Srimad Bhagavad Gita: जब उर्वशी ने अर्जुन को दिया श्राप, भगवद्गीता-(अध्याय-1/ श्लोक संख्या-41 (भाग-1)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 41 Bhag 1: अधर्म के फैलने पर क्या होता है ? तो अर्जुन यह कहता है कि अधर्म के फैलने पर कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं। नारी के प्रति अर्जुन की सोच को यह श्लोक प्रकट करता है। कुलक्षय के फलस्वरूप जो अधर्म फैलेगा, उसका ठीकरा अर्जुन ने स्त्रियों पर ही फोड़ दिया है।

Update:2023-04-11 22:38 IST
Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 37 (Pic: Social Media)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 41 Bhag 1:

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदूष्यन्ति कुलस्त्रिय:।

सरलार्थ - हे कृष्ण ! अधर्म के फैलने पर कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं।

निहितार्थ - पिछले 40वें श्लोक में अर्जुन कह चुका है कि कुल के नाश से सनातन कुलधर्म नष्ट होते हैं और धर्म के नाश होने पर संपूर्ण कुल में अधर्म फैल जाता है। अधर्म के फैलने पर क्या होता है ? तो अर्जुन यह कहता है कि अधर्म के फैलने पर कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं। नारी के प्रति अर्जुन की सोच को यह श्लोक प्रकट करता है। कुलक्षय के फलस्वरूप जो अधर्म फैलेगा, उसका ठीकरा अर्जुन ने स्त्रियों पर ही फोड़ दिया है।

अर्जुन को अपने कुल की स्त्रियों के सतीत्व एवं पवित्रता पर भरोसा नहीं है। अर्जुन भविष्यवक्ता बन उद्घोष कर रहा है कि जो युद्ध होने जा रहा है, वह भीषण एवं विकराल रूप ग्रहण करने वाला है। उसकी चपेट में सारे क्षत्रिय आ जाएंगे। एक भी क्षत्रिय पुरुष नहीं बचेगा। बाकी वर्ण वाले पुरुष ही बचे रहेंगे, क्योंकि युद्ध में तो केवल क्षत्रिय वर्ण ही भाग लेता था। जो युवा योद्धा वीरगति को प्राप्त होंगे, उनकी नवयौवना वधुएं ही बची रहेंगी। वे कामातुर हो अन्य वर्ण के पुरुषों की ओर आकृष्ट होंगी एवं पथभ्रष्ट हो जाएंगी।

हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि जो स्त्री साध्वी-प्रकृति की होती है, वह कुमारी हो या विवाहित अथवा विधवा, वह सदा पवित्र ही रहती है। लेकिन जिस स्त्री में उच्श्रृंखला आ जाती है, वह स्त्री तीनों दशाओं में से किसी भी दशा में भ्रष्ट हो सकती है। इस फर्क को अर्जुन समझ नहीं पा रहा है। कुल की स्त्रियां दूषित हो जाएंगी - इस मानसिकता के पीछे अर्जुन का पुरुष - भाव स्पष्ट रूप से झलक रहा है।

अर्जुन के जीवन में कई कन्याओं, अप्सराओं ने उसके समक्ष अपनी कामवासना प्रकट की थी। उसी के आधार पर अर्जुन की सोच ऐसी बनी है। दो घटनाओं का उल्लेख करना चाहूंगा।

पहली घटना

ब्राह्मण के गोधन को बचाने के लिए युधिष्ठिर के कमरे से धनुष-बाण लाने के लिए कमरे में प्रवेश कर अर्जुन ने नियम - भंग किया था। जिसके परिणामस्वरुप वह 12 वर्ष के वनवास में निकला था। उसी काल-खंड में वह एक बार गंगा नदी में स्नान कर बाहर निकलने वाला ही था कि उसी समय नागकन्या उलूपी ने कामासक्त होकर अर्जुन को जल के भीतर खींच कर ले गई थी। उलूपी ने कहा - "आपसे मैं प्रेम करती हूं। आप मेरी कामवासना पूरी करें अन्यथा मैं मर जाऊंगी। उलूपी की प्राण-रक्षा को धर्म समझकर अर्जुन ने उसकी इच्छा पूरी की थी।

दूसरी घटना

अर्जुन जब अस्त्र - विद्या प्राप्त करने के लिए स्वर्ग ( इंद्रलोक ) गए तो वहां पांच वर्षों तक रहे। वहां अप्सरा "उर्वशी" अर्जुन पर मोहित हो गई। वह अर्जुन को कहने लग गई - मैं काम के वश में हूं, आप मुझे स्वीकार करें। यह सुनकर अर्जुन ने कहा - देवी ! तुम मेरी गुरु-पत्नी के समान हो। इस पर उर्वशी ने कहा - कामपीड़िता का त्याग मत करो। मैं काम-वेग से जल रही हूं। आप मेरा दु:ख मिटाइए।

इस पर अर्जुन ने कहा - जैसे कुंती, माद्री और इंद्रपत्नी शची मेरी माता हैं, वैसे ही तुम भी पुरुवंश की जननी होने के कारण मेरी पूजनीया माता हो। अर्जुन की यह बात सुनकर उर्वशी क्रोधित हो शाप दे दी -अर्जुन! तुम्हें स्त्रियों में नर्तक होकर रहना पड़ेगा और तुम नपुंसक के नाम से प्रसिद्ध होगे।"

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