आखिर चिता में क्यों नहीं जलाई जाती बांस की बनी अर्थी, यहां जानें

हिन्दू धर्म में सोलह संस्कार होते हैं और इसमें से मृत्यु को अंतिम संस्कार के रुप में मनाया जाता है। मृत्यु संस्कार में शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए बांस की अर्थी का इस्तेमाल किया जाता है।

Update: 2020-01-17 09:43 GMT

लखनऊ: हिन्दू धर्म में सोलह संस्कार होते हैं और इसमें से मृत्यु को अंतिम संस्कार के रुप में मनाया जाता है। मृत्यु संस्कार में शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए बांस की अर्थी का इस्तेमाल किया जाता है।

शव का अंतिम संस्कार करते समय बांस की लकड़ी को चिता पर नहीं रखते है। इसके पीछे की क्या है धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यता आइए जानते हैं।

हिन्दू शास्त्रों में पेड़-पौधों की विशेष रूप से पूजा की जाती है लेकिन बांस की लकड़ी को जलाना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करना भारी पितृ दोष माना जाता है, इसलिए अर्थी में इस्तेमाल होने वाली बांस की लकड़ी को नही जलाया जाता है।

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वैज्ञानिक नजरिए से बांस की लकड़ी में लेड सहित कई और धातु मौजूद होते है जिसके जलने पर लेड ऑक्साइड बनता है। इससे न सिर्फ वातावरण दूषित होता बल्कि सांस संबंधित कई परेशानियां भी आती है इसलिए शवों के साथ बांस की लकड़ी को नही जलाया जाता है।

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लोग भले ही शवो के जलते समय बांस की लकड़ी को नहीं जलते हो लेकिन इन दिनो बांस से बनी अगरबत्ती का खूब इस्तेमाल करते है। इसे बनाने में फेथलेट केमिकल का इस्तेमाल करते है। जो सेहत के लिए नुकसानदायक है।

अगरबत्ती के धुंए में न्यूरोटॉक्सिक और हेप्योटॉक्सिक होता है जो मस्तिष्क आघात और कैंसर का बड़ा कारण बनता है। इसलिए शास्त्रों में अगरबत्ती का कोई भी इस्तेमाल करने का जिक्र नही होता है।

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