Types of Devotees: जाने कितने तरह के होते हैं भक्त
Types of Devotees: हमारी आशा और आकांक्षाओं की पूर्ति एकमात्र उन्हीं से हो सकती है। ऐसा मानकर और जानकर वे अन्य सब प्रकार के आश्रयों का त्याग करके अपने जीवन को भगवान के ही भजन, पूजन, स्मरण और सेवा आदि में लगाए रखते हैं।
भगवान श्री कृष्ण भगवद्गीता में अर्जुन को कहते हैं :-
उदारा: सर्व एवैते।
अर्थात् सभी चारों प्रकार के भक्त - आर्त्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी एवं ज्ञानी -उदार होते हैं।
निहितार्थ :- चारों प्रकार के भक्त भली-भांति इस बात का निश्चय कर चुके होते हैं कि भगवान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वेश्वर, परम दयालु और परम सुहृद् हैं। हमारी आशा और आकांक्षाओं की पूर्ति एकमात्र उन्हीं से हो सकती है। ऐसा मानकर और जानकर वे अन्य सब प्रकार के आश्रयों का त्याग करके अपने जीवन को भगवान के ही भजन, पूजन, स्मरण और सेवा आदि में लगाए रखते हैं।
यदि उनके भीतर कामनाएं भी हैं, तो वे अपनी पूर्ति भगवान से ही कराना चाहते हैं। जैसे कोई पतिव्रता स्त्री अपने लिए कुछ चाहती भी है, तो वह एकमात्र अपने प्रियतम पति से ही चाहती है। वह न तो दूसरे की ओर ताकती है और न जानती है। इसी प्रकार ये चारों प्रकार के भक्त भी एकमात्र भगवान पर ही भरोसा करते हैं। इसलिए भगवान कहते हैं कि ये सभी उदार ( उत्तम ) हैं।
यहां यह ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि ये चारों प्रकार के भक्त अपनी ओर से भगवान से संबंध जोड़ने की पहल करते हैं। भगवान संबंध जोड़ें या ना जोड़ें - भक्त इसकी परवाह नहीं करता। वह तो अपनी तरफ से पहले संबंध जोड़ता है एवं अपने को भगवान के प्रति समर्पित कर देता है, इसलिए वह उदार कहा गया है।
सकाम-भाव से भी भगवान की भक्ति करने वाले मनुष्य उदार अर्थात् पुण्यवान ही होते हैं। अपनी कामना की पूर्ति हो या न हो, तो भी भक्त भगवान का ही भजन करते हैं, भगवान के भजन को नहीं छोड़ते। भोग भोगने और संग्रह करने की लालसा को छोड़कर भगवान का भजन करना तो भक्त की उदारता ही है।
भगवान को जानने हेतु अपनी जिज्ञासा को भगवान से ही पूरा करना जिज्ञासु भक्त की उदारता है।
ज्ञानी भक्त मानवीय चेतना को परमात्मा की अनंत चेतना के साथ एकाकार करके दिव्या-रसानुभूति की प्राप्ति करता है।
ऐसे भक्त किसी अन्य देव - देवी, यक्ष - राक्षस, भूत - प्रेत आदि के शरण नहीं जाते। वे साक्षात् भगवान के ही शरणागत होते हैं, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसे भक्तों को उदार अर्थात् पुण्यवान एवं श्रेष्ठ कहा है।
सर्वोपरि अनन्य-भाव से भगवान के शरणागत होना ही भक्त की उदारता है।