Shiva Puja Vidhi: शिव-तत्त्व, भोले भंडारी की पूजा का विधान

Shiva Puja Vidhi: भगवान शंकर को देवों के देव महादेव कहा गया है। उन्हें देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं।

Update:2023-08-11 12:52 IST
Lord Shiva (Photo Courtesy- Social Media)

Shiva Puja Vidhi: शिव को आदि और अनंत कहा जाता है। इस सृष्टि के निर्माण से पहले भी महादेव हैं और सृष्टि के खत्म होने के बाद भी भगवान शिव ही रहेंगे। वह देवों के देव महादेव हैं। भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं।

स्वयं भगवान् शिव, श्रीविष्णु भगवान् से कहते हैं-

मद्दर्शन फलं यद्वै तदेव तव दर्शने

ममैव हृदये विष्णुर्विष्णोश्च हृदये ह्यहम्॥

उभयोरंतरम् यो वै न जानाति मतो मम।

(शिव० ज्ञान० ४ | ६१-६२)

(मेरे दर्शन का जो फल है वही आपके दर्शन का है। आप मेरे हृदय में निवास करते हैं और मैं आपके हृदय में रहता हूँ। जो हम दोनों में भेद नहीं समझता, वही मुझे मान्य है।)

भगवान् श्रीराम भगवान् श्रीशिव से कहते हैं-

ममासि हृदये शर्व भवतो हृदये त्वहम्।

आवयोरन्तरं नास्ति मूढाः पश्यन्ति दुर्धियःं॥

ये भेदं विदधत्यद्धा आवयोरेकरुपयो:।

कुम्भीपाकेषु पच्यन्ते नराः कल्पसहस्त्रकम्॥

ये त्वद्भक्ता: सदासंस्ते मद्भक्ता धर्मसंयुताः।

मद्भक्ता अपि भूयस्या भक्त्या तव नतिङ्करा:॥

(पद्म० पाता० ४६ | २०—२२)

(आप शंकर मेरे हृदय में रहते हैं और मैं आपके हृदय में रहता हूँ। हम दोनों में कोई भेद नहीं है। मूर्ख एवं दुर्बुद्धि मनुष्य ही हमारे अंदर भेद समझते हैं। हम दोनों एकरूप हैं, जो मनुष्य हम दोनों में भेद-भावना करते हैं। वे हजार कल्प पर्यंत कुम्भीपाक नरकों में यातना सहते हैं। जो आपके भक्त हैं वे धार्मिक पुरुष सदा ही मेरे भक्त रहे हैं। और जो मेरे भक्त हैं वे प्रगाढ़ भक्ति से आपको भी प्रणाम करते हैं।)

इसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण भी भगवान् श्रीशिव से कहते हैं :-

त्वत्परो नास्ति मे प्रेयांस्त्वं मदीयात्मन: परः।

ये त्वां निन्दति पापिष्ठा ज्ञानहीना विचेतसः॥

पच्यन्ते कालसूत्रेण यावच्चन्द्रदिवाकरौ।

कृत्वा लिङ्गं सकृत्पूज्य वसेत्कल्पायुतं दिवि॥

प्रजावान् भूमिमान् विद्वान् पुत्रबान्धववांस्तथा।

ज्ञानवान्मुक्तिमान् साधुः शिवलिङ्गार्चनाद्भवेत्॥

शिवेति शब्दमुच्चार्य प्राणांस्त्यजति यो नर:।

कोटिजन्मार्जितात् पापान्मुक्तो मुक्तिं प्रयाति सः॥

( ब्रह्मवैवर्त० ६ | ३१-३२, ४५, ४७ )

(मुझे आपसे बढ़कर कोई प्यारा नहीं है, आप मुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं। जो पापी, अज्ञानी एवं बुद्धिहीन पुरुष आपकी निन्दा करते हैं, जबतक चन्द्र और सूर्य का अस्तित्व रहेगा तबतक कालसूत्र में (नरकों में) पचते रहेंगे। जो शिवलिंग का निर्माण कर एकबार भी उसकी पूजा कर लेता है, वह दस हजार कल्पतक स्वर्ग में निवास करता है, शिवलिंग के अर्चन से मनुष्य को प्रजा, भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण कर शरीर छोड़ता है। वह करोड़ों जन्मों के संचित पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है। )

श्रीशिवस्तुतिः

नमस्तुङ्गशिरश्तुम्बिचन्द्रचामरचारवे ।

त्रैलोक्यनगरारम्भमूलस्तम्भाय शम्भवे ।। १ ।।

चन्द्राननार्धदेहाय चन्द्रांशुसितमूर्तये ।

चन्द्रार्कानलनेत्राय चन्द्रार्धशिरसे नमः ।। २ ।।

II इति शिवस्तुतिः सम्पूर्णा II

ऊँचे सिर को चुम्बन करने वाले अर्थात् ऊँचे सिर पर विराजमान चन्द्रमा रूपी चँवर से मनोहर तथा त्रैलोक्यरूपी नगर के निर्माण में सर्वप्रथम मूल स्तम्भ बने हुए श्रीशिवजी को नमस्कार है ।१।

शिव के आधे अंग में चन्द्रानना – चन्द्रमुखी पार्वती हैं, चन्द्रकी किरणों के समान इनकी मूर्ति गौर है, इनका पहला (वाम) नेत्र चन्द्र है तो दूसरा (दक्षिण) सूर्य और तीसरा नेत्र अग्नि ललाट में है एवं आधा चन्द्रमा जिनके सिरपर है, ऐसे अर्धनारीश्वर शिव को प्रणाम है।२।

(‘शिवस्तोत्ररत्नाकर’)

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