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World Largest Arms Importers: हथियारों की संपदा बनाती है किसी देश को सशक्त, जानें कौन है हथियारों को सबसे ज्यादा खरीदने वाला देश
World largest Arms Importers: अलग-अलग देशों ने इस 'डर' के मद्देनज़र रक्षा क्षेत्र में निवेश बढ़ाने का फ़ैसला भी ले लिया है। इस पूरी आशंका का ताज़ा उदाहरण जर्मनी और चीन का है।
World largest Arms Importers: रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग का विनाशकारी रूप पूरी दुनियां देख रही है। महज ईगो को चोट लगने से जन्मी इस युद्ध की विभीषिका से अब दूसरे देशों के बीच युद्ध की आशंकाओं ने भी घर बनाना शुरू कर दिया है, यही वजह है अलग-अलग देशों ने इस 'डर' के मद्देनज़र रक्षा क्षेत्र में निवेश बढ़ाने का फ़ैसला भी ले लिया है। इस पूरी आशंका का ताज़ा उदाहरण जर्मनी और चीन का है।
किसी भी बड़ी जंग की आशंका को दूर करने का दुनिया के मुल्कों के पास एक ही तरीका है - वो है हथियार। जिस देश के पास हथियारों का जितना बड़ा ज़खीरा है, दुश्मन से लड़ाई में वो देश ख़ुद को उतना ही सशक्त मानता है। इसलिए देश दुनिया के 'हथियारों के बाज़ार' यानी उसकी शक्ति को समझना ज़रूरी है।
सबसे ज़्यादा हथियार खरीदने वाले देश
स्वीडन स्थित थिंक टैंक 'स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट' (सिप्री) की साल 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक़ हथियार के इस बाज़ार में हथियारों के पाँच सबसे बड़े
खरीदार हैं- सऊदी अरब, भारत, मिस्र, ऑस्ट्रेलिया और चीन.
बेचने और ख़रीदने वाले देशों को ग़ौर से देखें तो पता चलता है कि चीन इकलौता ऐसा देश है जिसका नाम सबसे अधिक हथियार बेचने वाले देश और सबसे अधिक हथियार खदीदने वाले देश - दोनों ही लिस्ट में हैं।
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ राहुल बेदी इसके पीछे की वजह बताते हैं। उनके मुताबिक़, "चीन का एक पुराना आज़माया हुआ फॉर्मूला है। वो पहले दूसरे देशों से हथियार ख़रीदता है और फिर उसको 'रिवर्स इंजीनियर' करके, कुछ बेहतर बनाकर बेचता है।"
रिवर्स इंजीनियरिंग का मतलब है, हथियारों को खोलकर उसके पुर्जों को अपने यहाँ दोबारा से तैयार करना। इस प्रक्रिया में चीन उन पुर्जों में अपनी ज़रूरत के हिसाब से कुछ बदलाव भी करता है और फिर या तो इन्हें अपने इस्तेमाल में लाता है या फिर बेच देता है। इस वजह से चीन हथियारों के लिए आयातकों की लिस्ट में भी आगे है और निर्यातकों की लिस्ट में भी।
दुनिया को सबसे ज़्यादा हथियार बेचने वाले देश
हथियारों के इस व्यापार में सबसे पहले समझें कि विश्व में कौन-कौन से देश हैं, जो दुनिया में हथियारों का कारोबार करते हैं। अमेरिका, रूस, फ़्रांस, जर्मनी और चीन ये पाँच देश मिल कर पूरी दुनिया के हथियारों के बाज़ार का 75 फ़ीसदी हिस्सों पर अपना अधिकार जमा रखा है । रिपोर्ट्स के मुताबिक फिलहाल नंबर एक पर अमेरिका है और नंबर दो पर रूस। लेकिन रूस भी इस बाज़ार में नंबर एक होने की दौड़ में तेजी से रणनीति अपना रहा है।
रूस और यूक्रेन की इस जंग में अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़ा है। इस वजह से कई जानकार इस जंग को रूस और अमेरिका की जंग भी करार दे रहे हैं।
फिलहाल अमेरिका और यूरोप के कई दूसरे देश यूक्रेन की हथियारों से मदद कर रहे हैं, जिसकी गुहार ख़ुद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की भी लगा रहे है। इस वजह से अमेरिका पर ये आरोप भी लग रहे हैं कि वो असुरक्षा के डर के बीच अपने हथियारों के बाज़ार को और बड़ा करना चाहता है।
रूस से हथियार कौन से देश खरीदते हैं
रूस और अमेरिका से हथियार खरीदने वालों की सूची देखें तो पता चलता है कि वे एकदूसरे से बिलकुल अलग हैं।
सिप्री की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ रूस के हथियारों के टॉप तीन ख़रीदार हैं- भारत, चीन, अल्जीरिया। यानी रूस के हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार भारत ही है।
जानकार मानते हैं कि इसी वजह से भारत इस मामले से दूरी बनाए हुए है और खुलकर रूस का विरोध नहीं कर रहा। रूस भारत को हथियारों के साथ-साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में भी मदद करता है। जिस वजह से भारत कुछ चीजें अपने देश में भी बना पाता है।
अमेरिका से हथियार कौन से देश खरीदते हैं
जहाँ तक अमेरिका के हथियारों के ख़रीदार देशों की बात है तो सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया इस सूची में सबसे आगे हैं। अब प्रश्न उठता है कि क्या भारत अमेरिका से हथियार नहीं ख़रीदता, तो आप को बता दें कि रूस के अलावा भारत अमेरिका, इसराइल और फ़्रांस से भी हथियार खरीदता है।
हाल ही में रक्षा क्षेत्र में मोदी सरकार ने 'आत्मनिर्भर भारत' का नारा बुलंद कर भारत रक्षा क्षेत्र में विविधता लाकर हथियार बेचने वाले मुल्कों पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है।
यही वजह है कि भारत खुल कर रूस और यूक्रेन की इस जंग में किसी का पक्ष नहीं ले रहा। इस वक़्त भारत रूस या अमेरिका से अपने दोस्ताना संबंध खराब नहीं करना चाहता।
रूस और अमेरिका के हथियारों बाज़ार कितना आया बदलाव
सिप्री की रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2016-18 के बीच रूस के हथियारों का बाज़ार बहुत बढ़ा था, लेकिन 2019-20 में ये काफ़ी घट गया। रक्षा क्षेत्र को लेकर भारत के 'आत्मनिर्भर भारत' की मुहिम का सबसे ज़्यादा असर रूस पर भी पड़ा है।
इसमें 53 फ़ीसदी की कटौती भारत की वजह से हुई। इस दौरान भारत ने दूसरे देशों से भी हथियार लिए। हालांकि रूस अब हथियार बेचने के लिए चीन का रुख़ कर रहा है, लेकिन इस घाटे की पूरी भरपाई अब भी नहीं हो पाई है। हैरत की बात है कि पिछले दस सालों में जहाँ अमेरिका के हथियारों का बाज़ार 15 फीसदी बढ़ा है वहीं रूस का 22 फ़ीसदी कम हुआ है।
हालांकि रक्षा मामलों के विशेषज्ञ राहुल बेदी कहते हैं कि रूस यूक्रेन जंग के बाद हथियारों के बाज़ार की तस्वीर थोड़ी बदल सकती है।
वो कहते हैं, "अमेरिका के पास पैसा और तकनीक दोनों हैं। इस वजह से वो हथियार के बाज़ार में नंबर एक पर है। रूस के पास कुछ ऐसी तकनीक है जो अमेरिका तक के पास नहीं है। चीन के पास पैसा है और सामान तैयार करने की औद्योगिक क्षमता भी अगर रूस और चीन ज़्यादा करीब आए, तो हथियारों के बाज़ार में अमेरिका का दबदबा और कितने दिन क़ायम रहेगा, ये कह नहीं सकते।"