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Yoga Day 2021: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर जानें क्यों जीवन का अभिन्न अंग होना चाहिए योग

Yoga Day 2021: योग(Yoga Asanas) सिर्फ आसन या कसरत नहीं है। योग इन सबके परे की चीज है। समझने और आत्मसात करने की विषय है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Vidushi Mishra
Published on: 20 Jun 2021 9:52 PM IST
Know why yoga should be an integral part of life on International Yoga Day
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योग दिवस

Yoga Day 2021: 21 जून यानी आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day) आज है। योग(Yoga Asanas) सिर्फ आसन या कसरत नहीं है। योग इन सबके परे की चीज है। समझने और आत्मसात करने की विषय है।

पातञ्जल योग दर्शन के अनुसार - योगश्चित्तवृतिनिरोध अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। लेकिन सांख्य दर्शन के मुताबिक पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते।

अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है। जबकि विष्णुपुराण कहता है योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।

योग और हठ

भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली भगवद्गीता कहती है- सिद्धासिद्धयो समोभूत्वा समत्वं योग उच्चते अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।

भगवद्गीता के अनुसार - तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् अर्थात् कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है। लेकिन आचार्य हरिभद्र ने योग को मोक्ष प्रात्ति का मार्ग बताते हुए कहा है मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग है। जबकि बौद्ध धर्म कहता है कुशल चितैकग्गता योगः अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।

इनमें से किसी को भी गलत नहीं कहा जा सकता है। सभी के चिंतन का मूल योग के परम तत्व की प्राप्ति का मार्ग बताना है। और जो योगासन किये जाते हैं वह लय के लिए होते हैं। लय बनने पर चित्त में एकाग्रता आती है। हम ऊर्ध्वगामी पथ पर अग्रसर हो जाते हैं।

21 जून को पूरे विश्व में लोग मंत्र के साथ योगासन करेंगे। जोकि मंत्र योग और हठ योग का मिश्रण है।


'मंत्र' क्या है तो इस पर कहा गया है 'मननात् त्रायते इति मन्त्रः'। मन को त्राय (पार कराने वाला) मंत्र है। मन्त्र योग का सम्बन्ध मन से है, मन को इस प्रकार परिभाषित किया है- मनन इति मनः। जो मनन, चिन्तन करता है वही मन है। मन की चंचलता का निरोध मंत्र के द्वारा करना मंत्र योग है। मंत्र योग के बारे में योगतत्वोपनिषद में कहा गया है योग सेवन्ते साधकाधमाः अर्थात अल्पबुद्धि साधक मंत्रयोग से सेवा करता है अर्थात मंत्रयोग उन साधकों के लिए है जो अल्पबुद्धि है।

मंत्र से ध्वनि तरंगें पैदा होती है मंत्र शरीर और मन दोनों पर प्रभाव डालता है। मंत्र में साधक जप का प्रयोग करता है मंत्र जप में तीन बातों का विशेष महत्व है ये हैं-उच्चारण, लय व ताल हैं। तीनों का सही अनुपात मंत्र शक्ति को बढ़ा देता है। मंत्रजप मुख्यरूप से चार प्रकार से किया जाता है वाचिक, मानसिक, उपांशु और अणपा।

योग एक दिन करने का विषय नहीं

हठ का शब्द का अर्थ हठपूर्वक किसी कार्य को करने से लिया जाता है। हठ प्रदीपिका पुस्तक में हठ का अर्थ इस प्रकार दिया है हकारेणोच्यते सूर्यष्ठकार चन्द्र उच्यते। सूर्या चन्द्रमसो र्योगाद्धठयोगोऽभिधीयते॥



इस मंत्र में ह का अर्थ सूर्य तथा ठ का अर्थ चन्द्र बताया गया है। सूर्य और चन्द्र की समान अवस्था हठयोग है। शरीर में कई हजार नाड़ियाँ है उनमें तीन प्रमुख नाड़ियों का वर्णन है, वे इस प्रकार हैं। सूर्यनाड़ी अर्थात पिंगला जो दाहिने स्वर का प्रतीक है।

चन्द्रनाड़ी अर्थात इड़ा जो बायें स्वर का प्रतीक है। इन दोनों के बीच तीसरी नाड़ी सुषुम्ना है। इस प्रकार हठयोग वह क्रिया है जिसमें पिंगला और इड़ा नाड़ी के सहारे प्राण को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कराकर ब्रहमरन्ध्र में समाधिस्थ किया जाता है। हठयोग के चार अंग हैं- आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बन्ध तथा नादानुसधान।

इसी तरह चित्त का अपने स्वरूप में विलीन होना या चित्त की निरूद्धि अवस्था लययोग में आती है। साधक के चित्त् में जब चलते, बैठते, सोते और भोजन करते समय हर समय ब्रह्म का ध्यान रहे इसी को लययोग कहते हैं।

अंत में हम यह कह सकते हैं कि योग एक दिन करने का विषय नहीं है यह सतत अभ्यास से सिद्ध होता है। जिसका योग सिद्ध हो गया उसे सब कुछ मिल जाता है। बौद्ध धर्म में योगाभ्यास को योगकारा कहते हैं। इसलिए 21 जून को योग के प्रचार का दिन मानना चाहिए ताकि जो लोग योग के महत्व से अपरिचित हैं वह इसकी तरफ आकृष्ट हों और अपना जीवन सफल बनाएं।





Vidushi Mishra

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