Assam: असम में मुस्लिमों को अलग आईडी देने की कवायद, जानें क्या है प्रस्ताव में

Assam ID Proposal For Muslims: असम सरकार द्वारा गठित एक समिति ने प्रस्ताव दिया है कि असम के मुसलमानों की पहचान के लिए एक जनणना की जाए और उन्हें पहचान पत्र जारी किया जाए।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shreya
Update: 2022-04-28 09:15 GMT

सीएम हिमंत बिस्वा शर्मा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Assam Latest News: असम में मूल मुस्लिम निवासियों (Assamese Muslims) और सीमापार से आये अवैध घुसपैठियों (Illegal Migrants) की पहचान के लिए पहचान पत्र देने की कवायद की जा सकती है। असम सरकार (Himanta Biswa Sarma Government) द्वारा गठित एक समिति ने प्रस्ताव दिया है कि असम के मुसलमानों की पहचान के लिए एक जनगणना की जाए और उन्हें पहचान पत्र जारी किया जाए। ये प्रस्ताव विवादास्पद है क्योंकि यह असमिया भाषी मुसलमानों और बंगाली भाषी मुसलमानों के बीच अंतर करना चाहता है।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पिछले साल जुलाई में 150 बुद्धिजीवियों और असमिया मुस्लिम समुदाय के सम्मानित सदस्यों के साथ 'आलाप अलोचना' यानी धार्मिक अल्पसंख्यकों का सशक्तिकरण शीर्षक से एक बैठक की थी। इसमें असम के मुस्लिम समुदाय से संबंधित कई मामलों पर चर्चा की गई, जिसमें मुस्लिम आबादी की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए "दो बच्चे" की नीति, और "स्वदेशी" मुसलमानों और कथित तौर पर बांग्लादेश से अवैध रूप से राज्य में प्रवेश करने वालों के बीच अंतर कैसे किया जाए इस पर चर्चा की गई।

इस बैठक में समुदाय के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक रोडमैप तैयार करने के लिए आठ उप-समितियां बनाने का निर्णय लिया गया।

समिति ने की थी यह सिफारिश 

इन समितियों में से एक ने 21 अप्रैल को मुख्यमंत्री को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें उसने "स्वदेशी" मुसलमानों के लिए एक परिभाषा प्रस्तावित की। एनई नाउ ने सरमा के हवाले से कहा है कि "स्वदेशी या असमिया मुस्लिम की परिभाषा को सामने रखा जाना स्वीकार्य है। एक बार जब हमने स्वीकार कर लिया कि हमारे पास एक लक्षित समूह है तो समितियों द्वारा रखी गई अनुशंसा को स्वीकार किया जा सकता है।" उसी समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि ऐसे स्वदेशी मुसलमानों की "पहचान और दस्तावेज" के लिए एक जनगणना की जाए और फिर उन्हें पहचान पत्र या प्रमाण पत्र जारी किया जाए।

रिपोर्ट के अनुसार, असमिया मुसलमानों के तीन मुख्य समूह हैं- गोरी, मोरिया और देशी। देशी समुदाय 13वीं शताब्दी के कोच राजबंशी और मेच जैसे स्वदेशी समुदायों से धर्मान्तरित हैं। गोरिया और मोरिया भी धर्मान्तरित हैं, जो अहोम शासन के दौरान इस क्षेत्र में आए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि, "ये समूह खुद को बंगाली भाषी मुसलमानों से अलग मानते हैं जो पूर्वी बंगाल से चले गए थे।"

(फोटो- न्यूजट्रैक)

असमिया मुसलमानों को अधिक प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश

समिति ने यह भी सिफारिश की कि अनुच्छेद 333 में प्रावधानों की तर्ज पर, असम विधानसभा और संसद में असमिया मुसलमानों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाए। एक सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है, "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार असम में एक उच्च सदन (विधान परिषद) बनाया जा सकता है। विधान परिषद के गठन के बाद, इस परिषद में असमिया मुस्लिम समुदाय के लिए विशिष्ट संख्या में सीटें आरक्षित की जा सकती हैं।

इस कदम के विरोध में किसी तरफ से कोई आवाज नहीं आई है। यहां तक कि असम में विपक्षी दलों ने भी चुप्पी साध रखी है। दरअसल, असम में जातीय-भाषाई समीकरण हमेशा जटिल रहे हैं। बांग्लादेश से हिंदू और मुस्लिम दोनों तरह के बंगालियों की आमद को राज्य की जनसांख्यिकी के लिए एक खतरे के रूप में देखा गया है।

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