Kaal Bhairav Jayanti Significance: कैसे हुआ था काल भैरव का प्रकट, जानिए काल भैरव जंयती का महत्व और पूजा विधि
Kaal Bhairav Jayanti Significance: जानें इस साल कब है काल भैरव जयंती, शुभ मुहूर्त और महत्व, जानिए काल भैरव के जन्म की कहानी
Kaal Bhairav Jayanti 2023: हिंदू धर्म में काल भैरव जयंती का विशेष महत्व है।काल भैरव शिव का रुप हैं। काल भैरव अष्टमी या जयंती मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की आठवीं को आती है। काल भैरव की उत्पत्ति शिव के खून से हुई है। शिव के खून के दो भाग हुए, पहले से बटुक भैरव और दूसरे से काल भैरव उत्पन्न हुए। भैरव, शिव का प्रचंड रुप दर्शाया गया है। भैरव का मतलब होता है भय को हरने वाला यानि भय को खत्म करने वाला। भैरव अष्टमी को पूरे देश में धूम धाम से मनाया जाता है और मंदिरों में भैरों बाबा के दर्शन किए जाते हैं। जो भी पाप करता है, उसे इस दिन दंड मिलता है। चाहे वो देवता हों या इंसान, पापियों को बख्शा नहीं जाता। वहीं जिनका मन सच्चा होता है, उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। काल भैरव की कृपा हो जाए तो बुरी शक्तियां दूर से ही देख कर भाग जाती हैं। काम में कोई अड़चन नहीं आती है। हर तरह के दु:ख दूर हो जाते हैं।
बता दें कि वाराणसी में भगवान काल भैरव का मंदिर हैं जहां आज भी उनकी पूजा पूरी श्रद्धा के साथ होती है। इसके अलावा उज्जैन में भी काल भैरव का मंदिर है, जहां जाला भैरव को आज भी मदिरा का भोग लगाया जाता है और बाबा अपने भक्त के सामने ही मदिरा के प्याले को ख़त्म कर देते हैं।
भगवान शिव के रूप काल भैरव की पूजा करके हर तरह की रुकावट और बुरे प्रभाव को खत्म किया जा सकता है। इस दिन भगवान भैरव के साथ साथ, शिव और मां पार्वती की भी पूजा होती है। कुत्ता जो कि भैरव जी का वाहन है, उनको दूध चढ़ाया जाता है। उज्जैन के भैरव मंदिर में भी कई तरह के पूजा कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं और कई श्रद्धालु आकर बाबा की कृपा ग्रहण करते हैं। इस बार भैरव जयंती 5 दिसंबर 20 23 को है। भैरों बाबा आप सब पर कृपा बरसाएं।
काल भैरव जयंती कब है और महत्व
धर्मानुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 4 दिसंबर को रात 9.59 मिनट से शुरू हो रहा है, जो 6 दिसंबर को सुबह 12 .37 मिनट पर समाप्त है। ऐसे में काल भैरव जयंती 5 दिसंबर 2023 को मनाया जाएगा।
शास्त्रों के अनुसार काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। इसलिए इनकी जयंती के दिन विधिवत पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में खुशियां ही खुशियां बनी रहती हैं। इसके साथ ही हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। माना जाता है कि अगर जातक के ऊपर काल भैरव जी प्रसन्न हो जाएंगे, तो वह नकारात्मक शक्तियों के अलावा ऊपर बाधा और भूत-प्रेत की जैसी समस्याएं नहीं होती है।
, काल भैरव भगवान शिव का रौद्र रूप है। इसलिए इनकी पूजा करने से व्यक्ति को हर दुख से छुटकारा मिल जाता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही काल का भय भी समाप्त हो जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इसे कालाष्टमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन काल भैरव का जन्म हुआ था। इसी के कारण इसे काल भैरव जयंती कहा जाता है। काल भैरव जयंती को महाकाल भैरव जयंती या काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान शिव देवों के देव है। कालाष्टमी के दिन भगवान शिव मां जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के साथ रहेंगे। मान्यता है कि इस समय भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना बेहद ही शुभ फलदायी होता है। मान्यता है कि जो जातक इस दिन रुद्राभिषेक करता है उसके जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। साथ ही जातक की सारी मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, काल भैरव की पूजा हमेशा निशा काल में होती है तो जातक निशा काल में भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर सकते हैं।
काल भैरव जयंती पर पूजा विधि
भैरव को तंत्र मंत्र के देवता माने जाते है इसलिए इनकी पूजा रात में भी होती है। कालाष्टमी के दिन भगवान शिवजी के काल भैरव रुप की पूजा करनी चाहिए।इस दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नानादि करके स्वच्छ कपड़े पहने फिर व्रत का संकल्प लें और फिर किसी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव या भैरव के मंदिर में जा कर पूजा अर्चना करना चाहिए।
शाम के समय भगवान शिव- पार्वती और भैरव जी की पूजा करनी चाहिए । काल भैरव की पूजा में दीपक, काले तिल, उड़द, और सरसों के तेल को अवश्य शामिल करना चाहिए। व्रत पूरा करने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाना चाहिए।काल भैरव जयंती के दिन शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
एक बात और इस दिन भगवान भैरव को घर का बना प्रसाद चढ़ाना चाहिए।काल भैरव जयंती पर दही भल्ले, पूड़े, इमरती, जलेबी और मदिरा का भोग लगान चाहिए, इससे काल भैरव प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं।
कैसे हुए काल भैरव प्रकट?
पौराणिक कथा के अनुसार कालभैरव जयंती का दिन काल भैरव के साथ भगवान शिव की आराधना करने का विशेष महत्व है। हिंदू कथाओं के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश में इस बात में बहस छिड़ गई थी कि सबसे श्रेष्ठ कौन है, तो ऐसे में ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को कुछ अपशब्द कह दिए थे, जिससे वह अधिक क्रोधित हो गए है। इसके बाद भगवान शिव के माथे से भैरव प्रकट हुए। उनका रौद्र रूप देखकर हर कोई डर गया और इसी समय उन्होंने भगवान ब्रह्मा का एक सिर काट दिया, जिससे उनके चार सिर हो गए। इसके बाद सभी देवी-देवताओं ने उन्हें शांत किया और वह पुन: शिव जी के स्वरूप में वापस आ गए। लेकिन उन्होंने ब्रह्म हत्या कर दी थी। ऐसे में उन्होंने इस पाप से मुक्ति पाने के लिए काशी की शरण ली और वहीं पर रहकर पापों से मुक्ति पाई।भगवान भैरव को पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी पकड़े हुए और कुत्ते पर सवारी करते हुए देखा जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने से अच्छा स्वास्थ्य और सफलता मिलती है। इसके साथ ही कुंडली से शनि और राहु दोष भी समाप्त हो जाता है।