमें क्रैंक, गोलियां और वेयरिंग तथा ब्रेक भी लगाए गए। भारत में 1942 में साइकिल निर्माण की शुरुआत के बाद लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया। शुरू में इसे शादी ब्याह में दिया जाने वाला सबसे खास तोहफा माना गया। आम जनता के लिए ये सबसे भरोसेमंद और वफादार साथी थी। गांव से शहरों में जाने वाले सब्जी और दूध विक्रेता इसका भरपूर इस्तेमाल करते थे।
आज भी साइकिल की लोकप्रियता का ग्राफ बना हुआ है और देश की बड़ी आबादी साइकिल पर चल रही है। जिन लोगों ने एक समय साइकिल चलाना छोड़ दिया था आज वह भी साइकिल चला रहे हैं बेशक वह टहलने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हों। लेकिन आम आदमी के जीवन में आज भी साइकिल की अहम भूमिका है।