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World Elder Abuse Awareness Day: आज की पीढ़ी नही चाहती जिन्दगी में दखल बुजुर्गों का

समाज की विद्रूपता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब ज्यादातर घरों में बेटे, बेटियों को अपने बूढ़े मां-बाप बोझ मानने लगे हैं। यह बात महज खयाली नहीं, एक हकीकत है।

Vidushi Mishra
Published on: 15 Jun 2019 5:03 AM GMT
World Elder Abuse Awareness Day: आज की पीढ़ी नही चाहती जिन्दगी में दखल बुजुर्गों का
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नई दिल्ली : आज विश्व बुजुर्ग दुर्व्‍यवहार रोकथाम जागरूकता दिवस है। बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्‍यवहार की रोकथाम के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से दुनिया भर में इसे 15 जून को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 66/127 के परिणामस्वरूप इस दिवस के आयोजन की शुरुआत हुई थी।

जैसे-जैसे दुनिया में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है, वैसे-वैसे उनके साथ दुर्व्‍यवहार की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। यह एक गंभीर सामाजिक बुराई है जो मानव अधिकारों को प्रभावित कर रही है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र भी जागरूकता के जरिए इसे रोकने के लिए प्रयासरत है।

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समाज की विद्रूपता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब ज्यादातर घरों में बेटे, बेटियों को अपने बूढ़े मां-बाप बोझ मानने लगे हैं। यह बात महज खयाली नहीं, एक हकीकत है। एक सव्रे में पाया गया है कि 35 फीसद लोगों को बुजुर्गों की सेवा करने में अब खुशी महसूस नहीं होती। परोपकारी संगठन हेल्पएज इंडिया की उक्त रिपोर्ट कल ‘विश्व बुजुर्ग दुर्व्‍यवहार रोकथाम जागरु कता दिवस’ की पूर्व संध्या पर जारी हुई।

भारत में बुजुर्गों के साथ दुर्व्‍यवहार : देखरेख करने में परिवार की भूमिका, चुनौतियां और प्रतिक्रिया’ विषय पर किए गए सर्वे में पाया गया कि एक चौथाई लोगों को बुजुर्गों की देखरेख करने में निराशा और कुंठा होती है। सर्वे में शामिल 29 फीसद लोग मानते हैं कि वह अपने बुजुर्गों को घर में रखने के बजाय वृद्धाश्रम में रखना पसंद करेंगे। सर्वेक्षण में 20 शहरों के कुल 2090 लोगों को शामिल किया गया। इन लोगों में 30 से 50 साल की उम्र वाले बेटे, बहू, बेटियां और दामाद शामिल थे।

एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में बुजुर्गों खासकर 60 साल या उससे अधिक की उम्र वाले लोगों की आबादी में 2050 तक करीब 20 फीसद का इजाफा हो सकता है। ऐसे में यह रिपोर्ट आने वाले दौर के समाज की भयावह तस्‍वीर पेश करती है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 25 फीसद लोगों को बुजुर्गों के व्यवहार से निराशा और फ्रस्टेशन होती है। यह हालात है टीयर-1 और टीयर-2 जैसे शहरी समाज का। सर्वे में शामिल 29 फीसद लोगों ने बुजुर्गों की सेवा को मध्यम से गंभीर महसूस किया जबकि 15 लोगों ने इसे बोझ माना।

मां-बाप बड़े अरमानों से बच्चों को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन हैरानी तब होती है जब बुढ़ापे में ये ही बच्चे मां-बाप को उनके हाल पर अकेला छोड़ देते हैं। पिछले साल दिल्ली के एक गैर सरकारी संगठन एजवेल फाउंडेशन ने देश के 20 राज्यों के 10 हजार बुजुर्गों पर एक सर्वेक्षण किया था। इसकी रिपोर्ट डराने वाली है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 23.44 फीसद यानी देश का का हर चौथा बुजुर्ग देश में अकेला रहने को मजबूर है। ऐसा भी नहीं कि यह बुराई शहरों तक सीमित है। रिपोर्ट कहती है कि 21.38 फीसद बुजुर्ग गांवों में जबकि 25.3 फीसद शहरों में अकेले रह रहे हैं।

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वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो बुढ़ापा एक अनिवार्य शारीरिक आवस्था है, ऐसे में युवाओं को एक बात बड़ी गहराई से बैठा लेनी होगी कि उन्हें भी समय के इस चक्र के गुजरना होगा। ऐसे में युवा पीढ़ी के सामने सामाजिक व्यवस्था को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है। युवाओं को बुजुर्गों की सेवा के संस्कार को बनाए रखना होगा।

साथ ही आने वाली पीढ़ी को बताना होगा कि बुजुर्ग बोझ नहीं हैं। आदर, सम्मान और सेवा उनका अधिकार है, इससे उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता है। नई पीढ़ी को यह भी बताना होगा कि बुजुर्गों का तिरस्कार एक अपराध है।

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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