Bhagavad Gita: वेदव्यास ने संजय को दी दिव्य दृष्टि, भगवद्गीता-(अध्याय-1/ श्लोक संख्या-26 - 27 (भाग-2)

Shreemad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya part 26 and 27: यदि संग्राम भूमि में इन सब की अवस्था तुम देखना चाहो, तो मैं तुम्हें दिव्य नेत्र प्रदान करूं । वत्स ! फिर तुम वहां होने वाले युद्ध का सारा दृश्य अपनी आंखों से देखो।

Update: 2023-04-09 19:00 GMT
Shreemad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya part 26 and 27 (Pic: Social Media)

Shreemad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya part 26 and 27: महाभारत के भीष्म - पर्व के अंतर्गत द्वितीय अध्याय में महर्षि वेदव्यास जी धृतराष्ट्र को कहते हैं -

यदि चेच्छसि संग्रामे द्रष्टुमेतान् विशाम्पते।

चक्षुर्ददानि ते पुत्र युद्धं तत्र निशामय।।

अर्थ - राजन ! यदि संग्राम भूमि में इन सब की अवस्था तुम देखना चाहो, तो मैं तुम्हें दिव्य नेत्र प्रदान करूं । वत्स ! फिर तुम वहां होने वाले युद्ध का सारा दृश्य अपनी आंखों से देखो।

धृतराष्ट्र कहते हैं -

न रोचये ज्ञातिवधं द्रष्टुं ब्रह्मर्षिसत्तम ।

युद्धमेतत् त्वशेषेन श्रृणुयां तव तेजसा ।

अर्थ - ब्रह्मर्षिप्रवर ! मुझे अपने कुटुंबीजनों का वध देखना अच्छा नहीं लगता, परंतु आप के प्रभाव से इस युद्ध का सारा वृत्तान्त सुन सकूं, ऐसी कृपा आप अवश्य कीजिए। तब वेदव्यास जी ने वहां पर उपस्थित संजय को वरदान के रूप में दिव्य - दृष्टि प्रदान कर धृतराष्ट्र से कहा -

एष ते संजयो राजन् युद्धमेतद् वदिष्यति।

एतस्य सर्वसंग्रामे न परोक्षं भविष्यति।।

चक्षुसा संजयो राजन् दिव्येनैव समन्वित:।

कथयिष्यति ते युद्धं सर्वज्ञश्च भविष्यति।।

अर्थ - राजन ! यह संजय आपको इस युद्ध का सब समाचार बताया करेगा। संपूर्ण संग्राम भूमि में कोई ऐसी बात नहीं होगी, जो इसके प्रत्यक्ष न हो। राजन ! संजय दिव्य दृष्टि से संपन्न होकर सर्वज्ञ हो जाएगा और तुम्हें युद्ध की बात बताएगा।

प्रकाशं वाप्रकाशं वा दिवा वा यदि वा निशि।

मनसा चिन्तितमपि सर्वं वेत्स्यति संजय:।।

अर्थ - कोई भी बात प्रकट हो या अप्रकट, दिन में हो या रात में अथवा वह मन में ही क्यों न सोची गई हो, संजय सब कुछ जान लेगा। कोई भी व्यक्ति तुरंत यह नहीं बता सकता कि कौन क्या सोच रहा है ? पर संजय बड़ी सरलता से एवं प्रामाणिकता से अर्जुन के मानस में आए परिवर्तन का उल्लेख कर रहे हैं। महर्षि वेदव्यास प्रदत्त दिव्य-दृष्टि के कारण ही संजय किसी के भी मन में आए विचार को भी जान लेने में समर्थ थे। वास्तव में संजय को दिव्य - दृष्टि प्राप्त हुई थी, यह दोनों ( 26 - 27 ) श्लोकों से ही पता चलता है।अगले अंक में मनुष्य के दिव्य - दृष्टि सहित अतींद्रिय - क्षमताओं पर प्रकाश डाला जाएगा।

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