कश्मीर का चमत्कारी मंदिरः रहस्यों की है खान, देता है हर संकट का संकेत, जानें कैसे

इस मंदिर को साल-भर खुला रखा जाता है। इस मंदिर के चारों तरफ चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं बहती हैं जो इसे आकर्षक बनाती हैं। इस मंदिर में सबसे ख़ास होता है प्रसाद जो केवल खीर और दूध होता है।

Update: 2021-02-27 04:36 GMT
माता का यह मंदिर देता हैं आपदा आने का संकेत, कुंड के पानी का रंग होने लगता हैं काला

लखनऊ :मंदिरों का देश इंडिया को कहा जाता हैं जहां कुछ मीटर की दूरी तय करने के बाद ही मंदिर के दर्शन होने लगते हैं। हर मंदिर की अपनी अलग विशेषता और कहानी हैं जो इन्हें और भी स्पेशल बनाती हैं। मंदिरों के चमत्कार उन्हें और भी रहस्यमयी बना देते हैं। आज एक ऐसे ही रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपदा आने से पहले ही संकेत दे देता है।

खीर भवानी देवी या क्षीर भवानी

ये मंदिर है जम्मू-कश्मीर के गान्दरबल जिले में तुलमुला गांव में स्थित "खीर भवानी देवी'' मंदिर के बारे में जिसे कश्मीरी पंडितों की आस्था का केंद्र कहा जाता है। यह मंदिर श्रीनगर से 27 किमी पूर्व में बना हुआ है। यहाँ जब बसंत ऋतू आती है तो मंदिर में सबसे अधिक माँ को खीर चढ़ाई जाती है। यह परम्परा शुरू से चली आ रही है और कहा जाता है यही वजह है कि माँ का नाम भी 'खीर भवानी' है। खीर भवानी को लोग महारज्ञा देवी के नाम से भी जानते हैं। वैसे इसे क्षीर भवानी के नाम से भी जानते है।

 

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पौराणिक कथा

मान्यता के अनुसार लंकापति रावण को अपूर्व शक्ति प्राप्त करने का वरदान जगदम्बा से ही प्राप्त हुआ था । किंतु जब रावण सीता का हरण कर रामचद्रजी के साथ युद्ध करने पर आमादा हो गये तो महाराज्ञी जगदम्बा रुष्ट हुई । इन्होंने हनुमान को तत्काल यह आदेश दिया कि वे इनको ‘कश्यपमर’/कश्मीर ले जाएँ क्योंकि रावण के पिता पुलस्त्य उस समय कश्मीर में ही रहा करते थे। हनुमान ने आदेश का पालन किया तथा कश्मीर के पश्चिम के एक दूरवर्ती गांव ‘मंजगांव’ में देवी की स्थापना की परन्तु यह स्थान देवी को भाया नहीं और बाद में हनुमान ने देवी की स्थापना ‘तुलमुल’ गांव में की ।

यहाँ देवी का नाम ‘क्षीर-भवानी’ पड़ा क्योंकि इनका भोग केवल मिष्टान एवं क्षीर से ही होने लगा । राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर का प्रत्येक राजा इस तीर्थ स्थान पर जाकर जगदम्बा महाराज्ञी के प्रति अपनी श्रद्धा के फूल अर्पित करता था । किंवदन्ती यह भी है कि भगवान राम बनवास के दौरान कई वर्षों तक माता जगदम्बा देवी की पूजा करते रहे और बनवास के बाद हनुमान से कहा कि वह माता के लिए उनका मनपसंद स्थान तलाश करें। इस प्रकार माता ने कश्मीर का चयन किया और हनुमान ने उनकी स्थापना ‘तोला मोला’अथवा तुलमुल में की।

षट्कोणीय झरना

यह एक ऐसा मंदिर है जिसमे एक झरना है। वह झरना भी ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि षट्कोणीय झरना। यह झरना दिखने में बिलकुल देवी जैसा प्रतीत होता है। यहाँ रहने वाले लोगों का मानना है कि श्रीराम ने अपने निर्वासन में इस मंदिर का इस्तेमाल पूजा की जगह के रूप में किया था। उसके बाद जैसे ही निर्वासन की अवधि खत्म हुई थी वैसे ही भगवान हनुमान को राम जी ने आज्ञा दी थी कि देवी की मूर्ति को शादिपोरा स्थानान्तरित किया जाए। उसी के बाद से यह यहाँ स्थित है।

विपदा आने का संकेत

कहते हैं जब भी जम्मू-कश्मीर में कोई बहुत बड़ी विपदा आने वाली होती है तो इस मंदिर से उसका संकेत मिल जाता है। जम्मू-कश्मीर पर कोई बड़ी विपदा आने वाली रहती है तो उससे पहले इस मंदिर के कुंड का पानी काला हो जाता है। सुनकर आपको हैरानी हो रही होगी लेकिन यह सच है। कई लोग यह कहते हैं कि इसमें कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन कहा जाता है पानी का रंग काला या गहरा होना अशुभ होता है।

वहीं जब पानी का रंग गहरा या काला होता है तो इसे जम्मू-कश्मीर के लिए सबसे अशुभ संकेत माना जाता है। जम्मू-कश्मीर के अधिकतर लोग मानते हैं कि जब कुंड का जल शुद्ध एवं साफ़ होता है तो घाटी में शुभ होता है लेकिन जब पानी काला होता है तो यह अशुभ संकेत होता है। जो लोग इस बात को नहीं मानते हैं उनके लिए हम सबूत भी लाये हैं।

कुंड का पानी गहरा काला

आज से पहले जब भी कश्मीर में विपदा आई है तो इस कुंड का पानी गहरा काला हो चुका है। साल 2014 में जब कश्मीर में बाढ़ आई थी तब भी इस आपदा के आने से पहले कुंड के पानी का रंग गहरा काला हो गया था। उसी दौरान वहां के सभी पंडितों को यह अंदेशा हो गया था कि कुछ तो गहरा संकट आने वाला है। यह सब होने के बाद ही कश्मीर में बाढ़ आ गई थी। ऐसे ही और भी कई किस्से हैं जो यह बताते हैं कि मंदिर का पानी इस बात का इशारा करता है कि कुछ गलत होने वाला है।

 

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अनोखा विश्वास

इस मंदिर को साल-भर खुला रखा जाता है। इस मंदिर के चारों तरफ चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं बहती हैं जो इसे आकर्षक बनाती हैं। इस मंदिर में सबसे ख़ास होता है प्रसाद जो केवल खीर और दूध होता है। इस प्रसाद के अलावा यहाँ कुछ और नहीं चढ़ता। यहाँ रहने वाले और मंदिर में दर्शन करने के लिए आने वाले लोग यह भी मानते हैं कि वास्तव में खीर का रंग सफेद ही रहता है लेकिन जब जम्मू-कश्मीर में कोई बड़ी आपत्ति आने वाली होती है तो खीर का रंग भी काला हो जाता है। यहाँ के लोगों में एक अनोखा विश्वास यह भी है कि शुभ दिन पर देवी पानी का रंग बदलती है जो अनोखा होता है।

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