सारंगनाथ महादेव, यहां होती है एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा
वारणसी-छपरा रेलखंड पर स्थित सारनाथ रेलवे स्टेशन के पास स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहा भगवान शिव के साले सारंग ऋषि और बाबा विश्वनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं। कुछ लोग सारनाथ को भगवान शिव की ससुराल भी मानते हैं।
दुर्गेश पार्थसारथी,
वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से महज 8 किमी की दूरी पर स्थित है सारंगनाथ महादेव मंदिर। यहां एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा होती है। वारणसी-छपरा रेलखंड पर स्थित सारनाथ रेलवे स्टेशन के पास स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहा भगवान शिव के साले सारंग ऋषि और बाबा विश्वनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं। कुछ लोग सारनाथ को भगवान शिव की ससुराल भी मानते हैं।
पौराणिक साहित्यों में असुरों और देवताओं में परम तेजस्वी भगवान शिव का यह अनोखा मंदिर सारनाथ के मुख्य स्मारकों से करीब एक किमी दक्षिण और सारनाथ रेलवे स्टेशन के पास स्थित सारंगनाथ का यह प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सुंदरता के बीच करीब ३० फुट ऊंचे टीले पर स्थित है। मंदिर के मुख्य शिखर पर लगा धर्म पताका पवनांदोलित हो बाहें पसारे दूर से ही दिखाई देता है। इसके गर्भगृह में एक नहीं बल्कि दो शिवलिंग एक साथ प्रतिष्ठापित हैं। यहां के लोगों का दावा है कि दो शिवलिंगों वाला यह शिवालय उत्तर भारत का एक मात्र शिवालाय है।
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यह है सरंगनाथ से जुड़ी कथा
मंदिर की प्राचीनता और महत्ता के बारे में यहां के मुख्य पुजारी एक दंत कथा उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान शिव की पत्नी मां पार्वती के भाई सारंगनाथ धन संपदा लेकर उनसे मिलने काशी आ रहे थे। वह काशी से कुछ दूर मृगदाव (सारनाथ) पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पूरी काशी ही सोने की तरह चमक रही है। यह देख उन्हें अपनी गलती का बोध हुआ और वह वहीं तपस्या में लीन हो गए। जब इसका भान भगवान शिव को हुआ तो वह मृगदाव पहुंचे। तपस्यारत सारंगनाथ से भगवान शिव ने कहा- व्यर्थ की व्यथा छोड़ो। प्रत्येक भाई अपनी बहन की सुख-समृद्धि चाहता है। भाई होने के नाते तुम भी अपना कर्तव्य निवर्हन किए हो। कुछ वर मांगों। इसपर ऋषि सारंग ने कहा- प्रभु, हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ सदैव रहें।
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यहां शिव और सारंग दोनो की होती होती है पूजा
सांरग ऋषि की तपस्या से प्रसंन्न भगवान शिव ने आपने सारंग से काशी चलने का अनुरोध किया। लेकिन, ऋषि सारंग से साथ जाने से यह कहते हुए मान कर दिया कि यह जगह बहुत रमणीय है। इसके बाद महादेव ने कहा कि भविष्य तुम सारंगनाथ महादेव के नाम से पूजे जावोगे। और यह स्थान सारंग वन के नाम से जाना जाएगा। यही सरंगवन कालांतर में सारनाथ के नाम से जानाजाता है। यही नहीं यह स्थल हिंदू, बौध एवं जैन धर्म का संगम भी है।
शिव की ससुरल भी कहते है सारंगनाथ मंदिर को
पौराणिक कथाओं के अनुसार सारंग ऋषि की भक्ति से प्रसन्न बाबा विश्वनाथ यहां अपने साले के साथ सोमनाथ के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में काशी विश्वनाथ और सारंगनाथ एक साथ विराजमान हैं। यानि एक ही गर्भगृह में दो शिवलिंग प्रतिष्ठापित हैं। सारंगनाथ का शिवलिंग लंबा है और विश्वनाथ जी का गोल और थोड़ा ऊंचा है। मान्यता है कि विवाह बाद यहां दर्शन करने से ससुराल और मायके पक्ष में संबंध मधुर रहता है।
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