Ganga Saptami 2024: मां गंगा का अवतरण,गंगा सप्तमी,और गंगा प्रवाह पूजन का महात्म्य

Ganga Saptami 2024: इसी आधार पर गंगा का एक नाम जाह्नवी हुआ तथा यही तिथि गंगा सप्तमी के रूप में मनाने की शुरुआत हुई

Report :  Sanjay Tiwari
Update:2024-05-13 17:14 IST

Ganga Saptami ( Social Media Photo)

Ganga Saptami 2024:सनातन संस्कृति के लिए मां गंगा का स्थान प्राण तत्व का है। इसीलिए मां गंगा के अवतरण, अविरल प्रवाह और इनके पूजन के अनेक पवित्र मुहूर्त वर्ष में आते हैं। सामान्य रूप से अक्षय तृतीया और गंगा दशहरा का प्रचलन तो है किंतु गंगा सप्तमी के बारे में बहुत कम लोगों को ही ज्ञात है। यह वह तिथि है जिस क्षण महर्षि जाहनु ने गंगा को मुक्त किया था। इसी आधार पर गंगा का एक नाम जाह्नवी हुआ तथा यही तिथि गंगा सप्तमी के रूप में मनाने की शुरुआत हुई।

पूजन और परंपरा

गंगा सप्तमी का उपवास कर व्यक्ति रोग , शोक तथा दुखो से मुक्त हो जाता हैं । इस पुण्यकारी व्रत बैशाख मास में शुक्ल पक्ष को सप्तमी तिथि को किया जाने वाला व्रत गंगा सप्तमी कहलाती हैं । इस दिन माँ गंगा स्वर्ग लोक से शिव भगवान की जटाओ में उतरी थी इसलिये इस दिन को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है । उसके बाद शिवजी ने गंगा माँ को पृथ्वी पर छोड़ा था जिससे पृथ्वी गंगा माँ के वेग को सहन कर सके । इस दिन स्नान करके पवित्र हो माँ गंगा व शिवजी भगवान का पूजन किया जाता हैं । मोक्ष की देवी माँ गंगा में गंगा सप्तमी को गंगा स्नान करने से विशेष फल मिलता हैं । गंगा सप्तमी के दिन माँ गंगा मन्दिरों व गंगा जी में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान के पश्चात दिन दुखियो को वस्त्र , अन्न , जल का दान करने से विशेष फल मिलता हैं । इस दिन किया हुआ गंगा स्नान , दान , जप , होम , तथा उपवास अनन्त फलदायक होता हैं । व्रती गंगा सप्तमी के दिन फल , पुष्प आदि लेकर माँ गंगा की प्रदक्षिणा करता हैं , उसकी माँ गंगा सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं तथा अंत में प्रभु चरणों में स्थान मिलता हैं ।


गंगा सप्तमी की कथा

गंगा की उत्पति के बारे में अनेक मान्यताये हैं । सनातन की आस्था का केंद्र गंगा एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल से माँ गंगा का जन्म हुआ।एक अन्य मान्यता के अनुसार गंगा श्री विष्णु जी के चरणों से अवतरित हुई । जिसका पृथ्वी पर अवतरण राजा सगर के साठ हजार पुत्रो का उद्दार करने के लिए इनके वंशज राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हुए । राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजो का उद्धार करने के लिए पहले माँ गंगा को प्रसन्न किया उसके बाद भगवान शंकर की कठोर आराधना कर नदियों में श्रेष्ठ गंगा को पृथ्वी पर उतरा व व अंत में माँ गंगा भागीरथ के पीछे – पीछे कपिल मुनि के आश्रम में गई एवं देवनदी गंगा का स्पर्श होते ही भागीरथ के पूर्वजो अर्थात राजा सगर के साठ हजार पुत्रो का उद्धार हुआ ।एक अन्य कथा श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्धानुसार राजा बलि ने तिन पग पृथ्वी नापने के समय भगवान वामन का बायाँ चरण ब्रह्मांड के ऊपर चला गया। वहाँ ब्रह्माजी के द्वारा भगवान के चरण धोने के बाद जों जलधारा थी , वह उनके चरणों को स्पर्श करती हुई चार भागो में विभक्त हो गई ।

सीता – पूर्व दिशा

अलकनंदा – दक्षिण

चक्षु – पश्चिम


भद्रा – उत्तर – विन्ध्यगिरी के उत्तरी भागो में इसे भागीरथी गंगा के नाम से जाना जाता हैं।भारतीय साहित्य में देवनदी गंगा के उत्पत्ति की तीन प्रमुख तिथियां वर्णित की गई हैं _

बैशाख मास शुक्ल पक्ष तृतीया

बैशाख मास शुक्ल पक्ष सप्तमी

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की गंगा दशमी

गंगा जल का स्पर्श होते ही सारे पाप क्षण भर में धुल जाते हैं । देवनदी गंगा जिनके दर्शन मात्र से ही सारे पाप धुल जाते हैं क्यों की गंगा जी भगवान के उन चरण कमलो से निकली हैं जिनके शरण में जाने से सारे क्लेश मिट जाते हैं ।

इस वर्ष की गंगा सप्तमी और शुभ योग

इस वर्ष की गंगा सप्तमी की शुरुआत 14 मई को रात 2 बजकर 50 मिनट पर होगी और समापन 15 मई को सुबह 4 बजकर 19 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार, इस बार गंगा सप्तमी 14 मई को ही मनाई जाएगी। गंगा सप्तमी का पूजन का मुहूर्त सुबह 10 बजकर 56 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 39 मिनट तक रहेगा।गंगा सप्तमी के दिन पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग का संयोग भी बनने जा रहा है। इस दिन पुष्य नक्षत्र का संयोग 13 मई को सुबह 11 बजकर 23 मिनट से शुरू होगा और समापन 14 मई को दोपहर 1 बजकर 5 मिनट पर होगा। वहीं, सर्वार्थ सिद्धि योग इस दिन दोपहर 1 बजकर 5 मिनट पर शुरू होगा और समापन 15 मई को सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर होगा।इसके अलावा रवि योग सुबह 5 बजकर 31 मिनट से शुरू होगा और समापन दोपहर 1 बजकर 5 मिनट पर होगा।

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