Ganesh Visarjan 2020 : रखें इन बातों का ध्यान, जानें इसमें छिपा रहस्य
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से चतुर्दशी तिथि तक गणेश जी की उपासाना के लिए गणेश चतुर्थी का पर्व मनाते हैं। श्री गणेश प्रतिमा की स्थापना चतुर्थी को की जाती है और विसर्जन चतुर्दशी को किया जाता है।
लखनऊ : गणेश जी की उपासाना के लिए गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से चतुर्दशी तिथि तक मनाते हैं। श्री गणेश प्रतिमा की स्थापना चतुर्थी को की जाती है और विसर्जन चतुर्दशी को किया जाता है। माना जाता है की प्रतिमा का विसर्जन करने से भगवन दोबारा कैलाश पर्वत पर पहुंच जाते हैं। स्थापना से ज्यादा विसर्जन की महिमा होती है। एक सितंबर को गणेश जी की प्रतिमा विसर्जन का दिन है। गजानन चतुर्थी को आते है, और चतुर्दशी को चले जाते हैं।
इस दिन अनंत शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए इस दिन को अनंत चतुर्दशी कहते हैं। कुछ विशेष उपाय करके इस दिन जीवन की मुश्किल से मुश्किल समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।
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लौकिक सुख केवल शरीर को तृप्त करते हैं ना कि आत्मा को
गणपति बप्पा भी हमारे घर में स्थान ग्रहण करते हैं और हमें उनसे लगाव हो जाता है। परंतु समय पूरा होते ही हमें उन्हें विसर्जित करना पड़ता है। इस तरह हमें इस बात को समझना होगा कि हम जिन्हें जिंदगी भर अपना समझते हैं ।असल में वो हमारी होती ही नहीं हैं। विसर्जन हमें यह सिखाता है कि सांसारिक वस्तुएं और लौकिक सुख केवल शरीर को तृप्त करते हैं ना कि आत्मा को।
इस दिन व्रत ज़रूर रखें या केवल फलाहार लें। घर में स्थापित प्रतिमा का विधिवत पूजन करें। पूजन में नारियल, शमी पत्र और दूब ज़रूर अर्पित करें। इसके बाद प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाएं। अगर प्रतिमा छोटी है तो गोद या सिर पर रख कर ले जाएं। प्रतिमा को ले जाते समय भगवान गणेश जी को समर्पित अक्षत घर में ज़रूर बिखेर दें। घर की तरफ़ चेहरा कर के ले जाएं। चमड़ी की बेल्ट घड़ी य पर्स पास ना रखें। नंगे पैर मूर्ति का वहन और विसर्जन करें। विसर्जन के बाद हाथ जोड़कर श्री गणेश जी से कल्याण और मंगल की प्राथना करें। अनंत चतुर्दशी का भी सहयोग इसी दिन बना हुआ है।
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विसर्जन के पीछे छिपा रहस्य
गणेश की प्रतिमा बड़े प्यार से बनाई जाती है। यही प्यार और भक्ति इस मिट्टी की प्रतिमा को एक आध्यात्मिक शक्ति का आकार देती हैं। समय आने पर, इसे फिर प्रकृति को लौटा दिया जाता है। गणेश चतुर्थी के दौरान, हम मूर्ति में भगवान गणेश के आध्यात्मिक रूप को आमंत्रित करते हैं और अवधि समाप्त होने पर हम आदर से प्रभु से मूर्ति को छो़ड़ने की विनती करते हैं ताकि हम मूर्ति को पानी में विसर्जित कर सकें। इससे हमें पता चलता है कि भगवान निराकार है।
जीवन चक्र से जुड़ा
अतः हम उनके दर्शन पाने, भजन सुनने और स्पर्श पाने के लिए और पूजा में चढ़ाएं जाने वाले फूलों की मोहक और प्रसाद पाने के लिए उन्हें एक आकार देते हैं। विसर्जन की रीत, हमारे जीवन-मृत्यु के चक्र की प्रतीक है। गणेश की मूर्ति बनाई जाती है, उसकी पूजा की जाती है एवं फिर उसे अगले साल वापस पाने के लिए प्रकृति को सौंप दिया जाता है। इसी तरह, हम भी इस संसार में आते हैं अपने जीवन की जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं।
समय समाप्त होने पर मृत्यु को प्राप्त कर अगले जन्म में एक नए रूप में प्रवेश करते हैं। विसर्जन हमें तटस्थता के पाठ को सिखाता है। इस जीवन में मनुष्य को कई चीज़ों से लगाव हो जाता है और वो माया के जाल में फंस जाता है, लेकिन जब मृत्यु आती है तब हमें इन सारे बंधनों को तोड़ कर जाना पड़ता है।
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विसर्जन के समय ध्यान दें
एक भोजपत्र या पीला कागज लें। अष्ट गंद की स्याही या लाल स्याही की कलम भी लें। सबसे पहले स्वस्तिक बनाएं। उसके बाद ॐ गण गणपतये नमः लिखें। उसके बाद अपनी जो भी समस्याएं हैं, वो लिखें। काट-पीट ना करें और कागज के पीछे कुछ ना लिखें। अंत में अपना नाम लिखें।
फिर गणेश मंत्र और फिर स्वस्तिक बनाएं। कागज को मोड़कर रक्षा सूत्र (मौली) से बांध लें और गणेश जी को इसे समर्पित करें और फिर इससे गणेश जी की मूर्ति के साथ विसर्जित करें। आपकी सभी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। इस दिन गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से जीवन की सभी समस्याओ से मुक्ति मिलती है।