Himanta Biswa Sarma: असम को बदलने के लिए आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं बिस्व सरमा

Himanta Biswa Sarma: असम की राजनीति में नए मुख्यमंत्री हिमन्त बिस्व सरमा के आने के बाद तेजी से बदलाव आया हुआ है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-07-14 07:19 GMT

हिमंत बिस्वा सरमा ( फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

Himanta Biswa Sarma: असम की राजनीति में इन दिनों बहुत तेजी से बदलाव आया हुआ है। जिस तरह बड़े बयान और फैसले सरकार व मुख्यमंत्री की तरफ से लिये जा रहे हैं, वे पहले कभी नहीं देखे गए थे। ये बदलाव नए मुख्यमंत्री हमन्त बिस्व सरमा (Himanta Biswa Sarma) के आने के बाद से हुआ है। वे बेहद आक्रामक रुख अपना कर आगे बढ़ रहे हैं।

बिस्व सरमा ने चुनाव से पहले कहा था कि सत्ता में आने पर पार्टी गो रक्षा के साथ ही लव जिहाद कानून (Love Jihad Law) भी बनाएगी, जो हिंदू-मुसलमान दोनों पर लागू होगा। उसके बाद कुर्सी संभालते ही उन्होंने मुस्लिमों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए दो बच्चों वाली नीति को कानूनी जामा पहनाने का एलान किया।

अब हाल ही में उन्होंने पुलिस एनकाउंटर में अपराधियों का मार गिराने को सही ठहरा कर भी विवाद खड़ा कर दिया है। इसी बीच सरकार ने गो रक्षा (Cow protection) विधेयक सदन में पेश कर दिया है जिसके तहत मंदिरों से 500 मीटर के दायरे में बीफ की बिक्री पर प्रतिबंध रहेगा।

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने मवेशी का वध, उपभोग और परिवहन विनियमित करने के लिए एक विधेयक इसी हफ्ते असम विधानसभा (Assam Legislative Assembly) में पेश किया। सरमा ने कहा है कि नए कानून का मकसद सक्षम अधिकारियों की ओर से चिन्हित जगहों के अलावा बाकी जगहों पर बीफ की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाना है। इस नए कानून के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे। कानून का उल्लंघन करने की स्थिति में दोषियों को कम से कम आठ साल की कैद और  5 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। नए कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति दूसरी बार दोषी पाया जाता है तो सजा दोगुनी हो जाएगी।

हिमन्त बिस्व सरमा (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

ईसाई बहुलराज्यों पर असर

बीफ सम्बन्धी कानून के कारण पूर्वोत्तर के ईसाई-बहुल राज्यों में गोमांस की सप्लाई में बाधा पहुंचने का अंदेशा है। पूर्वोत्तर के राज्यों में बीफ का काफी उपभोग किया जाता है। बीफ यहां खानपान का पारंपरिक अंग रहा है। नागालैंड और मिजोरम ने तो फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा ने कहा है कि अगर इस कानून का असर राज्य में पशुओं की सप्लाई पर पड़ा तो वे केंद्र के समक्ष यह मुद्दा उठाएंगे। असम में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के विधायक अमीनुल इस्लाम कहते हैं कि भाजपा ध्रुवीकरण के मकसद से इस कानून के जरिए एक खास तबके को निशाना बना रही है। अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ ने सरकार से लोगों की खान-पान की आदतों में दखल नहीं देने को कहा है।

एनकाउंटर पर विवाद

असम में बीते दो महीने में कथित तौर पर हिरासत से भागने का प्रयास कर रहे करीब 12 संदिग्ध अपराधियों को मार गिराया गया है। विपक्ष की ओर से उठे सवालों के बाद इसे उचित ठहराते हुए मुख्यमंत्री ने कहा है कि आरोपी पहले गोली चलाए या भागने की कोशिश करे, तो कानूनन पुलिस को गोली चलाने का अधिकार है।

एनकाउंटर-हिमंत बिस्वा डिजाइन (फोटो- सोशल मीडिया)

इस मसले पर भी काफी राजनीति गरमाई हुई है

असम के एक एडवोकेट ने तमाम मुठभेड़ों को लेकर असम पुलिस के खिलाफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई है और इन घटनाओं की जांच करने का भी अनुरोध किया है। असम के कांग्रेस प्रमुख रिपुन बोरा ने कहा है कि मुख्यमंत्री के गोली मार देने वाले बयान के गंभीर नतीजे होंगे और असम एक पुलिस राज्य में बदल जाएगा। मानवाधिकार कार्यकर्ता मंजीत भुइयां कहते हैं। बोरा ने कहा है कि लगता है बिस्व सरमा संघ का एजेंडा लागू करने की हड़बड़ी में हैं।

राजनीतिक महत्वाकांक्षा

बिस्व सरमा ने 1980 के दशक के शुरुआत में राजनीति में उस समय कदम रखा जब असम में विदेशी विरोधी आंदोलन चल रहा था। उस समय उन्होंने आसू नेताओं प्रफुल्ल कुमार महंता और भृगु कुमार फूकन के सहयोगी के तौर पर काम किया। लेकिन वर्ष 2001 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और पहली जीत हासिल की। सरमा को करीब से जानने वालों की मानें तो उनकी निगाह शुरू से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थी। कांग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों के साथ वर्षों तक काम करने के दौरान भी वह अपने लक्ष्य पर अड़े रहे। कई लोग उन्हें पूर्वोत्तर का सबसे ताकतवर नेता मानते हैं। 52 वर्षीय सरमा के समर्थक उनकी राजनीतिक क्षमता के कायल हैं तो विरोधी उनकी अति महत्वाकांक्षा की आलोचना करते हैं।

सरमा वर्ष 2001 से ही असम सरकार के मंत्री हैं। उनको ऐसा नेता माना जाता है जो तमाम प्रतिकूल हालात में भी काम कर सकता है। उनकी इस खासियत की वजह से ही कांग्रेस के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों - हितेश्वर सैकिया और तरुण गोगोई ने उनको राजनीति में बढ़ावा दिया था। सरमा ने छह साल पहले अपनी महत्वाकांक्षा के चलते कांग्रेस से नाता तोड़ कर भाजपा का दामन थामा था और अब मुख्यमंत्री बनने के बाद बहुत तेज रफ्तार से चल रहे हैं।

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