गणेश चतुर्थी 2020: शुभ मुहूर्त जानकर आज ही करें तैयारी, गणपति भगवान भरेंगे भंडार

देश में मनाएं जाने वाले त्‍योहारों में गणेश चतुर्थी  एक प्रमुख त्योहार है। इस दिन भगवान गणेश का जन्‍म मनाया जाता है। भगवान गणेश को हिंदू धर्म में ज्ञान, बुद्धि और सौभाग्‍य का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो इस पर्व को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है

Update:2020-08-20 07:29 IST
गणेश चतुर्थी मुहूर्त और महत्व

लखनऊ: देश में मनाएं जाने वाले त्‍योहारों में गणेश चतुर्थी एक प्रमुख त्योहार है। इस दिन भगवान गणेश का जन्‍म मनाया जाता है। भगवान गणेश को हिंदू धर्म में ज्ञान, बुद्धि और सौभाग्‍य का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो इस पर्व को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र की गणेश चतर्थी की बात ही निराली है। इसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जानते हैं। इस बार 22 अगस्त से गणेशोत्सव शुरु होने वाला है।

 

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धूमधाम से मनाते हैं विनायक चतुर्थी

गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे भारत में बड़ी ही श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से भी जानते है। महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश सहित भारत के समस्त राज्यों में गणेश चतुर्थी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। घरों में गणेश जी को स्थापित किया जाता है और अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी की धूमधाम से विदाई की जाती है। गणेश चतुर्थी का पर्व दो से दस दिन तक मनाया जाता है। इस पर्व को गणेश महोत्सव के रुप में मनाया जाता है।

 

गणेश चतुर्थी का पर्व इस साल 22 अगस्त को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार इस दिन शनिवार का दिन है। भगवान गणेश जी को बुद्धि, विवेक, धन-धान्य, रिद्धि-सिद्धि का कारक माना जाता है। मान्यता है कि गणेश जी को प्रसन्न करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति की स्थापना होती है।

शुभ मुहूर्त

22 अगस्त 2020 को शनिवार के दिन गणेश चतुर्थी शाम 7:57 बजे तक है और हस्त नक्षत्र भी शाम 7:10 बजे तक है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन वर्णित चौघड़िया मुहूर्त शुभता प्रदान करने वाला है। पंचांग के अनुसार 22 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 22 बजे से शाम 4 बजकर 48 बजे तक चर, लाभ और अमृत के चौघड़िया है।

ना करें चंद्रदर्शन

पंचांग के अनुसार इस दिन के चौघड़िया को ध्यान में रखकर ही भगवान गणेश जी को घर पर स्थापित करें। क्योंकि इस अवधि में स्थित और चर लग्न भी शुभ है। विशेष बात ये है कि भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को चंद्रमा के दर्शन करना शुभ नहीं माना गया है। गलती से इस दिन यदि चंद्रमा के दर्शन हो भी जाएं तो अगले दिन सुबह जरुतमंदों को सफेद वस्तुओं का दान करना चाहिए।

 

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मान्यता

 

गणेश चतुर्थी को सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा क्षेत्र में मनाया था। दंत कथाओं में ये बतलाया जाता है कि इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव के पुत्र के रूप में गणेश जी का जन्म हुआ था।

सबसे प्रचलित कथा ये है कि एक बार भगवान शिव कहीं बाहर गए हुए थे, उनकी अनुपस्थिति में देवी पार्वती ने अपने शरीर पर उबटन लगाया। उबटन को छुड़ाकर उन्‍होंने एक मूर्ति बना दी, उससे बाल गणेश का सृजन हुआ। इसके बाद, देवी पार्वती नहाने के लिए चली गई और उन्‍होंने बाल गणेश को अपने दरवाजे पर पहरा देने के लिए कहा।

बाल गणेश, दरवाजे पर पहरा देने लगे कि तभी भगवान शंकर आ गए। उन्‍होंने अंदर जाने का प्रयास किया तो गणेश ने उन्‍हें रोक दिया। भगवान शंकर को गुस्‍सा आ गया, उन्‍होंने गणेश का सिर, धड़ से अलग कर दिया। तब तक माता पार्वती निकल आई।

उन्‍हें देखकर क्रोध आ गया। उन्‍होने कालीं का रूप धर लिया। भगवान शंकर ने पूरी बात सुनने के बाद क्षमा मांगी और गणेश को जीवित करने का हल ढूंढा।उन्‍होंने अपने गणों से कहा किसी ऐसे बच्‍चे का सिर ले आना, जिसकी मां उसकी तरफ पीठ करके सो गई हों। गण, एक हथिनी के बच्‍चे का सिर ले आएं, जो दूसरी ओर मुंह करके सोई थी। भगवान शंकर ने उस सिर को गणेश के धड़ से जोड़ दिया।

इस प्रकार, बाल गणेश पुन: जीवित हो गए और माता पार्वती प्रसन्‍न हो गई। तब से इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम से जानते हैं। पूरे महाराष्‍ट्र में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है।

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