परंपरागत धर्मगुरुओं से अलग थे शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, ऐसा था आध्यात्मिक सफर

शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती इन परम्पराओं को तोड़कर निर्धन बस्तियों में जाते थे। वहां की समस्याओं पर विचार करने के लिए वे मठ छोड़कर कुछ दिन के लिए एकान्त में चले गये

Update:2021-02-28 07:22 IST
कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का जन्म 18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु में हुआ था। वह कांची मठ के 69वें शंकराचार्य थे। जयेंद्र 1954 में शंकराचार्य बने थे। इससे पहले उनका नाम सुब्रमण्यन महादेव अय्यर था।

कांचीपुरम: हिन्दू धर्म में शंकराचार्य का बहुत ऊंचा स्थान है। अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड एवं पूजा आदि के कारण प्रायः शंकराचार्य मन्दिर-मठ तक ही सीमित रहते हैं। शंकराचार्य की चार प्रमुख पीठों में से एक कांची अत्यधिक प्रतिष्ठित है।

प्रारंभिक जीवन

कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का जन्म 18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु में हुआ था। वह कांची मठ के 69वें शंकराचार्य थे। जयेंद्र 1954 में शंकराचार्य बने थे। इससे पहले उनका नाम सुब्रमण्यन महादेव अय्यर था।

 

नौ वर्ष की अवस्था में वेदों के अध्ययन

पिताजी ने उन्हें नौ वर्ष की अवस्था में वेदों के अध्ययन के लिए कांची कामकोटि मठ में भेज दिया। वहां उन्होंने छह वर्ष तक ऋग्वेद व अन्य ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। मठ के 68वें आचार्य चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती ने उनकी प्रतिभा देखकर उन्हें उपनिषद पढ़ने को कहा। सम्भवतः वे उनमें अपने भावी उत्तराधिकारी को देख रहे थे।

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बाद में उन्हे सरस्वती स्वामिगल का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। तब उनकी उम्र महज 19 साल थी। जयेंद्र 65 साल तक शंकराचार्य रहे। 2003 में उन्होंने बतौर शंकराचार्य 50 साल पूरे किए थे। 1983 में जयेंद्र सरस्वती ने शंकर विजयेन्द्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।

 

परम्पराओं को तोड़ा और आरोप भी लगे

इसके शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती इन परम्पराओं को तोड़कर निर्धन बस्तियों में जाते थे। वहां की समस्याओं पर विचार करने के लिए वे मठ छोड़कर कुछ दिन के लिए एकान्त में चले गये। वहां से लौटकर उन्होंने पूजा-पाठ एवं कर्मकांड की जिम्मेदारी अपने उत्तराधिकारी को सौंप दी और स्वयं निर्धन हिन्दू बस्तियों में जाकर सेवा-कार्य प्रारम्भ करवाये। इसके लिए मठ के प्रबंधकों को तैयार करने में भी उन्हें काफी समय लगा। वे चाहते थे कि अयोध्या में राममंदिर का निर्माण प्रेम और सद्भाव से हो। अतः उन्होंने विपक्ष से बातचीत भी की; पर इसका निष्कर्ष कुछ नहीं निकल सका।

जेल भी गए

जयेंद्र सरस्वती को शंकररमन हत्याकांड मामले में गिरफ्तार किया गया। हालांकि बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था। इस केस में कांचीमठ के शंकराचार्य और उनके सहयोगी मुख्य आरोपी थे।उस समय तमिलनाडु में जयललिता की सरकार थी। जयललिता जयेंद्र सरस्वती को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं।

 

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चारों दिशाओं में स्थापित किए हैं ये मठ

शृंगेरी मठ,गोवर्धन मठ,शारदा मठ और , ज्योतिर्मठ बनाएंउन्होंने मठ के पैसे एवं भक्तों के सहयोग से सैंकड़ों विद्यालय एवं चिकित्सालय आदि खुलवाये। इससे हिन्दू जाग्रत एवं संगठित हुए। पूज्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती कई भाषाओं के जानकार थे। हिन्दू संगठन के लिए उन्होंने पूरे देश का प्रवास किया। खराब स्वास्थ्य और वृद्धावस्था के बावजूद वे हिन्दू समाज की सेवा में लगे रहे। लम्बी बीमारी के बाद 28 फरवरी, 2018 को उनका निधन हुआ।

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