ऋषि पंचमी 2020: महिलाओं का यह दोष होता है दूर, जानें इस उत्तम व्रत का महत्व

 भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का उपवास रखा जाता है। इस बार ऋषि पंचमी 23 अगस्त रविवार को है। इस दिन महिलाएं सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं। हालांकि ज्यादातर महिलाएं इस व्रत के बारे में नहीं जानती है और वर्ष भर गलतियां करती रहती हैं और जो महिलाएं जानती हैं

Update:2020-08-23 07:03 IST
ऋषि पंचमी

जयपुर: भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का उपवास रखा जाता है। इस बार ऋषि पंचमी 23 अगस्त यानि आज रविवार को है। इस दिन महिलाएं सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं। हालांकि ज्यादातर महिलाएं इस व्रत के बारे में नहीं जानती है और वर्ष भर गलतियां करती रहती हैं और जो महिलाएं जानती हैं वो ये भूल कर बैठती हैं। पूजा करते समय नियमों में जाने-अनजाने में भूल होने पर घर में धीरे-धीरे कलह का वातावरण हो जाता है और सुख-शांति भंग होने लगती है। यदि इससे बचना चाहते हैं तो पूजा करते समय भूल कर भी ये गलती नहीं करनी चाहिए।

यह व्रत और ऋषियों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता, समर्पण और सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता है। इस दिन महिलाएं व्रत करती हैं। ऋषियों की पूजा करने के बाद कहानी सुनी जाती हैं, उसके बाद एक समय फलाहार लेते हैं। महिलाएं जब माहवारी से होती हैं तब गलती से कभी मंदिर में चली जाती हैं या कभी पूजा हो तो वहां चली जाती हैं तो उसका दोष लगता हैं । उस दोष को दूर करने के लिए यह व्रत किया जाता हैं।

 

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कहीं-कहीं इसी दिन बहनें भी अपने भाइयों की सुख और लम्बी उम्र की कामना के लिए व्रत और पूजा करती हैं ।कई जगह बहने भाइयों को इस दिन भी राखी बांधती है। हरी घास जो 5 तोड़ी की होती हैं, उसे लेकर 5 भाई बनाते हैं और एक बहन बनाते हैं । भाई को सफेद कपड़े में और बहन को लाल कपड़े में लपेटते हैं । चावल बनाकर इन पर चढ़ाते हैं । फिर उसकी पूजा करते हैं और कहानी सुनते हैं ।

 

*सप्त ऋषियों की स्थापना करने से पहले आपको सफेद वस्त्र ही धारण करना चाहिए। इनकी पूजा करते समय गोघ्रत की आहुतियां देना बहुत आवश्यक है। ऐसा नहीं करने से ऋषि नाराज हो सकते हैं।

* उपवास के दौरान हल की जुताई वाले अनाज व्रत में शामिल न करें। महावारी का समय समाप्त होने के बाद इसका उद्यापन करें।

 

ऋषि पंचमी कथा

बहुत समय पहले की बात है। एक समय विदर्भ देश में उत्तक नाम का ब्राह्मण अपनी पतिव्रता पत्नी के साथ निवास करता था। उसके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री थी। ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह अच्छे ब्राह्मण कुल में कर देता है परंतु काल के प्रभाव स्वरुप कन्या का पति अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है, और वह विधवा हो जाती है और अपने पिता के घर लौट आती है। एक दिन आधी रात में लड़की के शरीर में कीड़े उत्पन्न होने लगते है़।अपनी कन्या के शरीर पर कीड़े देखकर माता-पिता दुख से व्यथित हो जाते हैं और पुत्री को उत्तक ॠषि के पास ले जाते हैं। अपनी पुत्री की इस हालत के विषय में जानने की प्रयास करते हैं। उत्तक ऋषि अपने ज्ञान से उस कन्या के पूर्व जन्म का पूर्ण विवरण उसके माता-पिता को बताते हैं और कहते हैं कि कन्या पूर्व जन्म में ब्राह्मणी थी और इसने एक बार रजस्वला होने पर भी घर-बर्तन इत्यादि छू लिये थे और काम करने लगी। बस इसी पाप के कारण इसके शरीर पर कीड़े पड़ गये हैं।

 

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शास्त्रों के अनुसार रजस्वला स्त्री का कार्य करना निषेध है। परंतु इसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और इसे इसका दण्ड भोगना पड़ रहा है। ऋषि कहते हैं कि यदि यह कन्या ऋषि पंचमी का व्रत करें और श्रद्धा भाव के साथ पूजा और क्षमा प्रार्थना करें तो उसे अपने पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाएगी। इस प्रकार कन्या द्वारा ऋषि पंचमी का व्रत करने से उसे अपने पाप से मुक्ति प्राप्त होती है।लड़की की मां ने जब अपने पिता से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम्हारी बेटी ने पूर्व जन्म में माहवारी के समय बर्तनों को छू दिया था।

 

उसी के श्राप के कारण तुम्हारी लड़की की ऐसी दशा हुई है।इसके बाद उन्होंने इससे निबटने के लिए उपाय बताया। उन्होंने ऋषि पंचमी के दिन उपवास करने के लिए कहा और पूजा विधि भी बताई। पूजा करने के बाद इस ब्राह्मण में फिर से खुशिया लौट आई और इस व्रत के असर के बाद बेटी को अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य प्राप्त हुआ।

 

 

ऋषि पंचमी पूजन का मुहूर्त व विधि

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का प्रारंभ 22 अगस्त को शाम 07 बजकर 57 मिनट पर हो रहा है, जो अगले दिन 23 अगस्त को शाम 05 बजकर 04 मिनट तक रहेगी। ऋषि पंचमी पर पूजा का मुहूर्त 02 घंटे 36 मिनट का है। आप 23 तारीख को दिन में 11 बजकर 06 मिनट से दोपहर 01 बजकर 41 मिनट तक पूजा कर सकते हैं।

 

इसमें महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करती है। उसके बाद पूजा स्थल पर चौक बनाकर सप्तऋषि बनाती है। कलश स्थापना कर धूप, दीप से पूजा कर भोग लगा कर पूजा की जाती है। इस दिन हल चलाया अनाज नहीं खाते हैं। माहवारी के बाद व्रत का उद्यापन कर देते है। उद्यापन के दिन सात ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। यथा संभव दान देकर विदा किया जाता है।

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