Hanuman Katha: जानें, महावीर हनुमान और लंका की कथा
Mahaveer Hanuman ki Katha: जब हनुमान जी महाराज लंकेश की लंका को जला रहे थे। तब एक बहुत ही विस्मयी घटना हुई। लंका में आग लगती और अदृश्य हो जाती लंका को बिना नुक्सान पहुचाये। तब महावीर हनुमान जी चिंतित हो उठे कि क्या रावण द्वारा अर्जित पुण्य इतने प्रबल हैं !
Mahaveer Hanuman ki Katha: एक बहुत ही सुंदर और रोमांचक प्रसंग जो की एक संत के श्री मुख से सुना था आप सभी के मध्य प्रस्तुत है।जब हनुमान जी महाराज लंकेश की लंका को जला रहे थे। तब एक बहुत ही विस्मयी घटना हुई। लंका में आग लगती और अदृश्य हो जाती लंका को बिना नुक्सान पहुचाये। तब महावीर हनुमान जी चिंतित हो उठे कि क्या रावण द्वारा अर्जित पुण्य इतने प्रबल हैं ! अथवा मेरी भक्ति में ही किसी प्रकार की कमी है! जब अपने आराध्य प्रभु राम का सुमिरन किया तब भगवान श्री राम की कृपा से ज्ञात हुआ की हे हनुमान जिस लंका को तुम जला रहे हो वह माया रचित है, प्रतिबिम्ब है। असली लंका तो माँ पार्वती के हाथों शनिदेव की दृष्टि से पूर्व में ही ध्वस्त हो चुकी है। शनि देव लंका के तल में हैं।
इसी लिए ये बिम्ब लंका नष्ट नहीं हो रही है। तब हनुमान जी महाराज जाकर शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त करते है। शनि देव के बाहर आते ही ज्यो ही उनकी दृष्टि उस बिम्ब लंका पर पड़ी। वह धू धू कर जलने लगी। माँ पार्वती के मन में लंका को स्वयं ध्वस्त करने का दुःख था। उसी फलस्वरूप यह बिम्ब जो माँ पार्वती के मन में था वह रावण को प्राप्त हुआ था।
उसी प्रकार मनुष्य जब अपने सुकर्म भूल कर दुष्कर्म में प्रवृत्त हो माया रुपी सुखों की रचना कर उन्ही में डूब जाता है। सुमिरन भूल जाता है। तब शनि देव उसे अपना अस्तित्व और कर्म याद करवाते हैं। इसी लिये उन्हें न्यायाधीश कहा जाता है।
(कंचन सिंह)