Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: आत्मा का परमात्मा से मिलन है योग, भगवद्गीता - ( अध्याय - 1/ पुष्पिका ( भाग - 4 )
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 Pushpika Bhaag 4: विश्व में अनेक शास्त्र हैं। उन सभी शास्त्रों को चार मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है। मनुष्य मात्र को जीवन के चार पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष - को प्राप्त करने की आज्ञा शास्त्रों में दी गई है।
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 Pushpika Bhaag 4: पुष्पिका के अंतर्गत "ब्रह्मविद्यायां" के पश्चात् "योगशास्त्रे" लिखा गया है। आइए ! संक्षेप में योगशास्त्र को स्पर्श करते हैं। विश्व में अनेक शास्त्र हैं। उन सभी शास्त्रों को चार मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है। मनुष्य मात्र को जीवन के चार पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष - को प्राप्त करने की आज्ञा शास्त्रों में दी गई है। इसके आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र एवं मोक्षशास्त्र का विभाजन हुआ है। उपर्युक्त चारों प्रकार के शास्त्रों के अंतर्गत ही विश्व के सारे शास्त्र समाहित हैं।
मोक्षशास्त्र यानी योगशास्त्र। आत्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है। योग के माध्यम से हम आत्मसाक्षात्कार करते हैं। हम सनातनियों ( हिंदुओं ) की मान्यता है कि इसी मानव-जीवन में अनेक उपायों से आत्म - साक्षात्कार हो सकता है। ऐसे उपाय या साधन ही योग कहलाते हैं । कहा गया है -
हर जगह मौजूद है, पर नजर आता नहीं ।
योग साधन के बिना कोई उसे पाता नहीं।।
विश्व के सारे मानव एक ही वैचारिक एवं मानसिक धरातल पर खड़े नहीं हैं। सभी की प्रवृत्ति एवं प्रकृति भिन्न-भिन्न है। अतः उनके अनुरूप अलग-अलग उपाय भी बताए गए हैं। सनातन ( हिंदू ) जीवन-व्यवस्था में परमात्मा तक पहुंचने का केवल एक ही निश्चित मार्ग निर्धारित नहीं किया गया है। जो जहां है, वहीं से परमात्मा तक पहुंच सकता है।
इसका विचार कभी भी मन में नहीं लाना चाहिए कि कौन सा मार्ग सही है और कौन सा गलत है ? कौन सा मार्ग सरल है या कौन सा मार्ग कठिन है ? प्रत्युत यह चिंता करनी चाहिए कि मेरे स्वभाव के अनुकूल कौन सा मार्ग उपयुक्त हो सकता है, जिससे सहज ही स्वधर्म का पालन करते हुए हम आत्म - दर्शन कर सकें। किसी भी दूसरे व्यक्ति का अनुकरण करके हम कदापि अध्यात्म - जगत में अग्रसर नहीं हो सकते, हां ! दिखावा जरूर कर सकते हैं।
जिस शास्त्र का प्रत्येक अध्याय ही योग हो तथा जिस शास्त्र के प्रणेता साक्षात् योगेश्वर श्रीकृष्ण हों, वह योगशास्त्र ही तो कहलाएगा। भगवद्गीता इस मायने में अन्य शास्त्रों से विलक्षण एवं अद्वितीय है कि इसके १८ अध्यायों के अंतर्गत १८ बताए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं : -- अर्जुन विषाद योग, सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान कर्म संन्यास योग, कर्म संन्यास योग, आत्म संयम योग, ज्ञान विज्ञान योग, अक्षरब्रह्म योग, राजविद्या राजगुह्य योग, विभूति योग, विश्वरूप दर्शन योग, भक्ति योग, क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग, गुणत्रय विभाग योग, पुरुषोत्तम योग, दैवासुरसम्पद्विभाग योग, श्रद्धात्रय विभाग योग एवं मोक्षसंन्यास योग।
महर्षि वेदव्यास जी ने कहा है - "सर्वशास्त्रमयी गीता" अर्थात् भगवद्गीता में सारे शास्त्र समाहित हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवद्गीता एक सर्वोत्कृष्ट योगशास्त्र है। अगले अंक में श्री कृष्ण-अर्जुन संवाद पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जायेगा ।