असम में कांग्रेस ने AIUDF और BPF से तोड़ा नाता, कोर कमेटी की बैठक में लिया बड़ा फैसला

कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस की कोर कमेटी की बैठक में AIUDF के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला लिया गया...

Report :  Anshuman Tiwari
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-08-31 12:27 IST

असम में कांग्रेस ने AIUDF और BPF से तोड़ा नाता (social media)

नई दिल्ली। असम में पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ बना विपक्षी महागठबंधन का किला दरकने लगा है। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को पटखनी देने के लिए कांग्रेस ने बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाली एआईयूडीएफ, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) और अन्य दलों के गठबंधन किया था । मगर अब प्रदेश कांग्रेस ने किया एआईयूडीएफ और बीपीएफ के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला किया है। प्रदेश कांग्रेस की ओर से इसका कारण एआईयूडीएफ के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रति नरम रवैये को बताया गया है। दूसरी ओर एआईयूडीएफ ने कांग्रेस के इस फैसले को एकतरफा और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस को गठबंधन में दरार नहीं डालनी चाहिए। एआईयूडीएफ से कांग्रेस के गठबंधन पर चुनाव से पहले भी सवाल उठे थे मगर पार्टी आखिरकार इस दल के साथ गठबंधन के बाद ही विधानसभा चुनाव में उतरी थी।

भाजपा की तारीफ को बताया कारण 

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस की कोर कमेटी की बैठक में एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला लिया गया। बैठक में सदस्यों की ओर से भाजपा के प्रति एआईयूडीएफ के नरम रवैये का मुद्दा उठाया गया। कांग्रेस प्रवक्ता बोबिता शर्मा ने इस बाबत कहा कि बैठक में एआईयूडीएफ के नेताओं की ओर से भाजपा और मुख्यमंत्री की लगातार की जा रही प्रशंसा का मुद्दा जोर-शोर से उठा। बैठक में इस बात पर गौर किया गया कि भाजपा के प्रति एआईयूडीएफ के बदले रवैये ने कांग्रेस को चकित कर दिया है। एआईयूडीएफ के इस बदले रवैये से कांग्रेस के प्रति जनता की धारणा भी प्रभावित हुई है। बैठक में एआईयूडीएफ के साथ रिश्तों को लेकर लंबी चर्चा की गई । विभिन्न सदस्यों ने इस बाबत अपने विचार रखे। आखिरकार कोर कमेटी के सदस्यों ने सर्वसम्मति से एआईयूडीएफ के साथ नाता तोड़ने का फैसला किया। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि इस फैसले के संबंध में पार्टी हाईकमान को जल्द ही जानकारी दे दी जाएगी।

बीपीएफ के साथ इसलिए तोड़ा नाता 

बैठक में एआईयूडीएफ के साथ ही बीपीएफ के साथ भी गठबंधन से जुड़े मुद्दे पर लंबी चर्चा की गई। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि बीपीएफ नेतृत्व की ओर से समय-समय पर महागठबंधन में बने रहने के प्रति अनिच्छा व्यक्त की गई है। बीपीएफ नेतृत्व विभिन्न प्लेटफार्मों पर अपनी यह राय उजागर करता रहा है। पार्टी सदस्यों का मानना था कि ऐसे में बीपीएफ के साथ भी संबंध बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं है। इसी कारण बीपीएफ से भी नाता तोड़ने का फैसला किया गया। कांग्रेस प्रवक्ता शर्मा ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को इस मामले में फैसला लेने का पूरा अधिकार दिया गया है।

फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया 

कांग्रेस की ओर से नाता तोड़ने का फैसला लिए जाने के बाद एआईयूडीएफ की ओर से तीखी प्रतिक्रिया जताई गई है। एआईयूडीएफ विधायक दल के नेता हाफिज बशीर अहमद ने कहा कि कांग्रेस की ओर से नाता तोड़ने का फैसला एकतरफा और दुर्भाग्यपूर्ण है। इस बाबत एआईयूडीएफ के साथ न तो कोई चर्चा की गई और न कांग्रेस की ओर से कभी अपनी शिकायतें बताई गईं। उन्होंने कहा कि असम में लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष दलों की एकजुटता जरूरी है। उन्होंने भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी बताते हुए कहा कि भाजपा को चुनौती देने के लिए गठबंधन को मजबूत बनाए रखना समय की मांग है मगर कांग्रेस की ओर से गठबंधन तोड़ने का एकतरफा फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि भाजपा के प्रति एआईयूडीएफ के नरम रवैये को गठबंधन तोड़ने का कारण बताया जा रहा है जबकि हमारी पार्टी ने भाजपा की सांप्रदायिक नीतियों का हर स्तर पर विरोध किया है। भविष्य में भी हम भाजपा की सांप्रदायिक नीतियों का विरोध जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को गठबंधन तोड़ने की जगह इसे मजबूत बनाने पर विचार करना चाहिए।

चुनाव से पहले बना था महागठबंधन 

असम में इस साल हुए विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की अगुवाई में 10 दलों ने महाजोत का गठन किया था। इसमें एआईयूडीएफ और बीपीएफ के अलावा आठ अन्य दल भी शामिल थे। राज्य में भाजपा की चुनौतियों से निपटने के लिए यह महागठबंधन किया गया था। इस महागठबंधन में शामिल दलों को 50 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस ने 29, एआईयूडीएफ में 16, बीपीएफ ने चार और माकपा ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। दस दलों का यह महागठबंधन भी भाजपा को जीत हासिल करने से नहीं रोक सका और भाजपा लगातार दूसरी बार राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हुई। चुनाव से पहले बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के साथ हाथ मिलाने पर कांग्रेस में उस समय भी सवाल उठे थे। कई नेताओं का मानना था कि कांग्रेस के इस कदम से भाजपा ध्रुवीकरण में कामयाब हो जाएगी। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व की ओर से इन आपत्तियों को दरकिनार करते हुए एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन पर मुहर लगा दी गई थी।

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