गोवत्स द्वादशी 2020: बहुत खास होता है ये दिन, जानें महत्व और विधि...
गोवत्स द्वादशी का पालन करते हैं, वे दिन में किसी भी गेहूं और दूध के उत्पादों को खाने से परहेज करते हैं। गौ के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।
लखनऊ: कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स पर्व मनाया जाता है। साल में यह तिथि दो बार मनाते हैं। एक भाद्र मास और दूसरी बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर गाय और बछड़े की पूजा की जाती है।
हिंदू धर्म में गाय में समस्त तीर्थ माने जाते है। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय माता एवं उनके बछड़े की पूजा की जाती है। यह त्यौहार एकादशी के एक दिन के बाद द्वादशी को तथा धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी की पूजा गोधूलि बेला में की जाती है। जो लोग गोवत्स द्वादशी का पालन करते हैं, वे दिन में किसी भी गेहूं और दूध के उत्पादों को खाने से परहेज करते हैं। गौ के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।
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ब्राह्मणों एवं ज़रूरतमंद लोगों को दान दें
बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखा जाता है। संतान विहीन जोड़े संतान की प्राप्त के लिए व्रत रखते हैं। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है। संतान विहीन जोड़े इस दिन गाय माता की पूजन करें तो उनकी मनोकामना जल्द पूरी होती है। इस दिन गोमाता एवं बछड़े की पूजा की जाती है। यदि घर के आसपास गाय और बछड़ा नहीं मिले तब शुद्ध मिट्टी से गाय तथा बछडे़ को बनाकर। उनकी पूजा कि जाती है। इसी दिन श्रीकृष्ण जी ने गाय का पूजन आरंभ किया था। गोवत्स द्वादशी को गाय माता की पूजा करने के पीछे कई मान्यता प्रचलित है।
इस विधि से करें पूजा
इस दिन गाय माता को बछडे़ सहित स्नान कराएं। फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढ़ाया जाता है। दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं। दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं। सींगों को मढ़ा जाता है। तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर मंत्र का उच्चारण करते हुए गो का प्रक्षालन करना चाहिए। गोमाता की पूजा करने से घर में खुशियां बनी रहती है। सारा दिन व्रत रखकर रात को इष्टदेव तथा गोमाता की आरती करने के बाद भोजन ग्रहण करें। गोवत्स की पूजन करने के बाद ब्राह्मणों एवं ज़रूरतमंद लोगों को फलादि दान करते हैं
धर्मानुसार समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गौ भक्ति-गौ सेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जिस घर की महिलाएं गाय का पूजन-अर्चन करके उसे रोटी और हरा चारा खिलाकर उसे तृप्त करती है, उस घर में मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है और उस परिवार में कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है।
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ब्रह्म का वास
भविष्य पुराण के अनुसार गाय की पूजा में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चंद्र विराजित हैं। इसलिए गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है। इस दिन घरों में विशेष कर बाजरे की रोटी जिसे सोगरा भी कहा जाता है और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है। इस दिन गाय की दूध की जगह भैंस या बकरी के दूध का उपयोग किया जाता है।