Pitru Paksha 2020: अब 15 दिन पूर्वज होंगे पास, इस दिन से शुरू हो रहा श्राद्ध
इस बार 2 सितंबर से श्राद्ध की शुरुआत हो रही है। इस दौरान हमारे पूर्वज हमारे घर में वास करेंगे। पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध 2 सितंबर को आरंभ हो रहा हैं। इस बार भी 15 दिन के ही श्राद्ध है। 15 दिन के लिए हमारे पितृ घर में होंगे
जयपुर: इस बार 2 सितंबर से श्राद्ध की शुरुआत हो रही है। इस दौरान हमारे पूर्वज हमारे घर में वास करेंगे। पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध 2 सितंबर को आरंभ हो रहा हैं। इस बार 15 -16 दिन के ही श्राद्ध है। मतलब इतने दिन के लिए हमारे पितृ घर में होंगे और तर्पण के माध्यम से तृप्त होंगे। यह समय कुल, परंपरा, पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों का स्मरण करने और उनके पदचिह्नों पर चलने का है।
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इन दिनों में पितरों के लिए पिंडदान किया जाता है। हर साल बिहार के गया, महाराष्ट्र के नासिक, मध्यप्रदेश के उज्जैन और ब्रह्मकपाल में लाखों लोग पिंडदान करने पहुंचते हैं। कोरोना के कारण इस बार ऐसा नहीं होगा हैं।
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष चलता हैं जो कि इस बार 2 सितंबर से 17 सितंबर तक है। जिस तिथि को मृत्यु होती हैं उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता हैं। इसी के साथ ही श्राद्ध से जुड़े कुछ नियम है जो जानना चाहिए...
नाना-नानी का श्राद्ध
* नाना-नानी का श्राद्ध प्रतिपदा को कर सकते हैं। यदि नाना नानी का बेटा नहीं है तो श्राद्ध बेटी उसके पुत्र कर सकते हैं।
अविवाहित मृतक का श्राद्ध
* जिनकी मृत्यु अविवाहित हुई है उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध मान्य है। सौभाग्यवती की मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए।
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श्राद्ध नवमी
*यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को कर सकते हैं। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है।
बच्चों-सन्यासियों का श्राद्ध
*एकादश को संन्यास लेने वाले व्यक्तियों के श्राद्ध करने की परंपरा है। श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु अकाल हो या जल में डूबने।
ज्ञात-अज्ञात पितरों का श्राद्ध
* अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध की परंपरा है। इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन कहते हैं।
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पितृमोक्ष अमावस्या
* पूर्णिमा को मृत्यु प्राप्त जातकों का श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। यदि निधन पूर्णिमा तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या को किया जा सकता है।