Kundli Mein Pitra Dosh Kya Hota Hai : इस दोष की वजह से बर्बाद होता है वैवाहिक जीवन, जानिए पितृ दोष के लक्षण और दूर करने के सरल उपाय

Kundli Mein Pitra Dosh Kya Hota Hai: धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है । व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है ।

Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update:2021-11-26 08:15 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Kundli Mein Pitra Dosh Kya Hota Hai कुंडली में पितृदोष क्या होता है-

जब जन्म कुंडली (Kundli)  में दूसरे ,चौथे, पांचवें, सातवें , नवम व 10 वें भाव में सूर्य का राहु या फिर सूर्य का शनि के साथ युति बना हो यानि इन ग्रहों की आपसी युति हो रही हो तो इसे पितृ दोष माना जाता है। मतलब पितृ दोष वैदिक ज्योतिष की दृष्टि मे बहुत महत्वपूर्ण होता है। जब सूर्य, चंद्रमा एवं गुरु, शनि, राहु व केतु से पीड़ित होकर लग्न, पंचम, नवम या दशम भाव में हो तो यह दोष होता है। इस दोष को लेकर भी बहुत सी भ्रांतियां है, जिससे साधारण आदमी को डराया जाता है, और कई तरह की पूजा करवाई जाती है। इसलिए बहुत ही जांच परखकर ही दोष का परिहार करना चाहिए। बहुत से ऋषि मुनियों का मत है कि इस दोष के होने से ज़ीवनभर परेशानियों व समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जातक को अपनी संतान से कष्ट होता है या किसी बुरी आदत एवं आपराधिक गतिविधियों की वजह से धन का नुकसान होता है।

कुंडली का पंचम घर में राहु पितृदोष ( Rahu se Pitra Dosh)

  • जातक के इस जन्म और पूर्वजन्म के कर्म का फल हर जन्म में भुगतना पड़ता है। कभी व्यक्ति के क्रम तो कभी उसके बुरे ग्रह उसका बुरा करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर व्यक्ति की कुंडली के पंचम घर में राहु स्थित हो तो संतान संबंधी परेशानी होती है। जातक को पितृ दोष से गुजरना पड़ता है।

कुंडली में शनि, राहु और केतु व पितृ दोष

  • व्यक्ति के की कुंडली उसे भूत भविष्य और वर्त्तमान को दर्शाती है।अगर व्यक्ति की कुंडली में शनि, राहु और केतु जब सूर्य पर दृष्टि डालते हैं तो ऐसे जातक पितृ दोष से पीड़ित होते हैं।

पितृ गुरु दोष से कई पीढ़ी वंशहीन

  • वैदिक ज्योतिष में गुरु को भी पितृ दोष का कारक माना जाता है। जातक की कुंडली में दो पाप ग्रह या खराब ग्रह का असर गुरु पर पड़े तो यानि 4-8-12 वें घर में गुरु की स्थिति नीच राशि में हो तो जातक गरीब होता है। ऐसे लोगों की कई पीढ़ियों को संतान नहीं होती है।

पितृ दोषित कुंडली

  • जिस जातक की कुंडली में बुध, राहु या शुक्र कुंडली के 9वें घर में रहे तो जातक पितृ दोषित होता है। यदि व्यक्ति की कुंडली के प्रथम घर में गुरु रहे, तो पितृ दोष होता है।साथ ही गुरु 7 वें घर में स्थित हो भी पितृ दोष ही लगता है। और पहले घर में राहु या चंद्र केतु हो तभी पितृदोष लगता है।

पितृदोष के कारण व लक्षण (  symptoms of Pitra Dosh) 

अगर लगातार व्यक्ति के घर में धन की कमी बनी रहती है लाख उपाय के बाद भी धन नहीं मिलता तो उसकी कुंडली में पितृदोष हो सकता है। संतान सुख में या यदि घऱ के किसी व्यक्ति की शादी में बार-बार समस्या हो तो भी उसकी कुंडली में पितृदोष हो सकता है। परिवार में हमेशा लड़ाई -झगड़े का माहौल बने रहना भी पितृदोष के लक्षण हो सकते है। पितृ दोष होने पर व्‍यक्ति के जीवन में संतान का सुख नहीं मिल पाता है। ...

  • नौकरी और व्‍यवसाय में मेहनत करने के बावजूद भी हानि होती है।
  • परिवार में हमेशा कलह बने रहना या फिर एकता न होना। 
  • परिवार में किसी न किसी व्‍यक्ति का हमेशा बीमार रहते है।
  • परिवार में विवाह योग्‍य लोगों का विवाह न हो पाता हैय़।

जातक की कुंडली मे चंद्रमा सप्तम स्थान मे पीड़ित हो तो जातक ने पिछले जन्म मे अपनी पत्नी की वज़ह से अपनी माता को कष्ट दिया था,तभी उसका इस जन्म मे वैवाहिक सुख क्षीण हो जाता है। चतुर्थ भाव मे पीडि़त चंद्रमा होने से जातक ने पिछले जन्म मे अपनी माता को मारा होता है तभी वह इस जन्म मे माता से कष्ट पाता है और उसकी ज़ीवन भर किसी कारण सेवा कर अपना कर्ज़ चुकाता है। जातक को कई रोगियों का भी श्राप होता है, जिस कारण ज़ीवन भर किसी रोग को भुगतना पड़ता है।

जातक सरकारी कार्य में बेवजह उलझता है और कारावास में दंड पाता है। वंश वृद्धि और शिक्षा में गिरावट आती है। शारीरिक रोग और वैवाहिक सुख नहीं मिल पाता। सप्‍तम या अष्‍टम में गुरू होने से पिछले जन्‍म में स्‍त्री द्वारा अपने पति को धोखा देने के संकेत मिलते हैं। या जातक पारिवारिक दायित्‍व से बचने के लिए घर छोड़ चुका होता है। तभी उसको इस जन्‍म में गृहस्‍थ एवं पति सुख की प्राप्‍ति नहीं हो पाती।


सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

कुंडली के पितृदोष दूर करने के उपाय ( Remedies to Remove Pitra Dosh in Kundli)

कुंडली में पितृ दोष में जातक के पितृ श्रापित होते हैं जिस कारण वह अपनी योनि मे तृप्त नहीं रह पाते और उनके वंशज़ों को भी इस का भुगतान करना पड़ता है। जिस तरह अपने पिता या दादा की सम्पत्ति का भुगतान उनकी संतान को करना पड़ता है, उसी तरह अपने पूर्वज़ों के अच्छे-बुरे कर्मों का भी भुगतान करना पड़ता है। जातक की कुंड़ली मे यह दोष इस जन्म में हो तो यह कई जन्मों के कर्मों के कारण होते हैं।

  • यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष है और वह उपाय करने में असमर्थ है तो भी परेशान होने की जरूरत नहीं है। पितृदोष का प्रभाव कम करने के लिए सरल और चमत्कारी उपाय
  • रोज पीपल के वृक्ष में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं । शाम के समय में दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।
  • सोमवार की सुबह में स्नान कर नंगे पैर शिव मंदिर में जाकर आक के 21 पुष्प, कच्ची लस्सी, बिल्वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। 21 सोमवार करने से पितृदोष का प्रभाव कम होता है।
  • हर रोज इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष दूर होता है। कुंडली में पितृदोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।
  • इस दोष से मुक्ति के लिए पीपल तथा बरगद के पेड़ लगाएं। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्‍भागवत गीता का पाठ करने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है।
  • पितरों के नाम पर गरीब विद्यार्थियों की मदद करने तथा पूर्वजों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाने से भी लाभ मिलता है।
  • जिस जातक की कुंडली में पितृदोष है वैसे जातक को प्रत्येक अमावस्या को घर मे भोज़न बनाकर दक्षिण की ओर मुख कर अपने पितरों से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए और भोज़न किसी ब्राह्मण को खिलाना चाहिए। जातक अपने पिता एवं पिता समान पुरुष की इज़्ज़त करें उनके चरण स्पर्श करें और सूर्य को ज़ल चढाए। अमावस्या को पितृ हवन करें और 11 माला "ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:" का जाप करें।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

पितृ दोष की पूजा कब करनी चाहिए

जब आप कुंडली दोष यानि पितृ दोष से पीड़ित है तो इसके लिये सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड़ के पास जाए, उस पीपल के पेड़ को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये, पीपल के पेड़ की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये, और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये, हर परिक्रमा के बाद भोग पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है।

सोमवती अमावस्या कब होती है?

धर्मानुसार जो अमावस्या सोमवार को पड़ती है उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। ऐसी अमावस्या हर साल पड़ती है। कभी एक बार या दो बार। इस दिन का बहुत ही धार्मिक महत्व होता है। सुहागिनें इस दिन पूजा व्रत उपवास करती है और अपने पतियों के दीर्घायु कामना करती है। इस दिन मौन रहकर व्रत करने के साथ पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा का विधान है। जो सहस्त्र गोदान का फल देता है। इस दिन पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा किया जाता है।

सोमवती अमावस्या व्रत कथा

सोमवती अमावस्या की पौराणिक कथा के मुताबिक एक व्यक्ति के सात बेटे और एक बेटी थी। उसने अपने सभी बेटों की शादी कर दी लेकिन, बेटी की शादी नहीं हुई। एक भिक्षु रोज उनके घर भिक्षा मांगने अाते थे। वह उस व्यक्ति की बहूओ को सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद तो देता था लेकिन उसने उसकी बेटी को शादी का आशीर्वाद कभी नहीं दिया। बेटी ने अपनी मां से यह बात कही तो मां ने इस बारे में भिक्षु से पूछा, लेकिन वह बिना कुछ कहे वहां से चला गया। इसके बाद लड़की की मां ने एक पंडित से अपनी बेटी की कुंडली दिखाई। पंडित ने कहा कि लड़की के भाग्य में विधवा बनना लिखा है। मां ने परेशान होकर उपाय पूछा तो उसने कहा कि लड़की सिंघल द्वीप जाकर वहां रहने वाली एक धोबिन से सिंदूर लेकर माथे पर लगाकर सोमवती अमावस्या का उपवास करे तो यह अशुभ योग दूर हो सकता है। इसके बाद मां के कहने पर छोटा बेटा अपनी बहन के साथ सिंघल द्वीप के लिए रवाना हो गया। रास्ते में समुद्र देख दोनों चिंतित होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए। उस पेड़ पर एक गिद्ध का घोंसला था। मादा गिद्ध जब भी बच्चे को जन्म देती थी, एक सांप उसे खा जाता था। उस दिन नर और मादा गिद्ध बाहर थे और बच्चे घोसले में अकेले थे। इस बीच सांप अाया तो गिद्ध के बच्चे चिल्लाने लगे। यह देख पेड़ के नीचे बैठी साहूकार की बेटी ने सांप को मार डाला। जब गिद्ध और उसकी पत्नी लौटे, तो अपने बच्चों को जीवित देखकर बहुत खुश हुए और लड़की को धोबिन के घर जाने में मदद की। लड़की ने कई महीनों तक चुपचाप धोबिन महिला की सेवा की। लड़की की सेवा से खुश होकर धोबिन ने लड़की के माथे पर सिंदूर लगाया। इसके बाद रास्ते में उसने एक पीपल के पेड़ के चारों ओर घूमकर परिक्रमा की और पानी पिया। उसने पीपल के पेड़ की पूजा की और सोमवती अमावस्या का उपवास रखा। इस प्रकार उसके अशुभ योग का निवारण हो गया।

सोमवती अमावस्या का पूजन व्रत करने से काल सर्प दोष नहीं लगता है। संतान प्राप्ति होती है। समृद्धि के साथ अखंड सौभाग्य बना रहता है।

 

Tags:    

Similar News