Mahadev aur Mata Parvati ki katha: जानिए शुक को कैसे मिला अमरत्व का ज्ञान

Mahadev aur Mata Parvati ki katha: माता पार्वती अमरत्व का रहस्य प्रभु से सुनना चाहती थीं। अमरत्व का रहस्य किसी कुपात्र के हाथ न लग जाए इस चिंता में पड़कर महादेव पार्वती जी को लेकर एक निर्जन प्रदेश में गए। उन्होंने एक गुफा चुनी और उस गुफा का मुख अच्छी तरह से बंद कर दिया।

Update:2023-04-15 04:20 IST
Mahadev aur Mata Parvati ki katha (Pic: Social Media)

Mahadev aur Mata Parvati ki katha in Hindi: एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से ऐसे गूढ़ ज्ञान देने का अनुरोध किया जो संसार में किसी भी जीव को प्राप्त न हो। वह अमरत्व का रहस्य प्रभु से सुनना चाहती थीं। अमरत्व का रहस्य किसी कुपात्र के हाथ न लग जाए इस चिंता में पड़कर महादेव पार्वती जी को लेकर एक निर्जन प्रदेश में गए। उन्होंने एक गुफा चुनी और उस गुफा का मुख अच्छी तरह से बंद कर दिया। फिर महादेव ने देवी को कथा सुनानी शुरू की। पार्वती जी थोड़ी देर तक तो आनंद लेकर कथा सुनती रहीं।

जैसे किसी कथा-कहानी के बीच में हुंकारी भरी जाती है उसी तरह देवी काफी समय तक हुंकारी भरती रहीं लेकिन जल्द ही उन्हें नींद आने लगी। उस गुफा में तोते यानी शुक का एक घोंसला भी था। घोसले में अंडे से एक तोते के बच्चे का जन्म हुआ। वह तोता भी शिव जी की कथा सुन रहा था। महादेव की कथा सुनने से उसमें दिव्य शक्तियां आ गईं। जब तोते ने देखा कि माता सो रही हैं। कहीं महादेव कथा सुनाना न बंद कर दें इसलिए वह पार्वती की जगह हुंकारी भरने लगा।

महादेव कथा सुनाते रहे। लेकिन शीघ्र ही महादेव को पता चल गया कि पार्वती के स्थान पर कोई औऱ हुंकारी भर रहा है। वह क्रोधित होकर शुक को मारने के लिए उठे। शुक वहां से निकलकर भागा। वह व्यास जी के आश्रम में पहुंचा। व्यास जी की पत्नी ने उसी समय जम्हाई ली और शुक सूक्ष्म रूप धारण कर उनके मुख में प्रवेश कर गया। महादेव ने जब उसे व्यास की शरण में देखा तो मारने का विचार त्याग दिया। शुक व्यास की पत्नी के गर्भस्थ शिशु हो गए। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान प्राप्त था।

शुक ने सांसारिकता देख ली थी इस लिए वह माया के पृथ्वी लोक की प्रभाव में आना नहीं चाहते थे इसलिए ऋषि पत्नी के गर्भ से बारह वर्ष तक नहीं निकले। व्यास जी ने शिशु से बाहर आने को कहा लेकिन वह यह कहकर मना करता रहा कि संसार तो मोह-माया है मुझे उसमें नहीं पड़ना। ऋषि पत्नी गर्भ की पीड़ा से मरणासन्न हो गईं। भगवान श्री कृष्ण को इस बात का ज्ञान हुआ। वह स्वयं वहां आए और उन्होंने शुक को आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा।

श्री कृष्ण से मिले वरदान के बाद ही शुक ने गर्भ से निकल कर जन्म लिया। जन्म लेते ही शुक ने श्री कृष्ण और अपने पिता-माता को प्रणाम किया और तपस्या के लिये जंगल चले गए। व्यास जी उनके पीछे-पीछे ‘पुत्र !, पुत्र कह कर पुकारते रहे, किन्तु शुक ने उस पर कोई ध्यान न दिया। व्यास जी चाहते थे कि शुक श्रीमद्भागवत का ज्ञान प्राप्त करें। किन्तु शुक तो कभी पिता की ओर आते ही न थे। व्यास जी ने एक युक्ति की। उन्होंने श्री कृष्ण लीला का एक श्लोक बनाया और उसका आधा भाग शिष्यों को रटा कर उधर भेज दिया जिधर शुक ध्यान लगाते थे।

एक दिन शुकदेव जी ने भी वह श्लोक सुना। वह श्री कृष्ण लीला के आकर्षण में खींचे सीधे अपने पिता के आश्रम तक चले आए। पिता व्यास जी से ने उन्हें श्रीमद्भागवत के अठारह हज़ार श्लोकों का विधि वत ज्ञान दिया। शुकदेव ने इसी भागवत का ज्ञान राजा परीक्षित को दिया, जिस के दिव्य प्रभाव से परीक्षित ने मृत्यु के भय को जीत लिया।

(कंचन सिंह)

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